चाणक्य नीति (Chanakya Niti) के अध्याय 5 और 6 की बातों को हमने इस पोस्ट में संकलित किया है. आचार्य चाणक्य (Acharya Chanakya) ने जो कुछ भी जीवन, परिवार, घर,राजा, रक्षा के बारे में कहा था. वह सब आज से लगभग 2400 साल पूर्व लिखा गया था.
तो अब हम पढ़ते हैं अध्याय 5 व 6 में बताई गए चाणक्य नीति की बातों को.
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चाणक्य नीति अध्याय 5वां (Chanakya Niti Chapter 5th in Hindi)
आचार्य चाणक्य ने अपने अध्याय 5 में नीति की बातें (Chanakya Niti quotes in Hindi) बताई थी,
वो आप यहां से पढ़ सकते हैं.
- जिसको किसी विषय की वांछा नहीं होगी वह किसी विषय का अधिकारी नहीं होगा
जो कामी नहीं होगा, वह शरीर की शोभा करने वाली वस्तुओं में प्रीति नहीं रखेगा।
जो चतुर न होगा वह प्रिय नहीं बोल सकेगा और स्पष्ट कहने वाला छली नहीं होगा। - स्त्री का गुरु पति ही है, अभ्यागत सबका गुरु है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य,
इनका गुरु अग्नि है और चारों वर्णों में गुरु ब्राह्मण है। - घिसना, काटना, तपाना, पीटना इन चार प्रकारों से जैसे सोने की परीक्षा की जाती है
वैसे ही दान, शील, गुण और आचार इन चारों प्रकार से पुरुष की भी परीक्षा की जाती है। - तब तक ही भयों से डरना चाहिए जब तक भय नहीं आया,
और आए हुए भय को देखकर प्रहार करना उचित है। - एक ही गर्भ से उत्पन्न और एक ही नक्षत्र जायमान शील में समान नहीं होते जैसे बेर और उसके कांटे।
- जन्म देने वाला, यज्ञोपवीत आदि संस्कार कराने वाला, विद्या देने वाला,
अन्न देने वाला, भय से बचाने वाला ये पांच पिता गिने जाते हैं। - राजा की भार्या, गुरु की स्त्री, वैसे ही मित्र की पत्नी, सास
और अपनी जननी इन पांचों को माता कहते हैं। - मूर्ख पंडितों से, दरिद्री धनियों से, व्यभिचारिणी कुल स्त्रियों से और विधवा सुहागिनों से बुरा मानती हैं।
- आलस्य से विद्या नष्ट हो जाती है, दूसरे के हाथ में जाने से धन निरर्थक जाता है,
बीज की न्यूनता से खेत हत हो जाता है, सेनापति के बिना सेना नष्ट हो जाती है। - अभ्यास से विद्या, सुशीलता से कुल, गुण से भला मनुष्य और नेत्र से कोप ज्ञात होता है।
- धन से धर्म की रक्षा होती है, यम नियम आदि योग से ज्ञान रक्षित रहता है,
मृदुता से राजा की रक्षा होती है, भली स्त्री से घर की रक्षा होती है। - वेद की पांडित्य को व्यर्थ प्रकाश करने वाला, शास्त्र और उसके आचार के विषय में व्यर्थ विवाद करने वाला,
शांत पुरुष को अन्यथा कहने वाला, ये लोग व्यर्थ ही क्लेश उठाते हैं। - दान दरिद्रता का नाश करता है, सुशीलता दुर्गति का, बुद्धि अज्ञान भक्ति भय का नाश करती है।
- आग के सम्मान दूसरी व्याधि नहीं है, अज्ञान के समान दूसरा वैरी नहीं है,
क्रोध के तुल्य दूसरी आग नहीं है, ज्ञान से परे सुख नहीं है। - यह निश्चय है कि एक ही पुरुष जन्म मरण पाता है, सुख-दुख एक ही भोगता है,
एक ही नरको में पड़ता है और एक ही मोक्ष पाता है,
अर्थात इन कामों में कोई किसी की सहायता नहीं कर सकता। - ब्रह्म ज्ञानी को स्वर्ग तृण है, शूरकों को जीवन तृण है,
जिसने इंद्रियों को वश में किया उसे स्त्री तृण के मूल्य जान पड़ती है, निस्पृह को जगत तृण है। - विदेश में विद्या मित्र होती है, गृह में भार्या मित्र है, रोगी का मित्र औषध है और मरे का मित्र धर्म है।
- समुद्रों में वर्षा व्यर्थ है और भोजन से तृप्त को भोजन निरर्थक है,
धनी को धन देना व्यर्थ है और दिन में दीप व्यर्थ है। - मेघ के जल के समान दूसरा जल नहीं है, अपने बल समान दूसरे का बल नहीं है
इसका कारण यह है कि वह समय पर काम आता है। नेत्र के तुल्य दूसरा प्रकाश करने वाला नहीं है
और अन्न के सदृश्य दूसरा प्रिय पदार्थ नहीं है। - धनहीन धन चाहते हैं और पशु वचन, मनुष्य स्वर्ग चाहते हैं और देवता मुक्ति की इच्छा रखते हैं।
- सत्य से पृथ्वी स्थिर है और सत्य ही से सूर्य तपते हैं।
सत्य ही से वायु बहती है, सब सत्य से ही स्थिर हैं। - लक्ष्मी नित्य नहीं है, प्राण, जीवन और घर ये सब स्थिर नहीं हैं,
निश्चय है कि इस चराचर संसार में केवल धर्म ही निश्चित है। - पुरुषों में नापित, पक्षियों में कौवा बंचक होता है, पशुओं में सियार बंचक और स्त्रियों में मालिन धूर्त होती है।
चाणक्य नीति अध्याय 6वां (Chankya Niti quotes chapter 6th in Hindi)
आचार्य चाणक्य ने अध्याय 6 में लगभग 21 बातों (Chanakya Niti quotes in Hindi) को बताया है जो उनकी कुशाग्र बुद्धि और अनोखे व्यक्तित्व को दिखाती हैं. आचार्य चाणक्य का दिमाग बहुत तेज था. वे चीजों को बारीकी से समझ लेते और उन पर बहुत ज्यादा गहन अध्ययन करते.
