चाणक्य नीति की बातें अध्याय 11वां व 12वां | Chanakya Niti Chapter 11th & 12th in Hindi

Chanakya Niti Quotes in Hindi: आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति की बातों में यह बताया है कि आपको अपने जीवन में किस तरह का व्यवहार और अपना व्यक्तित्व रखना चाहिए। इस पोस्ट में हमने चाणक्य नीति (Chanakya Niti quotes in Hindi) के अध्याय 11 व 12 की बातों को संकलित किया है।

आचार्य चाणक्य ने अखंड भारत का एक सपना देखा था जो उन्होंने अपने शिष्य चंद्रगुप्त से पूरा करवाया। ये नीति की बातें उन्होंने चंद्रगुप्त के राजा बनने के बाद लिखी थी जो उनके अद्वितीय व्यक्तित्व और शातिर दिमाग को दिखाती हैं।

आज हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी आचार्य चाणक्य का नाम बहुत मान सम्मान के साथ लिया जाता है। और यहां तक कि किसी भी समझदार व्यक्ति को बुलाने के लिए अक्सर लोग चाणक्य का ही नाम लेते हैं। इससे पता चलता है कि उनका व्यक्तित्व व उनका दिमाग कैसा था। उनकी बातें (Chanakya Niti quotes in Hindi) हमेशा से ही कटु सत्य रही हैं। 

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चाणक्य नीति की बातें अध्याय 11वां (Chanakya Niti Quotes in Hindi Chapter 11th)

आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति की बातों (Chanakya Niti quotes in Hindi) को बहुत ही स्पष्ट शब्दों में बताया है। उन्होंने एक सफल इंसान के लिए बताया है कि उसे किस तरह के लोगों के साथ दोस्ती रखनी चाहिए, मूर्ख लोगों के साथ कैसे व्यवहार करें, ज्ञान का महत्व क्या है, इत्यादि। 

