आचार्य चाणक्य (Acharya Chanakya) को अर्थशास्त्र का जनक कहा जाता है। इसके अलावा आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति की भी रचना की थी। चाणक्य नीति में कौटिल्य ने अपने विचारों व सिद्धांतों को बताया है।
उनकी बुद्धि इतनी तेज थी कि उन्होंने चंद्रगुप्त को भारत का राजा बनाया और अखंड भारत का निर्माण किया। चंद्रगुप्त जो कि एक सामान्य सा बालक था उसने आचार्य चाणक्य की छत्रछाया में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी।
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चाणक्य नीति अध्याय 3वां (Chanakya Niti Quotes Chapter 3rd in Hindi )
चाणक्य नीति (Chanakya Niti) के तीसरे अध्याय की बातों को हमने तीन भागों में बांटा है – शिक्षा, व्यवहार और जीवन. आचार्य चाणक्य ने ये बातें अपने सिद्धांतों और विचारों से कही थी जो आज भी इस समाज में अपना महत्व रखती हैं। आचार्य चाणक्य मानते हैं कि अगर आपका साथी एक सज्जन व्यक्ति और समझदार व्यक्ति नहीं है तो वह आप को ले डूबेगा। ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए।
गुरुदेव चाणक्य ने शिक्षा पर बहुत ज्यादा जोर दिया है। उस समय में भी शिक्षा का बहुत ज्यादा महत्व था जो आचार्य चाणक्य की बातों (Chanakya Niti) से पता चलता है।
- “आचार कुल को बताता है, बोली देश को जताती है,
आदर प्रीति का प्रकाश करता है, शरीर भोजन को जताता है।” - “सुंदरता, तरुणता और बड़े कुल में जन्म होते हुए भी विद्याहीन पुरुष
बिना गंध पलाश ढाक के फूल के समान नहीं शोभते।” - “कन्या को श्रेष्ठ कुल वालों को देना चाहिए, पुत्र को विद्या में लगाना चाहिए,
शत्रु को दुख पहुंचाना उचित है, और मित्र को धर्म का उपदेश करना चाहिए।” - “ कोकिलों की शोभा स्वर है, स्त्रियों की शोभा पतिव्रता है,
कुरूपों की शोभा विद्या है, तपस्वियों की शोभा क्षमा है।” - “समर्थ को कौन वस्तु भारी है, काम में तत्पर रहने वाले को क्या दूर है,
सुंदर विद्या वालों को कौन विदेश है, प्रियवादियों को अप्रिय कौन है।” - “ पुत्र को 5 वर्ष तक दुलारे, उपरांत 10 वर्ष पर्यंत ताडन करें,
16 वर्ष की प्राप्ति होने पर पुत्र से मित्र समान आचरण करें।” - “विद्या युक्त भला एक भी सुपुत्र हो उससे
सब कुल आनंदित हो जाता है, जैसे चंद्रमा से रात्रि।”
- “दुर्जन और सर्प, इन में सांप अच्छा दुर्जन नहीं है
क्योंकि सांप काल आने पर काटता है जबकि दुर्जन बार-बार काटता है।” - “मूर्ख को दूर करना उचित है क्योंकि देखने में वह मनुष्य है परंतु यथार्थ देखें
तो दो पांव का पशु है और वाक्य रूप कांटे को बेधता है, जैसे अंधे को कांटा।” - “समुद्र प्रलय के समय में अपनी मर्यादा को छोड़ देते हैं और सागर भेद की इच्छा रखते हैं
परंतु साधु लोग प्रलय होने पर भी अपनी मर्यादा को नहीं छोड़ते।” - “उपद्रव उठने पर, शत्रु के आक्रमण करने पर, अचानक काल पड़ने पर
और खल जन के संग होने पर जो भागता है वह जीवित रहता है।” - “धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इनमें से जिसको कोई भी न भया
उसको मनुष्य में जन्म होने का फल केवल मरण ही हुआ।” - “राजा कुलीन लोगों का संग्रह इस निमित्त करते हैं
कि वे उन्नति, साधारण और विपत्ति में राजा को नहीं छोड़ते।” - “किसके कुल में दोष नहीं है, व्याधि ने किसी पीड़ित न किया,
किसको दुख नहीं मिला, किसको सदा सुख ही रहा।”
- “जहां मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहां अन्न संचित रहता है,
और जहां स्त्री पुरुष में कलह नहीं होता वहां अपने आप ही लक्ष्मी विराजमान रहती हैं।” - “आग से जलते हुए एक ही सूखे वृक्ष से सब वन ऐसे जल जाते हैं जैसे कुपुत्र से कुल।”
- “उपाय करने पर दरिद्रता नहीं रहती, जपने वाले को पाप नहीं रहता,
मौन रहने से कलह नहीं होता और जागने वाले के निकट भय नहीं होता।” - “अति सुंदरता के कारण सीता हरी गई, अति गर्व से रावण मारा गया,
बहुत दान देकर बलि को बंधना पड़ा, इस हेतु अति को सब स्थल में छोड़ देना चाहिए।” - “एक भी अच्छे वृक्ष से जिसमें सुंदर फल और गंद है
इससे सब वन सुवासित हो जाता है जैसे सुपुत्र से कुल।” - “कुल के निमित्त एक को छोड़ देना चाहिए, ग्राम के हेतु कुल का त्याग उचित है,
देश के अर्थ ग्राम का और अपने अर्थ पृथ्वी का अर्थात सब का त्याग ही उचित है।” - “शोक संताप करने वाले उत्पन्न बहु पुत्रों से क्या?
