इस पोस्ट में हम चाणक्य नीति (Chanakya Niti) के अध्याय 7 व 8 में बताई गई बातों को लेकर आए हैं।
आचार्य चाणक्य (Acharya Chanakya) ने शिक्षा, व्यवहार, जीवन, संगति, बुद्धिमता के बारे में इन दो अध्याय में बताया है। वे चन्द्रगुप्त के गुरू भी थे। वे बिन्दुसार के समय में भी मौर्य साम्राज्य के प्रधानमंत्री रहे थे।
उन्होंने अपनी इन नीति की बातों में संदेश को दिया है कि इंसान को अपनी शिक्षा व गुणों पर ध्यान करना चाहिए ना कि बाहरी चीजों पर।
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चाणक्य नीति अध्याय 7वां (Chanakya Niti quotes chapter 7th in Hindi)
गुरुदेव चाणक्य ने अपनी नीति की बातों (Acharya Chanakya Niti Quotes in Hindi) के अध्याय 7 में इंसान का व्यवहार, कार्य, इन सब चीजों के बारे में बताया है।
अध्याय 7 की आचार्य चाणक्य की नीति की बातों को हमने यहां पर संकलित किया है (Chanakya Niti In Hindi) –
- “अत्यंत सीधे स्वभाव से नहीं रहना चाहिए इसका कारण है कि
वन में जाकर देखो, सीधे वृक्ष काटे जाते हैं और टेढ़े खड़े रहते हैं।” - “धन नाश का, मन का ताप, गृहिणी का चरित्र, नीच का वचन
और अपमान इनको बुद्धिमान अपने मन में ना लावे।” - “अन्न और धन के व्यापार में, विद्या के संग्रह करने में,
आहार और व्यवहार में जो पुरुष लज्जा को दूर रखेगा वही सुखी रहेगा।” - “संतोष रूपी अमृत से लोग तृप्त होते हैं, उनको शांति सुख होता है
परंतु जो धन के लोभ से इधर-उधर दौड़ा करते हैं उनको नहीं होता।” - “अपनी स्त्री, भोजन और धन इन तीनों में संतोष करना चाहिए।
पढ़ना, जप और दान इन तीनों में कभी संतोष नहीं करना चाहिए।” - “दो ब्राह्मण, ब्राह्मण और अग्नि, स्त्री पुरुष, स्वामी भृत्यहल और बैल,
इनके मध्य से होकर नहीं जाना चाहिए।” - “अग्नि, गुरु और ब्राह्मण, इनको पैर से कभी नहीं छूना चाहिए
और वैसे ही गाय को, कुमारी को, वृद्ध को और बालक को,
पैर से कभी नहीं छूना होना चाहिए।” - “गाड़ी को पांच हाथ पर, घोड़े को दस हाथ पर, हाथी को हजार हाथ पर,
दुर्जन को देश त्याग करके छोड़ना चाहिए।” - “हाथी केवल अंकुश से, घोड़ा हाथ से, सींग वाले जंतु लाठी से
और दुर्जन तरवार संयुक्त हाथ से दंड पाते हैं।” - “भोजन के समय ब्राह्मण और मेघ के गरजने पर मयूर,
दूसरों को संपत्ति प्राप्त होने पर साधु और
दूसरों को विपत्ति आने पर दुर्जन संतुष्ट होते हैं।” - “बली वैरी को उसके अनुकूल व्यवहार करने से,
यदि वह दुर्बल हो तो उसे प्रतिकूलता से वश में करें।
बल में अपने समान शत्रु को विनय से अथवा बल से जीते।” - “राजा को बाहुवीर्य बल है और ब्राह्मण ब्रह्मज्ञानी या वेदपाठी बली होता है
और स्त्रियों को सुंदरता, तरुणता और मधुरता अति उत्तम बल है।” - “जहां जल रहता है वहां ही हंस बसते हैं वैसे ही सूखे तालाब को छोड़ देते हैं।
नर को हंस के समान नहीं रहना चाहिए कि वह बार-बार छोड़ देते हैं और बार-बार आश्रय लेते हैं।” - “अर्जित धन का उपयोग करना ही रक्षा है जैसे तालाब के भीतर के जल को बाहर निकालना।”
