Bhagavad Gita quotes in Hindi – श्रीमद भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अपने शिष्य अर्जुन को जो उपदेश दिए थे उन उपदेशों को हमने इस पोस्ट में संकलित किया है।
अर्जुन अपने रथ पर भगवान श्री कृष्ण के चरणों में बैठे हैं और उनसे अपने मन के सारे प्रश्नों को पूछ रहे हैं। और इस संसार की बातों को जान रहे हैं। अर्जुन उन अनमोल वचनों को सुनकर दिव्य ज्ञान प्राप्त करते हैं। अंत में वे अपने लक्ष्य के प्रति स्पष्ट हो जाते हैं।
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भगवत गीता के अनमोल वचन 1-10 (Bhagavad Gita Quotes in Hindi 1-10)
श्रीमद भगवत गीता के अनमोल वचन (Bhagavad Gita quotes in Hindi) –
काम, क्रोध और लोभ – ये तीन आत्मनाशक नरक के द्वार हैं अतएव इन तीनों का त्याग करना चाहिए।
जो भक्तिमान मनुष्य शत्रु-मित्र, मान-अपमान, शीत-उष्ण, सुख-दुख में समभाव है; जिनकी वाणी संयत है; जो कुछ प्राप्त होता है उसी से संतुष्ट रहते हैं, गृहासक्ति रहित तथा स्थिर बुद्धि वाले हैं; वह मेरे प्रिय हैं।
जिस प्रकार सर्वत्र अवस्थित आकाश सूक्ष्म होने के कारण लिप्त नहीं होता है, उसी प्रकार संपूर्ण देह में अवस्थित परमात्मा भी देह के गुण दोष आदि से लिप्त नहीं होते हैं।
नाना मनोरथों द्वारा विक्षिप्त, मोह जाल से आवृत तथा विषय भोगों में अत्यंत आसक्त वे व्यक्तिगण अपवित्र नर्क में पतित होते हैं।
हे अर्जुन! दोष युक्त होने पर भी स्वाभाविक कर्म नहीं त्यागना चाहिए क्योंकि सभी कर्म दोष के द्वारा उसी प्रकार आवृत है जिस प्रकार आग धुएं के द्वारा।

ब्रह्म में अवस्थित प्रसन्न चित्त व्यक्ति न तो शौक करते हैं और ना ही आकांक्षा करते हैं। वे सभी भूतों में समदर्शी होकर प्रेमलक्षण युक्त मेरी भक्ति प्राप्त करते हैं।
वर्ण, आश्रम आदि समस्त शारीरिक और मानसिक धर्मों का परित्याग कर एकमात्र मेरी शरण ग्रहण करो। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा, तुम शौक मत करो।
श्यामसुंदराकार मुझमें ही मन को स्थिर करो, मुझ में बुद्धि को अर्पित करो, इस प्रकार से देह के अंत होने पर मेरे समीप ही वास करोगे – इसमें कोई संदेह नहीं है।
हे धनंजय! यदि तुम मुझ में चित्त को स्थिर भाव से स्थापित नहीं कर सकते हो तो अभ्यास योग द्वारा मुझे पाने की इच्छा करो।
जिनसे कोई उद्वेग को प्राप्त नहीं होते हैं तथा जो किसी से उद्वेग प्राप्त नहीं करते हैं एवं जो प्राकृत हर्ष, असहिष्णुता, भय और उद्वेग से मुक्त हैं, वे मेरे प्रिय हैं।
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भगवत गीता के अनमोल वचन 11-20 (Bhagavad Gita Quotes in Hindi 11-20)
श्रीमद भगवत गीता के अनमोल वचन (Bhagavad Gita quotes in Hindi) –

