पाबूजी राठौड़ (Pabuji Rathore) राजस्थान के प्रसिद्ध लोकदेवताओं में से एक है। उनकी वीरता, प्रतिज्ञा पालन, त्याग, शरणागत वत्सलता एवं गौ रक्षा के लिए बलिदान के कारण जनमानस उन्हें लोकदेवता के रूप में पूजते हैं। उनकी स्मृति में कोलू (फलौदी, राजस्थान) में प्रतिवर्ष मेला भरता है।
पाबूजी को राजस्थान में ऊंट लेकर आने का श्रेय भी दिया गया। जिसके कारण उन्हें ऊंटों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। प्रदेश के भोपे-भोपियां रात्रि में पाबूजी की फड़ लगा कर उन्हें प्रसन्न करते हैं। उनकी फड़ पूरे राजस्थान में बहुत प्रसिद्ध है और यह आज भी प्रचलित है। उनका इतिहास बाबा रामदेव जी से भी पहले का है।
पाबूजी का परिचय (Introduction to Pabuji)
नाम | पाबूजी राठौड़ (Pabuji Rathore) |
जन्म | 1239 ईस्वी, कोलू (वर्तमान बाड़मेर जिला, राजस्थान) |
माता | कमलादे |
पिता | धांधल जी राठौड़ |
भाई | बुरो (Buro) |
बहिन | सोना और पेमा |
पत्नी | सोढ़ी |
पुत्र | नहीं |
पुत्री | नहीं |
धर्म | हिन्दू |
प्रसिद्धि का कारण | लोक देवता, गौ रक्षक, वीर योद्धा |
मृत्यु | 1276 ईस्वी, राजस्थान (भारत) |
उम्र | 37 वर्ष |
पाबूजी का जन्म 1239 ईस्वी को कोलू (वर्तमान बाड़मेर, राजस्थान) में हुआ था। उनके पिता का नाम धांधल जी राठौड़ था। धांधल जी राठौड़ की चार संताने थी जिनमें से उनके दो पुत्र और दो पुत्रियां थी। उनके पुत्रों के नाम पाबूजी व बूरा थे तथा उनकी पुत्रियों के नाम सोना व पेमा था।
इतिहासकार मुहणौत नैणसी, महाकवि मोडजी आशिया व क्षेत्रीय लोगों के अनुसार, पाबूजी राठौड़ का जन्म अप्सरा के गर्भ से हुआ था। उनके अनुसार पाबूजी का जन्म स्थान वर्तमान बाड़मेर शहर से 8 कोस आगे खारी खाबड़ के जूना नामक गांव था।
पाबूजी का पूजा स्थल कोलू (फलोदी) में है। यहां कोलू में ही प्रतिवर्ष उनका मेला भी भरता है। क्योंकि वे अपने विवाह के बीच में उठकर गायों को बचाने गए थे जिसकी वजह से उन्हें दूल्हे के वस्त्रों में दिखाया जाता है। उनका प्रतीक चिन्ह हाथ में भाला लिए अश्वारोही के रूप में प्रचलित है।
पाबूजी को ग्रामीण लोग लक्ष्मण जी का अवतार मानते हैं और लोकदेवता के रूप में पूजते हैं। जनमानस पाबूजी को ऊँटो के देवता के रूप में भी पूजती है।
खींचियों के खिलाफ लड़ाई (The Fight against Khinchis)
पिता के देहांत होने के बाद, पाबूजी व उनके भाई बूरो ने शासन संभाला। उनके क्षेत्र की सीमा खींची लोग (तत्कालीन नागौर के राजा) दबा रहे थे व उनके साथ तिरस्कार पूर्वक व्यवहार कर रहे थे। जिसकी वजह से राठौड़ व खींचियों के बीच लड़ाई हुई।
इस जंग में जिंदराव खींची के पिता की मृत्यु हो गई। इसके कारण उनमें तनाव ज्यादा पैदा हो गया। इस तनाव को शान्त करने के लिए पाबूजी (Pabuji) व बूरो ने अपनी बहन पेमा का विवाह खींचियों के साथ करवा दिया।
परंतु, यह तनाव शांत नहीं हो सका।
पाबूजी का विवाह (Marriage of Pabuji)
पाबूजी राठौड़ का विवाह सूरजमल सोढ़ा की पुत्री सोढ़ी के साथ हुआ था।
पाबूजी के बहनोई नागौर के राजा थे जिनका नाम जिंदराव खींची था।
पाबूजी व जिंदराव खींची की आपस में बनती नहीं थी। जब पाबूजी का सोढ़ी के साथ विवाह हो रहा था तब उनके बहनोई जिंदराव खींची ने विवाह में विघ्न डाला। उन्होंने अपनी पुरानी दुश्मनी के कारण देवल चारणी की गायों को घेर लिया।