- “जिसके पास धन होता है उसी के मित्र होते हैं
जिसके पास अर्थ होता है उसी के बंधु होते हैं जिसके पास धन रहता है
वही पुरुष गिना जाता है और जिसके अर्थ होता है वही जीता है।” - “संसार में आने पर स्वर्ग वासियों के शरीर में चार चिन्ह रहते हैं, दान का स्वभाव,
मीठा बचन, देवता की पूजा और ब्राह्मण को तृप्त करना अर्थात
जिन लोगों में दान आदि लक्षण रहे उनको जानना चाहिए कि वह
अपने पुण्य के प्रभाव से स्वर्गवासी मृत्युलोक में अवतार लिए हैं।” - “यदि कोई सिंह के गुफा में जा पड़े तो उसको हाथी के कपोल की मोती मिलते हैं
और सियार के स्थान में जाने पर बछवे की पूंछ और गधे के चमड़े का टुकड़ा मिलता है।” - “कुत्ते की पूंछ के समान विद्या के बिना जीना व्यर्थ है,
कुत्ते की पूंछ गोप्य इंद्रियों को ढक नहीं सकती है
और न ही मच्छर आदि जीवों को उड़ा सकती है।” - “वचन की शुद्धि, मन की शुद्धि, इंद्रियों का संयम, सब जीव पर दया
और पवित्रता यह प्रार्थियों की शुद्धि है।” - “जैसे फूल में गंध, तिल में तेल, काष्ठ में आग, दूध में घी, ऊष में गुड़,
वैसे ही देह में आत्मा को विचार से देखो।” - “अत्यंत क्रोध, कटु वचन, दरिद्रता, अपने जनों में वैर, नीच का संग,
कुल हीन की सेवा ये चिन्ह नरक वासियों के शरीर में रहते हैं।”
तो अब हम अध्याय 8 की नीति की बातों (Chanakya Niti in Hindi) की ओर चलते हैं।
चाणक्य नीति अध्याय 8वां (Chanakya Niti chapter 8th in Hindi)
आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति की बातों (Acharya Chanakya Niti quotes in Hindi) में इंसान को किस तरह का जीवन जीना चाहिए, उसे शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए इन सब के बारे में बताया है।
तो अध्याय 8 की बातें आप यहां पर पढ़ सकते हैं (Chanakya Niti in Hindi) –
- “गुण रूप को भूषित करता है, शील कुल को अलंकृत करता है,
सिद्धि विद्या को भूषित करती है और भोग धन को भूषित करता है।” - “मूर्ख धन ही चाहते हैं, मध्यम इंसान धन और मान दोनों चाहते हैं
वहीं उत्तम पुरुष मान ही चाहते हैं क्योंकि महात्माओं का धन मान ही है।” - “ऊष, जल, दूध मूल, पान, फल, और औषध इन वस्तुओं के भोजन करने पर भी
स्नान, दान आदि क्रिया करनी चाहिए।” - “दीप अंधकार को खा जाता है और काजल को जन्म देता है,
जैसा अन्य सदा खाता है वैसे ही उसकी संतति होती है।” - “हे मतिमन गुणियों को धन दो औरों को कभी भी मत दो।
समुद्र से मेघ के मुख में प्राप्त होकर जल सदा मधुर हो जाता है,
पृथ्वी पर चर अचर सब जीवों को पिला कर फिर देखो
वही जल कोटिगुण होकर उसी समुद्र में चला जाता है।” - “तत्व दर्शियों ने कहा है कि हजार चांडालों के तुल्य एक यवन होता है
और यवन से नीचे कोई नहीं है।” - “तेल लगाने पर, चिता के धूम लगाने पर, स्त्री प्रसंग करने पर, बाल बनाने पर,