“काम, क्रोध, लोभ, मीठी वस्तु, श्रृंगार, खेल, अति निन्द्रा और अतिसेवा इन आठों को विद्यार्थी छोड़ देवें।” - Chanakya Niti quote in Hindi
  • “काम, क्रोध, लोभ, मीठी वस्तु, श्रृंगार, खेल, अति निन्द्रा और अतिसेवा इन आठों को विद्यार्थी छोड़ देवें।”
  • “उदारता, प्रिय बोलना, धीरता और उचित का ज्ञान ये अभ्यास से नहीं मिलते, ये चारों स्वाभाविक गुण हैं।”
  • “जो अपनी मंडली को छोड़ करके पराये वर्ग का आश्रय लेता है
    वह अपने आप ही नष्ट हो जाता है जैसे राजा के राज्य अधर्म से।”
  • “हाथी का स्थूल शरीर है वह भी अंकुश के वश रहता है, तो क्या हस्ती के समान अंकुश है?
    दीप के जलने पर अंधकार अपने आप ही नष्ट हो जाता है तो क्या दीप के तुल्य अंधेरा है?
    बिजली के मारे पर्वत गिर जाते हैं तो क्या बिजली पर्वत के समान है? जिसमें तेज विराजमान रहता है
    वह बलवान गिना जाता है।”
  • “कलयुग में दस हजार वर्ष के बीतने पर विष्णु पृथ्वी को छोड़ देते हैं,
    उसके आधे पर गंगा जी जल को, उसके आधे के बीतने पर ग्राम देवता ग्राम को।”
  • “गृह में आसक्त पुरुषों को विद्या, मांस के आहारी को दया,
    द्रव्य लोभी को सत्यता और व्यभिचारी को पवित्रता, नहीं होती है।”
  • “निश्चय है कि दुर्जन को अनेक प्रकार से सिखाया भी जाए पर उसमें साधुता नहीं आती,
    दूध और घी से नीम का वृक्ष सींचा जाए पर उस में मधुरता नहीं आती।”
  • “जिसके हृदय में पाप है वही दुष्ट है, वह तीर्थ में सौ बार स्नान से भी शुद्ध नहीं होता,
    जैसे मदिरा का पात्र जलाया भी जाए तो भी शुद्ध नहीं होता।”
  • “जो जिसकी गुण की प्रकर्षता नहीं जानता वह निरंतर उसकी निंदा करता है,
    जैसे भिलिनी हाथी के मस्तक के मोती को छोड़ घुंघुची को पहनती है।”
  • “जो वर्ष भर नित्य चुपचाप भोजन करता है वह सहस्त्र कोटि युगलों तक स्वर्ग लोक में पूजा जाता है।”
  • “बिना जोती भूमि से उत्पन्न फल या मूल को खाकर सदा वनवास करता हो
    और प्रतिदिन श्राद्ध करें ऐसा ब्राह्मण ऋषि कहलाता है।”
  • “एक समय के भोजन से संतुष्ट रहकर पढ़ना पढ़ाना,
    यज्ञ करना कराना, दान देना और लेना इन छः कर्मों में सदा रत हो
    और ऋतु काल में स्त्री का संग करे तो ऐसे ब्राह्मण को द्विज कहते हैं।”
  • “सांसारिक कार्य में रत हो और पशुओं का पालन, बनियाई और
    खेती करने वाला हो वह व्यक्ति वैश्य कहलाता है।”
  • “लाख आदि पदार्थ, तेल, नीली कुसुम, मधु, घी, मद्य और
    मांस जो इनका बेचने वाला वह ब्राह्मण शूद्र कहा जाता है।”
  • “दूसरे के काम का बिगड़ने वाला, दम्भी, अपने ही अर्थ का साधने वाला,
    छली, द्वेषी, ऊपर मृदु और अन्तःकरण में क्रूर हो वह ब्राह्मण बिलार कहा जाता है।”
  • “बावड़ी, कुआं, तालाब, वाटिका, देवालय, इसके उच्छेद करने में जो निडर हो
    वह ब्राह्मण म्लेच्छ कहा जाता है।”
  • “देवता का द्रव्य और गुरु का द्रव्य जो हरता है और परस्त्री से संग करता है
    और सब प्राणियों में निर्वाह कर लेता है वह व्यक्ति चांडाल कहलाता है।”
  • “सुकृतियों को चाहिए कि भोगयोग धन को और द्रव्य को देवे कभी न संचे, करण, बलि,
    विक्रमादित्य इन राजाओं की कीर्ति इस समय पर्यंत वर्तमान है,
    दान भोग से रहित बहुत दिन से संचित हमारे लोगों का मधु नष्ट हो गया है।
    निश्चय है कि मधुमक्खियां मधु के नाश होने के कारण दोनों पैरों को घिसा करती हैं।”
चाणक्य नीति की बातें अध्याय 11वाँ व 12वाँ | Chanakya Niti Chapter 11th & 12th in Hindi

चाणक्य नीति की बातें अध्याय 12वां (Chanakya Niti Chapter 12वां in Hindi)

 चाणक्य नीति के अध्याय 12 (Chanakya Niti in Hindi) में आचार्य ने पंडित, शिक्षक और विद्या इन सब चीजों से जुड़ी बातों को बताया है। उन्होंने एक द्विज ब्राह्मण व कपटी ब्राह्मण के बीच में भेद बताया है। अपने आप में कैसे केंद्रित रहे हैं, जैसी बातों को उन्होंने बहुत ही अच्छे तरीके से समझाया है।

चाणक्य नीति अध्याय 12वें की बातें हिंदी में (The Best Chanakya Niti Quotes with HD image in Hindi)

