नमस्कार दोस्तों, आज इस पोस्ट में हम आचार्य चाणक्य की नीति की बातों (Chanakya Niti in Hindi) के अध्याय 9 व 10 को लेकर आए हैं। आचार्य चाणक्य ने अपनी बातों को दोहे/श्लोक या टीका के माध्यम से बताया है। आचार्य चाणक्य ने अध्याय 9 में व्यवहारिक जीवन की बातों को बताया है वही अध्याय 10 में सचेत व्यक्ति के लिए बातें कही है।
आचार्य ने अपनी नीति की बातों (Chanakya Niti) को लगभग आज से 2400 साल पूर्व लिखी थी। परंतु वर्तमान समय में भी हम इन बातों से बहुत कुछ सीख सकते हैं। अगर आप चाणक्य नीति के पुराने अध्यायों को पढ़ना चाहते हैं तो इस पोस्ट के अंत में हमने लिंक दिए हैं वहां से आप पढ़ सकते हैं।
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चाणक्य नीति अध्याय 9वां (Chanakya Niti Quotes Chapter 9th in Hindi)
आचार्य चाणक्य ने ये बातें (Chanakya Niti) अपने उस दौर के हिसाब से लिखी थी। यह बातें आज भी कहीं न कहीं हमारे समाज से मिलती-जुलती हैं। उनकी इन बातों से पता चलता है कि आचार्य चाणक्य एक कुशाग्र बुद्धि इंसान थे।
- “विद्यार्थी, सेवक, पथिक, भूख से पीड़ित, भय से कातर, भांडारी और द्वारपाल
ये सात यदि सोते हो तो जगा देना चाहिए।” - “हे भाई! यदि मुक्ति चाहते हो तो विषयों को विष के समान छोड़ दो!
सहनशीलता, सरलता, दया, पवित्रता और सच्चाई को अमृत की तरह पियो।” - “जो नर अधम परस्पर अंतर आत्मा के दुखदायक बचन को भाषण करते हैं
वे निश्चय करके नष्ट हो जाते हैं जैसे विमीट में पड़कर सांप।” - “सुवर्ण में गंध, ऊष में फल, चंदन में फूल, विद्वान धनी और राजा चिरंजीवी न किया
इससे निश्चय है कि विधाता के पहले कोई बुद्धिदाता न था।” - “सब औषधियों में गुरच गिलोह प्रधान है, सब सुखों में भोजन श्रेष्ठ है;
सब इंद्रियों में आंख उत्तम है, सब अंगों में सिर श्रेष्ठ है।” - “आकाश में दूत नहीं जा सकता, न वार्ता की चर्चा चल सकती है, न पहले ही से किसी ने कह रखा है
और ना किसी से संगम हो सकता है; ऐसी दशा में आकाश में स्थित
सूर्य चंद्र के ग्रहण को जो द्विजवर स्पष्ट जानता है वह कैसे विद्वान नहीं है।” - “सांप, राजा, व्याघ्र, बररै, वैसे ही बालक, दूसरे का कुत्ता और मूर्ख
ये सात सो रहे हों तो नहीं जगाना चाहिए।” - “जिन्होंने धन के अर्थ वेद को पढा, वैसे ही जो शूद्र का अन्न भोजन करते हैं
वे ब्राह्मण विषहीन सर्प के समान क्या कर सकते हैं।” - “जिसके क्रोध होने पर न भह है, प्रसन्न होने पर न धन का लाभ,
न दंड या अनुग्रह हो सका है वह रुष्ट होकर क्या करेगा।” - “विषहीन सांप को अपना फण बढ़ाना चाहिए क्योंकि विष हो या ना हो आडंबर भयजनक होता है।”
- “प्रातः काल में महाभारत से, मध्याह्न में रामायण से और रात्रि में भागवत से बुद्धिमानों का समय बीतता है।”
- “अपने हाथ से गुथी माला, अपने हाथ से घिसा चंदन, अपने हाथ से लिखा स्तोत्र, ये इंद्र की लक्ष्मी को भी हर लेते हैं।”
- “उष, तिल, शूद्र, कांता, सोना, पृथ्वी, चंदन, दही और पान इनका मर्दन गुण वर्धन है।”
- “दरिद्रता भी धीरता से सोभती है, स्वच्छता से कुवस्त्र सुंदर जान पड़ता है,
कुअन्न भी उष्णता से मीठा लगता है, कुरूपता भी सुशीलता हो तो शोभा देती है।”
तो अब हम अध्याय 10 की चाणक्य नीति की बातों की ओर बढ़ते हैं।
चाणक्य नीति की बातें अध्याय 10वां (Chanakya Niti Quotes in Hindi Chapter 10th)
Chanakya Niti के अध्याय 10 में आपको आचार्य चाणक्य यह बताएंगे कि आपको अपने जीवन में क्या काम करना चाहिए, दूसरे लोगों के साथ किस तरह से पेश आना चाहिए, आपका व्यवहार कैसा होना चाहिए, इन सब सांसारिक बातों को उन्होंने बताया है।