हे अर्जुन! समस्त क्षेत्रों में मुझे ही क्षेत्रज्ञ जानो। देहरूप क्षेत्र, जीव और स्वरूप क्षेत्र का जो तत्वज्ञान है, मेरे मत में वही ज्ञान है।
वह तत्व विषयों के द्वारा अनेक प्रकार से वर्णित हुआ है, विविध वेदवाक्यों द्वारा पृथक-पृथक रूप से कीर्तित हुआ है एवं युक्ति पूर्ण, निश्चित सिद्धांत युक्त वाक्यों में ब्रह्मसूत्र के पदों द्वारा कीर्तित हुआ है।
जो जानने योग्य है तथा जिसे जानकर मोक्ष प्राप्त होता है उसे भलीभांति कहूंगा। वह आदिरहित, मेरा आश्रित ब्रह्म कार्य अतीत तथा कारण अतीत कहा जाता है।
वह ज्ञेय वस्तु सभी इंद्रियों एवं गुणों का प्रकाशक है, किंतु स्वयं प्राकृत इंद्रियों से रहित है। वह अनासक्त होकर भी सबका पालक प्राकृतिक गुण रहित होने पर भी षट्ट ऐश्वर्या गुणों का भोक्ता है।
वह वस्तु अखंड होकर भी सभी इंसानों में खंड की भांति अवस्थित है, तुम उसे सभी मनुष्यों का पालक, सहायक तथा सृष्टि कर्ता जानो।

प्रकृति व पुरुष दोनों को ही अनादि जानो एवं विकाससमूह और गुणसमूह को प्रकृति से ही उत्पन्न जानो।
जड़ीय कार्य और कारण के कर्त्तृत्व के विषय में प्रकृति को हेतु कहा जाता है तथा जड़िय सुख-दुख आदि के भोक्तृत्व के विषय में पुरुष (बुद्धिजीवी) को ही हेतु कहा जाता है।
प्रकृति में अवस्थित होकर ही पुरुष प्रकृति से उत्पन्न विषय समूह का भोग करता है तथा प्रकृति के गुणों का संघ ही सत्-असत् योनियों में इस पुरुष के जन्म का कारण है।
इस देह में जीव आत्मा से भिन्न पुरुष साक्षी, अनुमोदनकारी, धारक, पालक, महेश्वर और परमात्मा इत्यादि भी कहे जाते हैं।
भक्तगण भगवत् चिंता द्वारा स्वयं ही हृदय में परम पुरुष का दर्शन करते हैं। ज्ञानी गण संख्या योग द्वारा, योगी गण अष्टांग योग द्वारा एवं कोई कोई निष्काम कर्म योग द्वारा भी उनके दर्शन की चेष्टा करते हैं।
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भगवत गीता के अनमोल वचन 21-30 (Bhagavad Gita Quotes in Hindi 21-30)
श्रीमद भगवत गीता के अनमोल वचन (Bhagavad Gita quotes in Hindi) –

हे अर्जुन! प्रकृति से उत्पन्न सत्व, रज और तम – ये तीन गुण शरीर में अवश्य निर्विकार देही अर्थात जीव को बांधते हैं।
किंतु कुछ अन्य लोग इस प्रकार तत्वों को न जानकर अन्य आचार्यों के निकट उपदेश श्रवणकर उपासना करते हैं, वे भी श्रवणनिष्ठ होकर क्रमशः मृत्यु रूप संसार का अवश्य अतिक्रमण करते हैं।
जो सभी भूतों में समभाव से अवस्थित, विनाशशीलों में अविनाशी परमेश्वर को देखते हैं, वे ही यथार्थ दर्शी हैं।
जो सभी कर्मों को प्रकृति के द्वारा ही संपादित देखते हैं तथा आत्मा को अकर्ता देखते हैं वही यथार्थ में देखते हैं।
हे कौन्तेय! अनादि तथा निर्गुण होने के कारण यह अव्यय परमात्मा शरीर में स्थित होकर भी न कर्म करते हैं और न ही कर्मफल से लिप्त होते हैं।

