मोरोपंत तांबे जी का जीवन परिचय | Moropant Tambe Biography in Hindi

मोरोपंत तांबे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के पिता थे। वे बिठूर के पेशवा के यहां दरबार में काम करते थे। उनकी पुत्री मणिकर्णिका (मनु) ने अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिए सराहनीय प्रयास किये। मातृभूमि को अंग्रजों से मुक्ति दिलाने के लिए मनु वीरांगना के रूप में लड़ी।

मोरोपंत तांबे जी का परिचय (Introduction to Moropant Tambe)

नाममोरोपंत तांबे
जन्म1803
पिताबलवंत राव तांबे
भाईसदाशिव तांबे
पत्नीभागीरथी बाई
पुत्रीरानी लक्ष्मीबाई
धर्महिंदू
परिवारब्राह्मण
दामाद गंगाधर राव नेवालकर
दौहित्रदामोदर राव
राष्ट्रीयताभारतीय
मृत्युअज्ञात

मोरोपंत तांबे जी एक ब्राह्मण, वीर देशभक्त व झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के पिता थे। उनका जन्म 1803 में हुआ था। उनके पिता का नाम बलवंत राव और उनके भाई सदाशिव तांबे थे। मोरोपंत पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में कार्य करते थे।

मोरोपंत जी का विवाह भागीरथी बाई से हुआ था। उनके विवाह के बाद उन्हें एक पुत्री की प्राप्ति हुई जिसका नाम मणिकर्णिका रखा गया था। मणिकर्णिका का जन्म वाराणसी, उत्तर प्रदेश (भारत) में 19 नवंबर 1828 को हुआ था। मणिकर्णिका उनकी इकलौती संतान थी।

बिठूर में सब लोग मणिकर्णिका को मनु के नाम से जानते थे जो बाद में रानी लक्ष्मीबाई के नाम से विख्यात हुई। वे रानी लक्ष्मीबाई को प्यार से मनु कहा करते थे।

विधाता की होनी को कौन टाल सकता था जब मणिकर्णिका मात्र 4 वर्ष की थी तब उसकी माता भागीरथी बाई का देहांत हो गया।

भागीरथी बाई की मृत्यु के बाद मोरोपंत बिठूर में पेशवा बाजीराव द्वितीय के यहां आ गए और उन्हीं के यहां रहने लग गए थे।

मोरोपंत तांबे जी का जीवन परिचय (Moropant Tambe Biography in Hindi)

मोरोपंत तांबे और पुत्री मणिकर्णिका का भाग्य (Moropant Tambe And Manikarnika’s Destiny)

मोरोपंत ने अपनी पुत्री  मणिकर्णिका के खातिर दूसरा विवाह नहीं करवाया और अपनी पुत्री को उन्होंने माता-पिता दोनों का प्यार एक साथ दिया। मोरोपंत पुत्री मणिकर्णिका का ख्याल रखते थे और उसे कभी भी अपनी मां की याद नहीं आने दी। 

वो मणिकर्णिका को पढ़ाई लिखाई के लिए मास्टर जी के पास भेजते थे। उसके बाल संवारते और कंघी करते। 

जब मनु छोटी थी तब एक दिन मोरोपंत उसे एक ज्योतिष के पास लेकर गए।

ज्योतिष ने जब मणिकर्णिका का हाथ देखा। तो ज्योतिष ने कहा कि मोरोपंत जी आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए। आप की पुत्री की कुंडली में राज-कार्य हैं। आप की पुत्री रानी बनेगी रानी। ज्योतिष की ये बातें सुनकर मोरोपंत को विश्वास नहीं हो रहा था पर ये बातें सुनकर उन्हें बहुत खुशी हुई।

मोरोपंत तांबे की पुत्री रानी लक्ष्मीबाई
मोरोपंत तांबे की पुत्री रानी लक्ष्मीबाई

मणिकर्णिका और बिठूर (Manikarnika And Bithur) 

बिठूर में मोरोपंत की पुत्री मणिकर्णिका को सब लोग प्यार से ‘मनु’ कहा करते थे। बिठूर के पेशवा बाजीराव द्वितीय मनु को ‘छबीली’ कहकर पुकारा करते थे क्योंकि मनु बहुत नटखट थी।

पेशवा ने मनु का पालन पोषण अपनी पुत्री से भी बढ़कर किया। पेशवा के दत्तक पुत्र नाना साहेब भी मनु को छबीली ही कह कर बुलाया करते और मनु को अपनी छोटी बहन मानते थे।

मनु बिठूर में नाना साहेब और तात्या टोपे के साथ खेला करती। उनके मुख्य खेल घुड़सवारी, तलवारबाजी, युद्ध अभ्यास इत्यादि हुआ करते थे। मनु अपने नाना साहेब और तात्या टोपे को अपना गुरु मानती थी क्योंकि मनु ने बहुत सारी चीजें उनसे सीखी थी।

मोरोपंत पेशवा के खास थे। उनकी पुत्री मनु की पढ़ाई लिखाई बहुत अच्छे तरीके से करवाई गई। मोरोपंत यह चाहते थे कि उनकी पुत्री की शादी किसी अच्छे खानदान में हो।

उन्हें हमेशा से ही अपनी पुत्री मनु की बहुत चिंता रहती थी और आखिर मनु उनकी अकेली संतान जो थी। एक दिन मोरोपंत ने मनु से पूछा कि बेटा आपका विवाह करवा दें?

इस प्रश्न का मनु ने जवाब दिया कि हमें विवाह नहीं करवाना। हम आपको छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे  क्योंकि अगर हम चले गए तो आपकी सेवा कौन करेगा?

