"काम, क्रोध और लोभ – ये तीन आत्मनाशक नरक के द्वार हैं अतएव इन तीनों का त्याग करना चाहिए।"
"काम, क्रोध और लोभ – ये तीन आत्मनाशक नरक के द्वार हैं अतएव इन तीनों का त्याग करना चाहिए।"
श्रीमद् भगवत गीता
श्रीमद् भगवत गीता
हरा सूरज
ज़्यादा जानें
"हे अर्जुन! दोष युक्त होने पर भी स्वाभाविक कर्म नहीं त्यागना चाहिए क्योंकि सभी कर्म दोष के द्वारा उसी प्रकार आवृत है जिस प्रकार आग धुएं के द्वारा।"
"हे अर्जुन! दोष युक्त होने पर भी स्वाभाविक कर्म नहीं त्यागना चाहिए क्योंकि सभी कर्म दोष के द्वारा उसी प्रकार आवृत है जिस प्रकार आग धुएं के द्वारा।"
श्रीमद् भगवत गीता
श्रीमद् भगवत गीता
ज़्यादा जानें
"हे अर्जुन! प्रकृति से उत्पन्न सत्व, रज और तम – ये तीन गुण शरीर में अवश्य निर्विकार देही अर्थात जीव को बांधते हैं।"
"हे अर्जुन! प्रकृति से उत्पन्न सत्व, रज और तम – ये तीन गुण शरीर में अवश्य निर्विकार देही अर्थात जीव को बांधते हैं।"
श्रीमद् भगवत गीता
श्रीमद् भगवत गीता
ज़्यादा जानें
"चित्त की प्रसन्नता, सरलता, मौन, चित्त का संयम, व्यवहार में निष्कपटता – ये सब मानसिक तप कहलाते हैं।"
"चित्त की प्रसन्नता, सरलता, मौन, चित्त का संयम, व्यवहार में निष्कपटता – ये सब मानसिक तप कहलाते हैं।"
श्रीमद् भगवत गीता
श्रीमद् भगवत गीता
ज़्यादा जानें
"जहां योगेश्वर श्रीकृष्ण तथा धनुर्धर अर्जुन हैं, वहीं श्री राज्य लक्ष्मी विजय ऐश्वर्य वृद्धि और न्याय परायणता विद्यमान है यही मेरा निश्चित मत है।"
"जहां योगेश्वर श्रीकृष्ण तथा धनुर्धर अर्जुन हैं, वहीं श्री राज्य लक्ष्मी विजय ऐश्वर्य वृद्धि और न्याय परायणता विद्यमान है यही मेरा निश्चित मत है।"
श्रीमद् भगवत गीता
श्रीमद् भगवत गीता
यहाँ क्लिक करें