मेरा ही विभिन्न अंश सनातन जीव, इस जगत में, प्रकृति में स्थित होकर मन और पांच इंद्रियों को आकर्षित करता है।
हे कुरु नंदन! विवेक का अभाव, प्रयत्न हीनता, अन्यमनस्कता, मिथ्या अभिनिवेश आदि – ये सब तमोगुण की वृद्धि होने पर उत्पन्न होते हैं।
श्री भगवान ने कहा – यह संसार ऊपर की ओर जड़ वाला तथा नीचे की ओर शाखाओं वाला अश्वत्थ वृक्ष विशेष है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। कर्म का प्रतिपादन करने वाले भी वाक्य समूह जिसके पत्ते हैं जो उसे जानते हैं, वे वैदज्ञ हैं।
इस जगत में संसार वृक्ष का स्वरूप पूर्वोक्त प्रकार से नहीं उपलब्ध होता है। इसका आदि और अंत नहीं देखा जा सकता है तथा इसकी स्थिति भी समझ में नहीं आती है। अत्यंत दृढ़ मूल वाले इस संसार वृक्ष को तीव्र वैराग्यरूप कुठार से छेदन करने के पश्चात संसार के मूल उस श्रीमदभगवत पादपद्म का अन्वेषण करना कर्तव्य है।
जिस वस्तु को प्राप्त कर शरणागत व्यक्तियों का पुनरागमन नहीं होता है वह मेरा सर्वप्रकाशक तेज है, उसे सूर्य, चंद्र, अग्नि इत्यादि कोई प्रकाशित नहीं कर सकता है।
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भगवत गीता के उपदेश (Updesha from Bhagavad Gita in Hindi)
भगवत गीता के उपदेश (Bhagavad Gita Updesha)

अविवेकी मूढ़ लोग देह जाने के समय अथवा रहते समय अथवा विषय भोग के समय इंद्रियों से समन्वित इस जीव को नहीं देख पाते हैं किंतु विवेकी लोग इसे देख पाते हैं।
इंद्रियों का स्वामी देही जीव जिस शरीर को प्राप्त करता है और जिस शरीर से बहिर्गत होता है, अपनी छह इंद्रियों के साथ उसी प्रकार का गमन करता है जिस प्रकार वायु पुष्प आदि से गंध लेकर गमन करती है।
यह जीव कान, आंख, त्वचा, जीह्वा, नासिका और मन का आश्रयकर शब्द विषयों का उपभोग करता है।
मैं सभी प्राणियों के हृदय में अंतर्यामी के रूप में प्रविष्ट हूं। मुझसे ही स्मृति, ज्ञान तथा दोनों का नाश होता है। सभी वेदों में एकमात्र मैं ही जानने योग्य हूं। मैं ही वेदांतकर्ता हूं और वैदज्ञ हूं।
हे अर्जुन! जो इस प्रकार मोहशून्य होकर मुझे पुरुषोत्तम जानते हैं, वे सर्वज्ञ हैं एवं सभी प्रकार से मुझे ही भजते हैं।
Bhagavad Gita quotes in Hindi