- काल सब प्राणियों को खा जाता है और काल ही इस सब प्रजा का नाश करता है।
सब पदार्थ के लय हो जाने पर काल जागता रहता है, काल को कोई नहीं टाल सकता। - मनुष्य शास्त्र को सुनकर धर्म को जानता है, दुर्बुद्धि को छोड़ता है, ज्ञान पाता है, मोक्ष पाता है।
- पक्षियों में कौवा, पशुओं में कुकुर चांडाल होता है, मुनियों में चांडाल पाप है और सब में चांडाल निंदक है।
- भ्रमण करने वाले राजा, ब्राह्मण, योगी पूजित होते हैं परंतु स्त्री घूमने से भ्रष्ट हो जाती है।
- जिसके धन है उसी का मित्र, उसी के बांधव होते हैं
और वही पुरुष गिना जाता है और वही पंडित कहाता है। - वैसी ही बुद्धि और वैसा ही उपाय होता है और वैसे ही सहायक मिलते हैं जैसा होनहार हैं।
- जन्म का अंधा नहीं देखता, काम से जो अंधा हो रहा है उसको सूझता नहीं,
मद उन्मत्त किसी को देखता नहीं और अर्थी दोष को नहीं देखता। - जीव आप ही कर्म करता है और उसका फल भी आप ही भोक्ता है,
आप ही संसार में भ्रमता है और आप ही उससे मुक्त भी होता है। - अपने राज्य में किये हुए पाप को राजा और राजा के पाप को पुरोहित भोक्ता है,
स्त्रीकृत पाप को स्वामी भोक्ता है वैसे ही शिष्य के पाप को गुरु। - ऋण करने वाला पिता शत्रु है, व्यभिचारिणी माता और सुंदर स्त्री शत्रु है और मूर्ख पुत्र वैरी है।
- लोभी को धन से, अहंकारी को हाथ जोड़ने से, मूर्ख को उसके अनुसार वर्तन से
और पंडित को सच्चाई से वश में करना चाहिए। - राज्य न रहना यह अच्छा, परंतु कुराजा का राज्य होना यह अच्छा नहीं।
मित्रता न होना यह अच्छा, परंतु कुमित्र को मित्र करना अच्छा नहीं।
शिष्य न हो यह अच्छा परंतु निंदित शिष्य कहलावे यह अच्छा नहीं।
भार्या न रहे यह अच्छा, पर कुभार्या का भार्या होना अच्छा नहीं। - दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा को सुख और कुमित्र से आनंद कैसे हो सकता है,
दुष्ट स्त्री से ग्रह में प्रीति और कुशिष्य को पढ़ाने वाले की कीर्ति कैसे होगी। - सिंह से एक, बगुले से एक, कुक्कुट से चार, कौवे से पांच,
कुत्ते से छः और गधे से तीन गुण सीखना उचित है। - कार्य छोटा हो या बड़ा जो करणीय हो उसको सब प्रकार के प्रयत्न से करना उचित है,
इस एक को सिंह से सीखना कहते हैं। - विद्वान पुरुष को चाहिए कि, इंद्रियों का संयम करके देश,
काल और बल को समझकर बकुला के समान सब कार्य को साधे। - उचित समय में जागना, रण में उद्यत रहना और बंधुओं को उनका भाग देना
और आप आक्रमण करके भोग करें, इन चार बातों को कुक्कुट से सीखना चाहिए। - छिपकर मैथुन करना, धैर्य करना, समय में घर संग्रह करना, सावधान रहना
और किसी पर विश्वास नहीं करना इन पांचों को कौवे से सीखना उचित है। - बहुत खाने की शक्ति रहते हुए भी थोड़े से संतुष्ट होना, गाढ निंद्रा रहते भी झटपट जागना,
स्वामी की भक्ति और शूरता इन छः गुणों को कुत्ते से सीखना चाहिए। - अत्यंत थक जाने पर भी बोझ को ढोते जाना, शीत और उष्ण पर दृष्टि न देना,
सदा संतुष्ट होकर विचरना, इन तीन बातों को गधे से सीखना चाहिए। - जो नर इन 20 गुणों को धारण करेगा वह सदा सब कार्यों में विजयी होगा।
- कांसे का पात्र राख से, तांबे का मल खटाई से, स्त्री रजस्वला होने पर
और नदी धारा के वेग से पवित्र होती है।
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सत्रहवाँ अध्याय |
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