नमस्कार दोस्तों, आज हम चाणक्य नीति के पहले अध्याय से कुछ विशेष बातें आपके लिए लेकर आए हैं। चाणक्य नीति (Chanakya Niti) की बातें हमें बहुत सारी बातें सिखायेगी। ये बाते हमारे जीवन और समाज से जुड़ी हुई है।
चाणक्य जी ने जिन्होंने ‘चाणक्य नीति (Chanakya Niti)’ किताब लिखी थी। वे भारतीय इतिहास में बहुत प्रसिद्ध व्यक्ति रहे हैं। उनकी प्रतिभा व्यक्तित्व, और ज्ञान अद्वितीय था। उनका अखंड भारत का एक सपना था जो उन्होंने पूरा करके दिखाया।
चाणक्य के शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य ने भारतवर्ष पर मौर्य साम्राज्य का एकाधिकार परचम लहराया। उनकी छत्रछाया में ही चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने शासन को स्थापित किया था।
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चाणक्य नीति अध्याय 1वा (Chanakya Niti Quotes Chapter 1st in Hindi)
कौटिल्य (चाणक्य) के द्वारा लिखा गया अध्याय एक की बातें हमने यहां पर संकलित की है। चाणक्य नीति (Chanakya Niti) की बातें आज से लगभग 2400 वर्ष पूर्व लिखी गई थी।
- “तीनों लोकों के पालन करने वाले सर्वशक्तिमान विष्णु को सिर से प्रणाम करके
अनेक शास्त्रों में से निकालकर राजनीति समुच्चय नामक ग्रंथ कहता हूं।”
- “जो इसको विधिवत पढ़कर धर्मशास्त्र में प्रसिद्ध शुभ कार्य और अशुभ कार्य को जानता है।
वह अति उत्तम गिना जाता है।”
- “मैं लोगों के हित की वांछा से उसको कहूंगा जिसके ज्ञान मात्र से सर्वज्ञता प्राप्त हो जाती है।”
- “ निर्बुद्धि शिष्य को पढ़ाने से, दुष्ट स्त्री के पोषण से और दुखियों के साथ व्यवहार करने से पंडित भी दुख पाता है।”
- “दुष्ट स्त्री, मूर्ख मित्र, उत्तर देने वाला दास और सांप वाले का घर में वास।
ये मृत्यु स्वरूप ही है, इसमें कोई संशय नहीं है।”
- “विपत्ति निवारण के लिए धन की रक्षा करना उचित है। क्योंकि श्री मानो कोमी आपत्ति आती है। हां, कभी कभार दैवयोग और चंचल होने से संचित लक्ष्मी भी नष्ट हो जाती है।”
- “जिस देश में ने आदर, न जीविका, न बंधु, न विद्या का लाभ है, वहां वास नहीं करना चाहिए।”
- “धनिक, वेद का ज्ञाता – ब्राह्मण, राजा, नदी और पांचवां वैद्य ने पांच जहां विद्यमान नहीं है। वहां एक दिन भी वास नहीं करना चाहिए।”
- “जीविका, भय, लज्जा, कुशलता, देने की प्रकृति, जहां ये पांच नहीं है,
वहां के लोगों के साथ संगति नहीं करनी चाहिए।”
- “काम में लगाने पर सेवकों की, दुख आने पर बंधुओं की, विपत्ति काल में मित्र की और
विभव के नाश होने पर स्त्री की परीक्षा हो जाती है।”
- “आपत्ती निवारण करने के लिए धन को बताना चाहिए। धन से भी स्त्री की रक्षा करनी चाहिए।
सब काल में स्त्रियों और धनों से भी ऊपर, अपनी रक्षा करनी चाहिए।”
- “अतुर होने पर, दुख प्राप्त होने पर, काल पड़ने पर, बैरियों से संकट आने पर,
राजा के समीप और श्मशान पर जो साथ रहता है, वही बंधु है।”
- “जो निश्चित वस्तुओं को छोड़कर अनिश्चित की सेवा करता है।
उसकी निश्चित वस्तुओं का नाश हो जाता है और अनिश्चित तो नष्ट ही है।”
- “बुद्धिमान उत्तम कुल की कन्या कुरुपा भी हो तो उसे अपनाएं,
नीच कुल की सुन्दरी भी हो तो उसको नहीं,
इस कारण के विवाह तुल्य कुल में विहित है।”
- “नदियों का, शस्त्र धारियों का नाक वाले और सिंह वाले जंतुओं का,
स्त्रियों में और राजकुल पर विश्वास नहीं करना चाहिए।”
- “विष में से भी अमृत को,अशुद्ध पदार्थों में से भी सोने को,
नीच से भी उत्तम विद्या को और दुष्ट कुल से भी स्त्री रत्न को लेना अयोग्य है ।”
- “पुरुष से स्त्रियों का अहार दूना, लज्जा चौगुनी, साहस 6 गुना और काम 8 गुना अधिक होता है।”
चाणक्य नीति की बातें अध्याय 2वां (Chanakya Niti Chapter 2nd in Hindi )
कौटिल्य के द्वारा लिखी गई अध्याय 2 में बातें जो चाणक्य नीति (Chanakya Niti) को दिखाती हैं। वे बातें हमने यहां पर संकलित की है।