जो शास्त्रीय विधियों का उल्लंघन कर स्वेच्छाचारवश कार्य में प्रवृत्त होता है, वह न तो सिद्धि, न सुख और न ही परागति को प्राप्त करता है।
हे पार्थ! दंभ, दर्प, अभिमान, क्रोध, निष्ठुरता और अविवेक आसुरी संपद, अभिमुख उत्पन्न व्यक्ति में होते हैं, अर्थात असत्-जात व्यक्ति को ये आसुरी संपद प्राप्त होते हैं।
मैं साधुओं से द्वेष रखने वाले, क्रूर और अशुभ कर्म करने वाले तथा नराधम उन सबको संसार में आसुरी योनियों में अनवरत निक्षेप करता हूं।
सात्विक गुणों वाले लोग देवताओं की पूजा करते हैं जो कि सात्विक हैं। रजोगुण वाले लोग यक्ष और राक्षसों की पूजा करते हैं जो कि राजसी है व तमोगुण वाले लोग भूत प्रेतों की पूजा करते हैं जो कि तामसी है।
चित्त की प्रसन्नता, सरलता, मौन, चित्त का संयम, व्यवहार में निष्कपटता – ये सब मानसिक तप कहलाते हैं।
Bhagavad Gita quotes in Hindi
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प्रत्युपकार करने में असमर्थ व्यक्ति को, तीर्थ आदि स्थानों में, पुण्य काल में एवं योग्य पात्र को दान देना कर्तव्य है – इस प्रकार निश्चयकर जो दान दिया जाता है, वह सात्विक कहलाता है।
किंतु जो दान प्रत्युपकार की आशा से, फल के उद्देश्य से अथवा बाद में पछतावे के साथ दिया जाता है वह दान राजस कहलाता है।
जो दान अयोग्य स्थान और अयोग्य समय में तथा अयोग्य पात्रों को तिरस्कार पूर्वक तथा अवज्ञा पूर्वक दिया जाता है वह तामस कहलाता है।
हे पार्थ! ये सभी कर्म भी कर्तापन के अभिमान और फल आकांक्षा से रहित होकर करना ही कर्तव्य है, यह मेरा निश्चित उत्तम मत है।
मानव काया, वाक्य और मन के द्वारा धर्मयुक्त या अधर्मयुक्त्त जो कुछ कर्म करता है, ये पांच ही उसके कारण है।
Bhagavad Gita quotes in Hindi

मेरे एकांत भक्त सर्वदा समस्त कर्म करने पर भी मेरी कृपा से नित्य अव्यय वैकुंठ धाम प्राप्त करते हैं।
जिनका कर्त्तापन का अभिमान नहीं है और उनकी बुद्धि कर्मफल में आसक्त नहीं होती, वे समस्त प्राणियों की हत्या करने पर भी वस्तुत: हत्या नहीं करते हैं एवं उस फल में आबद्व भी नहीं होते हैं।
ज्ञान, ज्ञेक्ष और परिज्ञाता – ये तीन कर्म प्रवृत्ति के कारण हैं। करण, कर्म और कर्ता – ये तीन कर्म के आश्रय हैं।
शम, दम, तप, शौच, सहिष्णुता, सरलता, ज्ञान-विज्ञान और आस्तिकता – ये सब ब्राह्मणों के स्वभाव से उत्पन्न कर्म हैं।
मैं जिस प्रकार विभूति संपन्न हूं और मेरा जो स्वरूप है उसे भक्ति द्वारा ही तत्वत: जान सकते हैं। उस प्रेमा भक्ति के बल से मुझे जान कर भी मेरी नित्य लीला में प्रवेश करते हैं।
Bhagavad Gita quotes in Hindi

मनुष्य में गीता की व्याख्या करने वाले की अपेक्षा और कोई मेरा प्रिय कार्य रचना करने वाला नहीं है और समस्त जगत में उनकी अपेक्षा अधिक प्रियतर और कोई नहीं होगा।
जो श्रद्वावान और द्वेष रहित व्यक्ति इसका श्रवण भी करते हैं। वे पाप मुक्त होकर पुण्य कर्मियों को प्राप्त होने वाले शुभ लोकों को प्राप्त करते हैं।
जहां योगेश्वर श्रीकृष्ण तथा धनुर्धर अर्जुन हैं, वहीं श्री राज्य लक्ष्मी विजय ऐश्वर्य वृद्धि और न्याय परायणता विद्यमान है यही मेरा निश्चित मत है।
हे राजन्! श्री हरि के उस अत्यंत अद्भुत रूप का बारंबार स्मरण कर मैं परम विस्मित हो रहा हूं और पुनः पुनः हर्षित तथा रोमांचित हो रहा हूं।
संजय ने कहा – इस प्रकार मैंने महात्मा वासुदेव तथा पार्थ के बीच हुए इस अद्भुत रोमांचकारी संवाद को सुना।
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