Chanakya Niti in Hindi Chapter 15th & 16th: नमस्कार दोस्तों, आज इस पोस्ट में हम आचार्य चाणक्य की नीति की बातों के अध्याय 15वें व 16वें को लेकर आए हैं जिन्हें पढ़कर आप को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। आचार्य चाणक्य प्राचीन भारत के एक महान विद्वानों में से एक है जिन्होंने तत्काल समय के हिसाब से अपनी नीति की बातों को लिखा जो वर्तमान समय में भी फिट बैठती हैं।
आचार्य चाणक्य की नीति की बातें लगभग आज से 24 वर्ष पहले लिखी गई थी आचार्य ने अध्याय 15 व 16 में मनुष्य के लिए बहुत ही अच्छे संदेश दिए हैं पढ़कर आप जरूर अपने दोस्तों के साथ शेयर करेंगे।
चाणक्य नीति के अन्य अध्याय पढने के लिए इस आर्टिक्ल के अंत में हमने लिंक दिये हैं। वहाँ से आप पढ सकते हैं।
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चाणक्य नीति की बातें अध्याय 15वां (Chanakya niti in Hindi chapter 15th)
आपके लिए हमने यहां चाणक्य नीति के 15वें अध्याय से नीति की बातों को संकलित किया है। 15 वें अध्याय में मुख्यतः प्राणी के चित्त से संबंधित चीजों को बताया गया है।
- जिसका चित्त सब प्राणियों पर दया से पिघल जाता है उसको ज्ञान से, मोक्ष से, जटा से और विभूति किए लेपन से क्या है।
- जो गुरु शिष्य को एक भी अक्षर का उपदेश करता है, पृथ्वी में ऐसा दृश्य नहीं है जिसको देकर शिष्य उससे उत्तीर्ण होय।
- कल और कांटा उनका कोई प्रकार का उपाय है – जत्ता से मुख का तोड़ना तथा दूर से त्याग देना।
- मलिन वस्त्र वाले को, जो दांतों के मल को दूर नहीं करता उसको, बहुत भोजन करने वाले को, कटु भाषी को, सूर्य के उदय और अस्त के समय में सोने वाले को लक्ष्मी छोड़ देती है, चाहे वह विष्णु भी हो।
- मित्र, स्त्री, सेवक और बंधुओं ये धनहीन पुरुष को छोड़ देते हैं और वही पुरुष यदि धनी हो जाता है तो फिर उसी का आश्रय करते हैं अर्थात धन ही लोक में बंधु है।
- अनीति से अर्जित धन 10 वर्ष तक ठहरता है, 11वें वर्ष के प्राप्त होने पर मूल सहित नष्ट हो जाता है।
- अयोग्य वस्तु भी समर्थ को योग्य होती है और योग्य भी दुर्जन को दूषण। अमृत ने राहु को मृत्यु दी, विष भी शंकर को भूषण हुआ।
- वही भोजन है जो ब्राह्मण के भोजन से बचा है। वही मित्रता है जो दूसरे में की जाती है। वही बुद्धिमानी है जो पाप नहीं करती और जो बिना दंभ के किया जाता है वही धर्म है।
- मणि पांव के आगे लौटती हो और कांच सिर पर भी रखा हो परंतु क्रय विक्रय के समय में कांच कांच ही रहता है और मणि मणि ही है।
- शास्त्र अनंत है और विद्या बहुत, काल थोड़ा है और विघ्न बहुत। इस कारण जो सार है उसको ले लेना उचित है जैसे हंस जल के मध्य से दूध को ले लेता है।
- दूर से आए को, पथ से थके हुए को और निरर्थक ग्रह पर आए को बिना पूछे जो खाता है वह चांडाल ही गिना जाता है।
- चारों वेद और अनेक धर्म शास्त्र पढ़ते हैं परंतु आत्मा को नहीं जानते जैसे करछी पाक के रस को।
- यह ब्राह्मण रूप नाव धन्य है। संसार रूप समुद्र में इसकी उल्टी ही रीति है उसके नीचे रहने वाले सब तैरते हैं और ऊपर रहने वाले नीचे गिरते हैं। अर्थात ब्राह्मण से जो नम्र रहता है वह तर जाता है और जो नम्र नहीं रहता वह नरक में गिरता है।
- अमृत का घर औषधियों का अधिपति जिसका शरीर अमृतमय और शोभा युत भी चंद्रमा सूर्य के मंडल में जाकर निस्तेज हो जाता है दूसरे के घर में बैठकर कौन लघुता नहीं पाता।
- यह भौंरा जब कमलिनी के पत्तों के मध्य था तब कमलिनी के फूल के रस से आलसी बना रहता था। अब देववश से परदेश में आकर तोरैया के फूल को बहुत समझता है।
- बंधन तो बहुत है, परंतु प्रीति की रस्सी का बंधन और ही है। काठ के छेदने में कुशल भी भौंरा कमल के कोश में निर्व्यापार हो जाता है।
- काटा चंदन का वृक्ष गंध को त्याग नहीं देता, बुड्ढा भी गजपति विलास को नहीं छोड़ता। कोलू में पेरी भी उंख मधुरता नहीं छोड़ती। दरिद्र भी कुलीन सुशीलता का त्याग नहीं करता।