देवल चारणी ने अपनी गायों को छुड़वाने के लिए सहायता मांगी। जब गाय छुड़वाने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ तो उन्होंने पाबूजी से सहायता मांगी।
पाबूजी तीसरे फेरे लेने के बाद विवाह से उठ खड़े हुए और देवल चारणी की गायों को छुड़वाने के लिए अपने घोड़े पर रवाना हो गए। पाबूजी (Pabuji) के साथ उनके साथी लोग भी गायों को छुड़वाने के लिए रवाना हुए।
बहनोई जिंदराव खींची के खिलाफ लड़ाई (The Fight against brother-in-law Jindrav Khinchi)
क्योंकि पाबूजी राठौड़ राजपूत थे इसलिए प्रजा की सेवा उनका क्षत्रिय धर्म था। देवल चारणी के कहने पर वह अपने विवाह को बीच में छोड़ करके गायों को छुड़वाने के लिए चले गए।
इस निर्णय से उनकी वीरता, प्रतिज्ञा पालन, त्याग, शरणागत वत्सलता एवं गौ रक्षा हेतु बलिदान का परिचय मिलता है। जिंदराव खींची के साथ उनकी दुश्मनी बहुत पुराने समय से चल रही थी जिसकी वजह से उन पर आज यह विपत्ति आई थी।
पाबूजी अपने बहनोई जिंदराव के खिलाफ युद्ध करते हुए 1276 ईश्वी में कड़े संघर्ष के बाद वीरगति को प्राप्त हो गए। पाबूजी (Pabuji) के साथ उनके सभी सैनिक साथी लोग भी शहीद हो गए।
पाबूजी की फड़ (The Narrative of Pabuji)
पाबूजी की फड़ एक रात्रि जागरण की तरह होती है जो मध्य रात्रि तक चलती है। फड़ में मुख्य कलाकार भोपे-भोपियाँ होते हैं जो पाबूजी के भजन गाते हैं व नृत्य करते हैं।
पाबूजी के आशीर्वाद से जब ऊँट स्वस्थ हो जाते हैं तब क्षेत्रीय लोग उनके स्वस्थ होने की खुशी में पाबूजी की फड़ का आयोजन करवाते हैं।
पाबूजी राठौड़ मारवाड़ में सबसे पहले ऊँट लेकर आए थे जिसके बाद से उन्हें उँटों के देवता के रूप में पूजा जाने लगा। जब कभी ऊँट को कोई तकलीफ आती है तो उनके मालिक पाबूजी राठौड़ के सामने शरणागत होते हैं।
ऊँट के तत्काल अच्छे होने की मनोकामना करते हैं और जब उनका ऊँट अच्छा हो जाता है तब वे खुशी-खुशी पाबूजी की फड़ का आयोजन करवाते हैं। इस फड़ में अपने आस-पड़ोस के गांव या क्षेत्र के लोगों को भी बुलाते हैं।
उनकी फड़ आज भी बहुत ज्यादा प्रचलित है। क्षेत्रीय लोग अपने ऊंटो के स्वस्थ होने पर अपनी मनोकामना से पढ़ का आयोजन करवाते हैं। इन फड़ों का आयोजन आमतौर पर लोग अपने घरों में ही करवाते हैं।
पाबूजी की मृत्यु (Death of Pabuji)
पाबूजी राठौड़ की मृत्यु 1276 ईस्वी को राजस्थान में हुई थी। उन्होंने मात्र 37 वर्ष का जीवन जिया।
जब देवल चारणी नामक एक स्त्री ने अपनी गायों को छुड़वाने के लिए पाबूजी से प्रार्थना की, तब बाबूजी अपने विवाह से उठकर गायों को छुड़वाने के लिए रवाना हुए और वे अपने बहनोई जिंदराव खींची के खिलाफ युद्ध करते हुए शहीद हो गए।
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FAQs
पाबूजी राठौड़ राजस्थान के एक प्रसिद्ध लोक देवता है। वह एक राजपूत राठौड़ थे। ऐसा माना जाता है कि वह ही सर्वप्रथम रेगिस्थान में ऊंटों को लेकर आए थे। जिसकी वजह से लोकमानस उन्हें उंटो का देवता मानता है व अपने ऊंट के स्वस्थ होने पर उनकी फड़ लगाता है।
पाबूजी महाराज की दो बहन थी – पेमा और सोना।
पाबूजी महाराज की माता का नाम कमालदे था। उनके पिता का नाम धांधल जी राठौड़ था जो कि एक राजपूत थे।
पाबूजी राठौड़ का प्रतीक चिन्ह हाथ में भाला लिए अश्वारोही के रूप में प्रचलित हैं।
भोपे-भोपियाँ।