“सत्य मेरी माता है और ज्ञान पिता, धर्म मेरा भाई है और दया मित्र, 
शांति मेरी स्त्री है और क्षमा पुत्र, ये छः मेरे बंधु हैं।” -Chanakya Niti quote in Hindi
  • “सत्य मेरी माता है और ज्ञान पिता, धर्म मेरा भाई है और दया मित्र,
    शांति मेरी स्त्री है और क्षमा पुत्र, ये छः मेरे बंधु हैं।”
  • “यदि आनंद युक्त घर मिले और लड़के पंडित हों, स्त्री मधुरभाषिणी हो,
    इच्छा के अनुसार धन हो, अपनी ही स्त्री में रति हो, आज्ञा पालक सेवक मिले,
    अतिथि की सेवा और शिव की पूजा हो, प्रतिदिन गृह में मीठा अन्न और जल मिले,
    सर्वदा साधु के संग उपासना ,यह गृहस्थ आश्रम ही धन्य है।”
  • “जो दयावान पुरुषार्थ ब्राह्मणों को श्रद्धा से थोड़ा भी दान देता है
    उस पुरुष को अनंत होकर वह मिलता है जो दिया जाता है वह ब्राह्मणों से नहीं मिलता।”
  • “अपने जन में दक्षता, दूसरे जन में दया, दुर्जन में सदा दुष्टता, साधु जन में प्रीति,
    खल जन में अभिमान, विद्वानों में सरलता, शत्रुजन में शूरता, बड़े लोगों के विषय में क्षमा,
    स्त्री से काम पड़ने पर धूर्तता, इस प्रकार से जो लोग कला में कुशल होते हैं
    उन्हीं लोगों की मर्यादा रहती है।”
  • “हाथ दान रहित है, कान वेद के विरोधी हैं, नेत्रों ने साधु का दर्शन नहीं किया,
    पांव ने तीर्थ गमन नहीं किया, अन्याय से अर्जित धन से उदर भरा है और
    गर्व से सिर ऊंचा हो रहा है रे रे शियार ऐसे नीच निंद्य  शरीर को शीघ्र छोड़।”
  • “श्री यशोदा सूत के पद कमल में जिन लोगों की भक्ति नहीं रहती,
    जिन लोगों की जीभ श्री कृष्ण के गुणगान में प्रीति नहीं रखती और
    श्री कृष्ण जी की लीला की ललित कथा का आदर जिनके कान नहीं करते उन लोगों को धिक्कार है।
    ऐसे कीर्तन का मृदंग सदा कहता है।”
  • “यदि करील के वृक्ष में पत्ते नहीं होते तो बसंत का क्या दोष है? यदि उल्लू दिन में नहीं देखता
    तो सूर्य का क्या दोष है? वर्षा चातक के मुख में नहीं पड़ती इसमें मेघ का क्या अपराध है?
    पहले ही ब्रह्मा ने जो कुछ ललाट में लिख रखा है उसे मिटाने को कौन समर्थ है।”
  • “निश्चय है कि अच्छे के संग से दुर्जनों में साधुता आ जाती है
    परंतु साधुओं में दुष्टों की संगति से असाधुता नहीं आती।
    फूल के गंध को मिट्टी ले लेती है
    परंतु मिट्टी के गम को फूल कभी धारण नहीं करते।”
  • “साधु का दर्शन की पुण्य है क्योंकि साधु तीर्थ रूप है।
    समय से तीर्थ फल देता है, साधुओं का संग शीघ्र ही काम कर देता है।”
  • “हे इंसान! इस नगर में कौन बड़ा है? ताड़ के पेड़ों का समुदाय, दाता कौन है?
    धोबी प्रातः काल वस्त्र लेता है रात्रि में दे देता है, चतुर कौन है? दूसरे के धन और स्त्री
    के हरण में सभी कुशल है तो ऐसे नगर में आप कैसे जीते हो?
    हे मित्र! विष का कीड़ा विष ही में जीता है वैसे ही मैं भी जीता हूं।”
  • “जिन घरों में ब्राह्मण के पैरों के जल से कीचड़ में भया हो और न वेद शास्त्र के शब्द की गर्जना
    और जो गृह स्वाहा स्वधा से रहित हो उनको श्मशान के समान समझना चाहिए।”