- “असत्य, बिना विचार किसी काम में झटपट लग जाना,
छल, मूर्खता, लोभ, अपवित्रता और निर्दयता ये स्त्रियों के स्वाभाविक दोष है।”
- “भोजन योग्य पदार्थ और भोजन की शक्ति,
सुंदर स्त्री, और रति की शक्ति, ऐश्वर्य और दान शक्ति,
इनका होना छोड़े तप का फल नहीं है ।”
- “जिसका पुत्र वश में रहता है और स्त्री इच्छा के अनुसार चलता है
और जो विभव में संतोष रखता है, उसको स्वर्ग यहाँ ही है।”
- “वही पुत्र है जो पिता का भक्त है, वही पिता है जो पालन करता है,
वही मित्र है जिस पर विश्वास है, वही स्त्री है जिससे सुख प्राप्त होता है।”
- “आंख के ओट होने पर काम बिगाड़े, सन्मुख होकर मीठी-मीठी बाते बना कर कहे,
ऐसे मित्र को मुंहुडे पर दूध से और विष से भरे घड़े के समान छोड़ देना चाहिए।”
- “कुमित्र पर विश्वास तो किसी प्रकार से नहीं करना चाहिए और सुमित्र पर भी विश्वास नहीं रखे हैं।
इसका कारण यह है कि कदाचित मित्र रुष्ट हो जाए तो सब बातों को प्रसिद्ध कर दे।”
- “मन से सोचे हुए काम का प्रकाश वचन से न करें,
किंतु मंत्र से उसकी रक्षा करें और गुप्त ही उस कार्य को काम में भी लावे।”
- “मूर्खता दुख देती है और युवापन भी दुख देता है, परंतु दूसरे के ग्रह का वास तो बहुत ही दुख दायक होता है।”
- “सब पर्वतों पर माणिक्य नहीं होता और मोती सब हाथियों में नहीं मिलता।
साधु लोग सब स्थानों में नहीं मिलते और सब वन में चंदन नहीं होता।”
- “बुद्धिमान लोग लड़कों को नाना भांति कि सुशीलता में लगावे।
इसका कारण यह है कि नीति को जानने वाले यदि शीलवान हो जाए तो वे कुल में पूजित होते हैं।”
- “वह माता शत्रु और पिता बैरी है जिसने अपने बालक को ने पढ़ाया।
इसका कारण यह है कि सभी के बीच वे ऐसे शोभते हैं जैसे हंसों के बीच बकुल।”
- “दुलार देने से बहुत दोष होते हैं और दंड देने से बहुत गुण।
इस हेतु पुत्र और शिष्य को दंड देना उचित है, लालना नहीं।”
- “श्लोक या श्लोक के अर्थ को या अर्थ में से ज्ञान को प्रतिदिन पढ़ना उचित है,
इसका कारण यह है कि दान, अध्ययन आदि कर्म से दिन को सार्थक करना चाहिए।”
- “स्त्री का विरह, अपने जनों से अनादर, युद्ध करके बचा शत्रु, कुत्सित राजा की सेवा, दरिद्रता और अविवेकियों की सभा,
ये सब बिना आग के ही शरीर को जलाते हैं।”
- “नदी के तीर वृक्ष, दूसरों के घर में जाने वाली स्त्री, मंत्रीरहित राजा,
निश्चय है कि शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।”
- “ब्राह्मणों का बल विद्या है, वैसे ही राजा का बल सेना,
वैश्यों का बल धन और शूद्रों का बल सेवा।”
- “वैश्या निर्धन पुरुष को, प्रजा शक्तिहीन राजा को, पक्षी फलरहित वृक्ष को
और अभ्यागत भोजन करके घर को छोड़ देते हैं।”
- “ब्राह्मण दक्षिणा लेकर यजमान को त्याग देते हैं, शिष्य विद्या प्राप्त हो जाने पर गुरु को,
वैसे ही मृग जले हुए वन को छोड़ देते हैं ।”
- “जिसका आचरण बुरा है, जिसकी दृष्टि पाप में रहती हैं, बुरे स्थान में बसने वाला और दुर्जन
जैसे पुरुषों की मैत्री जिसके साथ की जाती है वह नर शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।”
- “समान जन में प्रीति शोभती है और सेवा राजा की शोभती है,
व्यवहारों में बनियाई, और घर में दिव्य सुंदर स्त्री शोभती है।”
तो दोस्तों यह था तो चाणक्य नीति का पहला व दूसरा अध्याय कैसा लगा आपको?
अगर आपने चाणक्य नीति के अन्य अध्याय नहीं पढ़े है तो आप यहां से पढ़ सकते हैं:
चाणक्य नीति का अध्याय | चाणक्य नीति का अध्याय |
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पहला व दूसरा | तीसरा व चौथा |
पांचवा व छठा | सातवां व आठवां |
नवां व दसवां | ग्यारहवां व बारहवां |
तेरहवां व चौदहवां | पंद्रहवां व सोलहवां |
सत्रहवाँ अध्याय |
मुझे उम्मीद है दोस्तों आपको यह चाणक्य नीति (Chanakya Niti) की बातें अच्छी लगी होंगी और अच्छी लगी है तो हमें कमेंट करके नीचे जरूर बताना।
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