इस बात पर मोरोपंत का गला भर आया और उन्होंने कहा कि नहीं बेटा हर लड़की को अपने ससुराल जाना होता है। वे अपने मायके में नहीं रहा करती। 

मनु अपनी जिद पर अड़ी रही और कहा कि वह शादी नहीं करेगी। और इस बात पर अपने पिता के सीने से लग गई। 

मोरोपंत की पुत्री रानी लक्ष्मीबाई का विवाह (Marriage Of Moropant’s Daughter)

एक दिन जब झांसी के राजा गंगाधर राव बिठूर आए थे तो उन्हें मनु के साथ विवाह करने को कहा गया। तो उन्होंने इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया।

मणिकर्णिका का विवाह 19 मई 1842 को झांसी के राजा गंगाधर राव से करवाया गया। उस समय मणिकर्णिका की उम्र मात्र 14 वर्ष की और गंगाधर राव की उम्र 40 वर्ष की थी।

विवाह के बाद मणिकर्णिका का नाम ‘लक्ष्मीबाई’ कर दिया गया।

इधर मोरोपंत अपनी पुत्री के विवाह के बाद अपने आप को अकेला महसूस करने लगे थे। उन्होंने अपनी पुत्री के अच्छे भविष्य की जिम्मेदारी निभा दी थी। वे बिठूर में पेशवा के यहां ही रहा करते।

वे अब बूढ़े हो रहे थे परंतु फिर भी वह हमेशा ही अपने आपको तैयार रखा करते थे। वह ब्राह्मण थे तो युद्ध कौशल में इतने ज्यादा सक्रिय नहीं रहते थे।

मोरोपंत के अंग्रेजों के विरुद्ध प्रयास (Efforts Of Moropant Against British)

1860 के दशक में चल रहे अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह में मोरोपंत जी ने भी बहुत योगदान दिया। ऐसा कहा जाता है कि जब अंग्रेजों ने उस दौरान कानपुर पर आक्रमण किया था तब नाना साहेब, तात्या टोपे व उनकी सेना ने भीषण युद्ध किया जिसमें अंग्रेजों की हार हुई। परंतु, अंग्रेजों ने इस हार के बाद, फिर से दूसरी बार कानपुर पर चढ़ाई कर दी।  

इस सैनिक विद्रोह में मोरोपंत तांबे ने नाना साहेब की सेना के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध एक बार फिर से भीषण युद्ध किया। कानपुर के वीर सैनिकों को हर कदम पर मोरोपंत ने मदद की। अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ते वक्त तांबे जी का एक पैर कट गया। उन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए अपना एक पैर कटा लिया पर धूर्त फ़िरंगियों के सामने झुकना कभी स्वीकार नहीं किया।

भारत माता के लिए उन्होंने यह बलिदान बड़ी खुशी-खुशी दे दिया। यह घटना मोरोपंत के वीर व महान देशभक्त होने की याद दिलाती है। तांबे जी जैसे व्यक्तियों ने इस देश की मान-मर्यादा के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिये जो हरेक भारतीय के लिए गर्व की बात है।

मोरोपंत तांबे की मृत्यु (Death Of Moropant Tambe)

कुछ स्रोतों के मुताबिक अंग्रेजों ने मोरोपंत तांबे को पकड़ लिया था और उन्हें फांसी पर चढ़ाने का आदेश दिया गया।

रानी लक्ष्मी बाई के लिए यह सबसे बड़ी दुःख की बात थी। अपने पिता को बचाने के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध किए। परंतु बहादुर रानी 18 मई 1858 को ग्वालियर के नजदीक एक बाग में शहीद हो गई।

यह अनुमान लगभग लगाया जाता है कि मोरोपंत तांबे की मृत्यु 1858 में जून के महीने में हुई थी। 

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अंतिम शब्द (Final Words)

मोरोपंत तांबे जी एक महान देशभक्त थे जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपना एक पैर कटवा लिया। फ़िरंगियों के खिलाफ विद्रोह में भाग लेने पर फ़िरंगियों ने उन्हें फांसी पर चढ़ाने का आदेश दे दिया।

परंतु तांबे जी देश को आजादे कराने के लिए अड़े रहे। वीर तांबे जी की पुत्री मणिकर्णिका भी उन्हीं के गुणों से ओत-प्रोत थी। बाप-बेटी ने भारत माता के लिए अपने प्राण त्याग दिये पर इसकी मान-मर्यादा को कभी झुकने नहीं दिया।

हर भारतीय के हृदय में आज भी ये वीर व्यक्तित्व वाले क्रांतिकारी अपना अलग ही स्थान रखते हैं। हम सभी को ऐसे महापुरुषों व महानारियों पर गर्व है।

FAQs

मोरोपंत तांबे कौन थे?

मोरोपंत तांबे जी एक ब्राह्मण, वीर देशभक्त व झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के पिता थे। उनका जन्म 1803 में हुआ था। उनके पिता बलवंत राव और उनके भाई सदाशिव तांबे थे। मोरोपंत जी का विवाह भागीरथी बाई से हुआ था। उनके विवाह के बाद उन्हें एक पुत्री की प्राप्ति हुई जिसका नाम मणिकर्णिका रखा गया था। मोरोपंत ने अपनी पुत्री को देशभक्ति के लिए प्रेरित किया।
मणिकर्णिका इतिहास में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के नाम से प्रसिद्ध हुई जो अंग्रेजों के खिलाफ मृत्युदम तक लड़ी।

रानी लक्ष्मीबाई के पिता कौन थे?

रानी लक्ष्मीबाई के पिता मोरोपंत तांबे थे जो एक महान देशभक्त थे।

मोरोपंत तांबे के पिता कौन थे?

बलवंत राव तांबे।

मोरोपंत तांबे का जन्म कब हुआ था?

मोरोपंत तांबे का जन्म 1803 में हुआ था।

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