  • “शरीर अनित्य है, विभव भी सदा नहीं रहता, मृत्यु सदा निकट ही रहती है
    इसलिए धर्म का संग्रह करना चाहिए।”
  • “निमंत्रण ब्राह्मणों का उत्सव है और नवीन घास गायों का उत्सव है,
    पति के उत्साह से स्त्रियों को उत्साह होता है, हे कृष्ण! मुझ को और रण ही उत्सव है।”
  • “दूसरे की स्त्री को माता के समान, दूसरे के द्रव्य को पत्थर कंकड़ समान
    और अपने समान सब प्राणियों को जो देखता है वही देखता है।”
  • “धर्म में तत्परता, मुख में मधुरता, दान में उत्साहता, मित्र के विषय में निश्छलता,
    गुरु से नम्रता, अंतः करण से गंभीरता, आचार में पवित्रता, गुण में रसिकता,
    शास्त्रों में विशेष ज्ञान, रूप में सुंदरता और शिव की भक्ति, हो राघव! ये आप ही में है।”
  • “कल्पवृक्ष काठ है, सुमेरू अचल है, चिंतामणि पत्थर है, सूर्य की किरण अत्यंत ऊष्ण  है ,
    चंद्रमा की किरण क्षीण हो जाती है ,समुद्र खारा है, काम के शरीर नहीं है, बलि दैत्य है,
    कामधेनु सदा पशु ही है इसलिए आपके साथ इनकी तुलना नहीं की जा सकती।
    हे रघुपति! फिर आपको किसकी उपमा दी जाए।”
  • “प्रवास में विद्या हित करती है, घर में स्त्री मित्र है, रोगग्रस्त पुरुष का हित औषधि होती है
    और धर्म मरे हुए का उपकार करता है।”
  • “सुशीलता राजा के लड़कों से, प्रिय वचन पंडितों से, असत्य जुआडियों से और छल स्त्रियों से सीखना चाहिए।”
  • “बिना विचारे व्यय करने वाला, सहायक के न रहने पर भी कलह में प्रीति रखने वाला
    और सब जाति की स्त्रियों में भोग के लिये व्याकुल होने वाला पुरुष शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।”
  • “पंडित को आहार की चिंता नहीं करनी चाहिए। एक धर्म को निश्चिय से सोचना चाहिए,
    इस हेतु कि, आहार मनुष्यों को जन्म के साथ ही उत्पन्न होता है।”
  • “धन धान्य के व्यवहार करने में, वैसे ही विद्या के पढ़ने पढ़ाने में, आहार में और
    राजा की सभा में किसी के साथ विवाद करने में जो लज्जा को छोड़े रहेगा वही सुखी होगा।”
  • “क्रम क्रम से जल की एक बूंद के गिरने से घड़ा भर जाता है, यही सब विद्या, धर्म और धन का भी कारण है।”
  • “वयस्क परिणाम पर भी जो मूर्ख रहता है वह मूर्ख ही बना रहता है,
    अत्यंत पक्की भी कड़वी लौकी मिठी नहीं होती।”

अगर आप चाणक्य नीति के अन्य अध्ययों को पढ़ना चाहते हैं तो आप निचे दिए गए लिंक से पढ़ सकते हैं –

चाणक्य नीति का अध्याय चाणक्य नीति का अध्याय
पहला व दूसरातीसरा व चौथा
पांचवा व छठासातवां व आठवां
नवां व दसवांग्यारहवां व बारहवां
तेरहवां व चौदहवांपंद्रहवां व सोलहवां
सत्रहवाँ अध्याय
चाणक्य नीति के सभी अध्याय (All Chapters of Chanakya Niti in Hindi)

तो बस दोस्तों हमें उम्मीद है आपको आचार्य चाणक्य नीति की बातों (Chanakya Niti in Hindi) की पोस्ट जरूर पसंद आई होगी अगर हां तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करना मत भूलना।

2 thoughts on “चाणक्य नीति की बातें अध्याय 11वां व 12वां | Chanakya Niti Chapter 11th & 12th in Hindi”

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