चाणक्य नीति के 15वें अध्याय की बातों में से कुछ बातों को आपने पढ़ लिया है तो अब हम 16 वें अध्याय की ओर बढ़ते हैं।
चाणक्य नीति की बातें अध्याय 16वां (Chanakya niti in Hindi chapter 16th)
प्राचीन भारत की महान आचार्य चाणक्य नीति की बातों के 16वें अध्याय में संसार, इंद्रियों इत्यादि के बारे में बताया गया है। इसके अलावा आचार्य ने कई सारी बातें भी बताई है। तो आइए पढ़ते हैं 16वें अध्याय को –
- संसार से मुक्त होने के लिए विधि से, ईश्वर के पद का ध्यान मुझसे न हुआ, स्वर्गद्वार के कपाट के छोड़ने में समर्थ धर्म का भी अर्जन न किया और स्त्री के स्तनों व जंघाओं को आलिंगन स्वप्न में भी ने किया। मैं माता के युवापन रूप वृक्ष के केवल काटने में कुल्हाड़ी उत्पन्न हुआ।
- भाषण दूसरे के साथ करती है, दूसरे को विलास से देखती है और हृदय में दूसरे ही की चिंता करती है। स्त्रियों की प्रीति एक में नहीं रहती।
- जो मूर्ख है अविवेक से समझता है कि यह कामिनी मेरे ऊपर प्रेम करती है। वह उसके वश होकर खेल के पक्षी के समान नाचा करता है।
- धन पाकर गर्वी कौन है ना हुआ, किस विषय की विपत्ति नष्ट हुई, पृथ्वी में किस के मन को स्त्रियों ने खंडित नहीं किया, राजा को प्रिय कौन हुआ, काल के वर्ष कौन हुआ, किस याचक ने गुरुता पाई। दुष्ट की दुष्टता में पड़कर संसार के पंथ में कुशलता से कौन गया।
- सोने की मुर्गी ने पहले किसी ने रची, न देखी और ना किसी को सुन पड़ती है तो भी रघुनंदन की तृष्णा उस पर हुई। विनाश के समय बुद्धि विपरीत हो जाती है।
- प्राणी गुणों से उत्तमता पाता है उच्चे आसन पर बैठकर नहीं। कोठों के ऊपर के भाग में बैठा कौवा क्या गरूड़ हो जाता है।
- सब स्थानों में गुण पूजे जाते हैं बड़ी संपत्ति नहीं, पूर्णिमा का पूर्ण भी चंद्रमा क्या वैसा वंदित में होता है जैसा बिना कलंक के विद्या का दुर्लभ भी।
- जिस के गुणों को दूसरे लोग वर्णन करते हैं वह निर्गुण भी हो तो गुणवान कहा जाता है। इन्द्र भी यदि अपने गुणों की प्रशंसा करे तो उससे लघुता पाता है।
- विवेकी को पाकर गुण सुंदरता पाते हैं। जब रतन सोने में जड़ा जाता है तब अत्यंत सुंदर दिखाई पड़ता है।
- गुणों से ईश्वर के सदृश्य भी निरालंब अकेला पुरुष दुख पाता है। अमोल भी माणिक्य सोना के आलंब की अर्थ अर्थ उसमे जड़े जाने की उपेक्षा करता है।
- अत्यंत पीड़ा से, धर्म के त्याग से और वैरियों की प्रणति से जो धन होते हैं सो मुझको नहीं।
- उस संपत्ति से लोग क्या कर सकते हैं जो वधू के समान असाधारण है जो वेश्या के समान सर्वसाधारण हो। वह पथिकों के भोग में आसक्ती है।
- सब दान, यज्ञ, होम, बली ये सब नष्ट हो जाते हैं। सत्पात्र को दान और सब जीवो को अभयदान यह छीन नहीं होते।
- तृण सबसे लघु होता है तृण से रुई हल्की होती है। रुई से भी याचक तो उसे वायु क्यों नहीं उड़ा ले जाती। वह समझती है कि वह मुझसे भी मांगेगा।
- मानभंग पूर्वक जीने से प्राण का त्याग श्रेष्ठ है। प्राण त्याग के समय क्षण भर दुख होता है, मान के नाश होने पर दिन दिन।
- मधुर वचन के बोलने से सब जीव संतुष्ट होते हैं। इसी कारण उसी का बोलना योग्य है जो वचन में दरिद्रता क्या।
- संसार रूपकोट वृक्ष के दो ही फल हैं रसीला प्रिय वचन और सजन के साथ संगति।
- जो जन्म जन्म दान, पढ़ना, तप, इनका अभ्यास किया जाता है उस अभ्यास के योग से देहका फिर फिर करता है।
- जो विद्या पुस्तकों में ही रहती है और दूसरों के हाथों में जो धन रहता है, काम पड़ जाने पर न विद्या है न वह धन है।
चाणक्य नीति का 16वाँ अध्याय यहीं पर समाप्त होता है। अगर दोस्तों आपको चाणक्य नीति के अन्य अध्याय पढ़ने हैं तो आप हमारे नीचे दिए गए लिंक से पढ़ सकते हैं अगर आपका कोई भी सुझाव या फिर प्रश्न है तो हमें कमेंट करके बता सकते हैं।
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(Chanakya niti in Hindi chapter 15th, Chanakya niti in Hindi chapter 16th)