कुल को सहारा देने वाला एक ही पुत्र श्रेष्ठ है जिसमें कुल विश्राम पाता है।”
चाणक्य नीति अध्याय 4वां (Chanakya Niti Quotes Chapter 4th in Hindi)
आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति (Chanakya Niti) में अपनी बातों को कई अध्यायों के माध्यम से बताया है। तो हमने अध्याय 4 की बातों को यहां पर संकलित किया है। अध्याय 4 में बताई गई सारी चाणक्य नीति की बातों को हमने तीन भागों में विभाजित किया है जो आप यहां से पढ़ सकते हैं।
आचार्य चाणक्य ने एक इंसान के खुशहाल जीवन के लिए कई सारी चीजें बताई हैं। हालांकि ये बातें (Chanakya Niti) पुराने समय की है, परंतु आप इनसे कुछ सीख सकते हैं।
- “निपुत्री का घर सूना है, बंधु रहित दिशा शून्य है,
मूर्ख का हृदय शून्य है और सर्व शून्य दरिद्रता है।” - “जबलों देह निरोग है और तबलग मृत्यु दूर है,
तत्पर्यंत अपना हित पुण्यादि करना उचित है, प्राण के अंत हो जाने पर कोई क्या करेगा।” - “कुग्राम में वास, नीच कुल की सेवा, कुभोजन, कलही स्त्री, मूर्ख पुत्र, विधवा कन्या
ये छः बिना आग ही शरीर को जलाते हैं।” - “संसार के ताप से जलते हुए पुरुषों के विश्राम के हेतु तीन जगह हैं – लड़का, स्त्री और सज्जनों की संगति।”
- “वही भार्या है जो पवित्र और चतुर है, वही भार्या है जो पतिव्रता है,
वही भार्या है जिस पर पति की प्रीति है, वही भार्या है जो सत्य बोलती हैं
अर्थात दान, मान, पोषण पालने के योग्य है।” - “मनुष्यों को बुड्ढा पन पथ है, घोड़ों को बांधे रखना वृद्धता है,
स्त्रियों को अमैथुन बुढ़ापा है और वस्त्रों को घाम वृद्धता है।”
- “विद्या में कामधेनु के समान गुण हैं क्योंकि यह अकाल में भी फल देती है,
विदेश में माता के समान है, विद्या को गुप्त धन कहते हैं।” - “यह निश्चय है कि आयुर्दाय, कर्म, धन, विद्या, और मरण
ये पांचों जब जीव गर्भ ही में रहता है तभी लिख दिए जाते हैं।” - “उस गाय से क्या लाभ है जो ने दूध देवी न गाभिन होवे
ऐसे पुत्र हुए से क्या लाभ जो न विद्वान भया न शक्तिमान।” - “अकेले में तप, दो से पढ़ना, तीन से गाना, चार से पंथ में चलना,
पांच से खेती और बहुतों से युद्ध भली भांति से बनते हैं।” - “दया रहित धर्म को छोड़ देना चाहिए, विद्या विहीन गुरु का त्याग उचित है,
जिसके मुंह क्रोध प्रकट होता है ऐसी भार्या को अलग करना चाहिए और
बिना प्रीति बंधुओं का त्याग विहित है।” - “किस काल में क्या करना चाहिए, मित्र कौन है, देश कौन है, लाभ व्यय क्या है,
किस का मैं हूं, मुझमें क्या शक्ति है, यह बार-बार विचारने योग्य है।”
- “बिना अभ्यास से शास्त्र विष हो जाता है, बिना पचे भोजन विष हो जाता है,
दरिद्र की गोष्टी विष और वृद्ध को युवती विष जान पड़ती है।” - “पुत्र, मित्र, बंधु ये साधु जनों से निवृत हो जाते हैं और जो उनका संग करते हैं
उनकी पुण्य से उनका कुल विकसित हो जाता है।” - “मछली, कछुआ और पक्षी के दर्शन, ध्यान, और स्पर्श से बच्चों को सर्वदा पालते हैं
वैसे ही सज्जनों की संगति।” - “एक ही गुणी पुत्र श्रेष्ठ है सो सैकड़ों गुण-रहितों से क्या?
एक ही चांद अंधकार को नष्ट कर देता है, सहस्त्र तारों से नहीं।” - “मूर्ख जातक चिरंजीवी भी हो उससे उत्पन्न होते ही जो मर गया वह श्रेष्ठ है
क्योंकि जो मरा है वह थोड़े ही दुख का वह कारण होता है जब जवलों जीता है तबलों दाहता रहता है।” - “राजा लोग एक ही बार आज्ञा देते हैं, पंडित लोग एक ही बार बोलते हैं,
कन्यादान एक ही बार होता है, यह तीनों बात एक ही बार होती है।” - “ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य उनका देवता अग्नि है। मनुष्य के हृदय में देवता रहता है।
अल्प बुद्धियों के मूर्ति और समदर्शियों को सब स्थान में देवता है।”
अगर आपने चाणक्य नीति (Chanakya Niti) के अन्य अध्याय नहीं पढ़ें है तो आप यहां से पढ़ सकते हैं:
चाणक्य नीति का अध्याय | चाणक्य नीति का अध्याय |
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पहला व दूसरा | तीसरा व चौथा |
पांचवा व छठा | सातवां व आठवां |
नवां व दसवां | ग्यारहवां व बारहवां |
तेरहवां व चौदहवां | पंद्रहवां व सोलहवां |
सत्रहवाँ अध्याय |
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