- “धनहीन हीन नहीं गिना जाता निश्चय है कि वह धनी ही है।
विद्यारत्न से जो हीन है वह सब वस्तुओं में हीन है।” - “दृष्टि से शोध कर पांव रखना उचित है, वस्त्र से शुद्ध कर जल पीवे,
शास्त्र से शुद्ध कर वाक्य बोले और मन से सोच कर कार्य करें।” - “यदि सुख चाहे तो विद्या को छोड़ दे, यदि विद्या चाहे तो सुख का त्याग करे
तो सुखार्थी को विद्या कैसे होगी और विद्यार्थी को सुख कैसे होगा।” - “कवि क्या नहीं देखते, स्त्री क्या नहीं कर सकती, मद्यपी क्या नहीं बकते और कौवे क्या नहीं खाते।”
- “निश्चय है कि विधि रंक को राजा, राजा और रंक,
धनी को निर्धन और निर्धन को धनी कर देता है।” - “लोभियों को याचक और मूर्खों को समझाने वाला और
पूंछ वाली स्त्रियों को पति और चोरों को चंद्रमा शत्रु है।” - “जिन लोगों में न विद्या है, न तप है, न दान है, न शील है, न गुण है और न धर्म है
वे संसार में पृथ्वी पर भार रूप होकर मनुष्य रूप से मृगवत फिर रहे हैं।” - “गंभीरता विहीन पुरुषों को शिक्षा देना सार्थक नहीं होता, मलयाचल के संगम बांस चंदन नहीं हो जाता।”
- “जिसकी स्वाभाविक बुद्धि नहीं है उसको शास्त्र क्या कर सकता है, आंखों से हीन को दर्पण क्या करेगा।”
- “दुर्जन को सज्जन करने के लिए पृथ्वी तल में कोई उपाय नहीं है,
मल का त्याग करने वाली इंद्रिय सौ बार भी धोई जाए तो भी श्रेष्ठ इंद्रिय न होगी।” - “बड़ों के द्वेष से मृत्यु होती है, शुरू से विरोध करने से धन का क्षय होता है,
राजा के द्वेष से नाश और ब्राह्मण के द्वेष से कुल का क्षय होता है।” - “वन में बाघ और बड़े-बड़े हाथियों से सेवित वृक्ष के नीचे के पत्ते, फल खाना या जल को पीना,
घास पर सोना, सो टुकडे के बकलों को पहनना ये श्रेष्ठ है, पर बंधुओं के मध्य में धनहीन का जीना श्रेष्ठ नहीं है।” - “ब्राह्मण वृक्ष है, उसकी जड़ संध्या है, वेद शाखा है, और धर्म के कर्म पत्ते हैं
इसलिए प्रयत्न कर के जड़ की रक्षा करनी चाहिए, जड़ कट जाने पर न शाखा रहेगी और न पत्ते।” - “जिसकी लक्ष्मी माता है और विष्णु भगवान पिता है और विष्णु के भक्त बांधव हैं उसको तीनो लोक स्वदेश ही हैं।”
- “नाना प्रकार के पखेरू एक वृक्ष पर बैठते हैं प्रभात समय दश दिशा में हो जाते हैं उसमें क्या सोच है।”
- “जिसको बुद्धि है उसी को बल है,निर्बुद्धि को बल कहां से होगा।
देखो वन में, मद से उन्मत्त सिंह सियार से मारा गया।” - “मेरे जीवन में क्या चिंता है यदि हरि विश्व का पालने वाला कहलाता है,
ऐसा न हो तो बच्चे के जीने के हेतु माता स्तन में दूध कैसे बनाते? इसको बार-बार विचार करके हेय दुपति है!
हे लक्ष्मीपति! सदा केवल आपके चरण कमल के सेवा में समय को बिताता हूं।” - “यद्यपि संस्कृत भाषा में ही विशेष ज्ञान है तथापि दूसरी भाषा का भी मैं लोभी हूं
जैसे अमृत के रहते भी देवताओं की इच्छा स्वर्ग की स्त्रियों के ओष्ट के आसव में रहती है।” - “चावल से 10 गुना पीसान/चून में गुण है, पिसान से 10 गुना दूध में, दूध से 8 गुना मांस में और मांस से 10 गुना घी में।”
- “साग से रोग, दूध से शरीर, घी से वीर्य और मांस से मांस, बढ़ता है।”
चाणक्य नीति के अन्य अध्याय –
चाणक्य नीति का अध्याय | चाणक्य नीति का अध्याय |
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पहला व दूसरा | तीसरा व चौथा |
पांचवा व छठा | सातवां व आठवां |
नवां व दसवां | ग्यारहवां व बारहवां |
तेरहवां व चौदहवां | पंद्रहवां व सोलहवां |
सत्रहवाँ अध्याय |
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