तब तक चांडाल ही बना रहता है जब तक स्नान नहीं करता है।” - “अपच होने पर जल औषधि है, पचजाने पर जल बल को देता है,
भोजन के समय पानी अमृत के समान है और भोजन के अंत में विष का फल देता है।” - “क्रिया के बिना ज्ञान व्यर्थ है, अज्ञान से नर मारा जाता है,
सेनापति के बिना सेना मारी जाती है और स्वामी हीन स्त्री नष्ट हो जाती है।” - “बुढ़ापे में मरी स्त्री, बंधु के हाथ में गया धन और दूसरे के अधीन भोजन
ये तीनों पुरुषों की विडंबना है अर्थात दुखदायक होते हैं।” - “अग्निहोत्र के बिना वेद का पढ़ना व्यर्थ होता है, दान के बिना यज्ञ
आदि क्रिया नहीं बनती, भाव के बिना कोई सिद्धि नहीं होती इस हेतु प्रेम ही सब का कारण है।” - “धातु, काष्ठ, पाखान, भाव सहित सेवन करना, श्रद्धासेंति भगवत कृपा से जैसा भाव है
वैसा ही सिद्ध होता है।” - “देवता काठ में नहीं है, न पाषाण में है, न मूर्ति में है, निश्चय है कि देवता भाव में विद्यमान है,
इस हेतु भाव ही सब का कारण है।” - “शांति के समान दूसरा तप नहीं, न संतोष से परे सुख, न तृष्णा से दूसरी व्याधि है, न दया से अधिक धर्म।”
- “क्रोध यमराज है और तृष्णा वैतरणी नदी है, विद्या कामधेनु गाय है और संतोष इंद्र की वाटिका है।”
- “निर्गुण की सुंदरता व्यर्थ है, शीलहीन का कुल निंदित होता है,
सिद्धि के बिना विद्या व्यर्थ है, भोग के बिना धन व्यर्थ है।” - “भूमिगत जल पवित्र होता है, पतिव्रता स्त्री पवित्र होती है,
कल्याण करने वाला राजा पवित्र गिना जाता है, ब्राह्मण संतोषी शुद्ध होता है।” - “असंतोषी ब्राह्मण निंदित गिने जाते हैं और संतोषी राजा, सलज्जा वेश्या और
लज्जा हीन कुल स्त्री निंदित गिनी जाती है।” - “विद्या हीन बड़े कुल से मनुष्यों को क्या लाभ है? विद्वान का नीच कुल भी देवताओं से पूजा जाता है।”
- “संसार में विद्वान ही प्रसिद्ध होता है, विद्वान ही सब स्थानों में आदर पाता है,
विद्या ही से सब मिलता है, विद्या ही स्थानों में पूजित होती है।” - “सुंदर, तरुणायुक्त और बड़े कुल में उत्पन्न भी विद्याहीन पुरुष ऐसे नहीं शोभते,
जैसे बिना गंध पलाश के फूल।” - “मांस के भक्षण और मदिरापान करने वाले, निरक्षर और मूर्ख इन पुरुष आकार पशुओं के भार से पृथ्वी पीड़ित रहती है।”
- “यज्ञ यदि अन्न हीन हो तो, राज्य मंत्र हीन हो तो, ऋत्विजों का दान हीन हो तो यजमान को जलाता है
क्योंकि यज्ञ के समान कोई भी शत्रु नहीं है।”
अगर आपने चाणक्य नीति (Chanakya Niti) के पुराने अध्याय नहीं पढ़े हैं तो आप यहां से पढ़ सकते हैं हमने यहां पर पुराने अध्ययन के लिंक दिए हैं –
चाणक्य नीति का अध्याय | चाणक्य नीति का अध्याय |
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पहला व दूसरा | तीसरा व चौथा |
पांचवा व छठा | सातवां व आठवां |
नवां व दसवां | ग्यारहवां व बारहवां |
तेरहवां व चौदहवां | पंद्रहवां व सोलहवां |
सत्रहवाँ अध्याय |
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