पूरा नाम | आचार्य चाणक्य/कौटिल्य/विष्णुगुप्त |
जन्म | 375 ईसा पूर्व, तक्षशिला, भारत |
माता | चनेश्वरी |
पिता | ऋषि चणक |
गुरु | ऋषि चणक |
शिष्य | चंद्रगुप्त मौर्य |
जाति | ब्राह्मण |
धर्म | हिंदू |
पेशा | अध्यापक, अर्थशास्त्री, लेखक, सलाहकार, मार्गदर्शक |
उपलब्धियां | मौर्य साम्राज्य के सह-संस्थापक, मौर्य साम्राज्य के प्रधानमंत्री, चाणक्य नीति, अर्थशास्त्र के रचयिता |
मृत्यु | 283 ईसा पूर्व, पाटलिपुत्र, भारत |
उम्र | 92 वर्ष |
आचार्य चाणक्य का जन्म 375 ईसा पूर्व में तक्षशिला में हुआ था। वे एक महान शिक्षक, अर्थशास्त्री, प्रधानमंत्री, शाही सलाहकार, राजनीतिज्ञ और मार्गदर्शक थे। आचार्य चाणक्य ब्राह्मण थे, उन्हें कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अर्थशास्त्र किताब लिखी थी जो बहुत प्रसिद्ध है।
जब चाणक्य छोटे बच्चे थे तो उनके एक कुत्ते का दांत था। ऐसा विश्वास किया जाता था कि जिस भी इंसान के कुत्ते का दांत होता है वह राजा बन जाता है।
बालक चाणक्य की माता उससे चिंतित हो गई और रोने लगी कि अगर उसका बेटा राजा बन जाएगा तो वह उसे छोड़ देगा। तो चाणक्य ने अपना दांत तोड़ दिया और कहा कि वह कभी राजा नहीं बनेगा।
चाणक्य के टूटे हुए दांत ने उनकी शक्ल को भद्दी बना दिया। उनके पैर भी कुछ कुटिल दिखाई देते थे। इसकी वजह से उनकी पूरी वेशभूषा भी भद्दी बन गई।
आचार्य चाणक्य का भरी सभा में अपमान (Humiliation of Chanakya in the Court)
धनानंद मगध साम्राज्य का सम्राट था। उसने एक दिन ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देने के लिए अपने महल में बुलाया था। उस कार्यक्रम में आचार्य चाणक्य भी गए हुए थे।
धनानंद ने चाणक्य की वेशभूषा के कारण उन्हें वहां से निकाल दिया। मुठभेड़ में चाणक्य का जनेऊ (एक धार्मिक धागा) टूट गया था। उन्होंने धनानंद को श्राप दिया कि वह उसके राज्य को जड़ से उखाड़ फेंकेगे।
इसके बाद धनानंद ने चाणक्य को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। परंतु, चाणक्य धनानंद के पुत्र पब्बता की मदद से बच निकले।
सोने के सिक्कों का निर्माण (Manufacturing of Gold Coins)
आचार्य चाणक्य (Chanakya) धनानंद के राज्य से निकलकर विंझा जंगलों में चले गए। वहां पर उन्होंने एक तकनीक का उपयोग करके 800 मिलियन से ज्यादा सोने के सिक्के बना लिए थे।
यह तकनीक उन्हें 1 सिक्के को 8 सिक्कों में बदल कर देती थी। इन सिक्कों को छुपाने के बाद, वे एक योग्य व्यक्ति की तलाश में लग गए जो धनानंद के बाद राजा बन सके।
उन्होंने एक दिन देखा कि एक चंद्रगुप्त नाम का लड़का आप बहुत ही अच्छे तरीके से अपने साथी दोस्तों को आदेश दे रहा है। हालांकि, चंद्रगुप्त शाही परिवार में जन्मा था। उसके पिता का युद्ध में देहांत हो गया था। तो देवताओं ने उसकी माता को कहा था कि चंद्रगुप्त को त्याग दो।
चंद्रगुप्त को एक शिकारी ने अपने यहां रख लिया और उसे काम के बदले में पैसा दे दिया करता था। चंद्रगुप्त वहीं अन्य शिकारियों के लड़कों के साथ खेला करता था।
तो चाणक्य चंद्रगुप्त के आदेशात्मक कार्यों से प्रभावित होकर अपने साथ मिलाने की सोची। उन्होंने उस शिकारी को एक हजार सोने के सिक्के दिए और चंद्रगुप्त को अपने साथ लेकर चले गए।
शिष्य की परीक्षा (Disciple Test by Chanakya)
धनानंद का पब्बता नाम का पुत्र था जो राजा बनना चाहता था परंतु, अपने पिता धनानंद के साथ रहना नहीं चाहता था। आचार्य चाणक्य ने इस चीज का फायदा उठाया और अपने साथ उसे मिला लिया।
चाणक्य के पास दो शिष्य हो गए थे – चंद्रगुप्त और पब्बता। चाणक्य को दोनों शिष्यों में से एक को उन्हें चुनना था जो धनानंद के बाद राजा बन सके। आचार्य चाणक्य ने दोनों को गले में डालने के लिए एक-एक धागा दिया था।
जब चंद्रगुप्त सो रहा था तो चाणक्य ने पब्बता को बुलाया और कहा कि इस धागे को चंद्रगुप्त को बिना जगाए उसके गले से बाहर निकाल लो। इसमें वह सफल नहीं हो सका।
यही प्रक्रिया चाणक्य ने चंद्रगुप्त के साथ भी की। जब पब्बता सो रहा था तो उन्होंने चंद्रगुप्त को बुलाया और उस धागे को पब्बता के गले से बिना जगाए निकालने के लिए कहा। चंद्रगुप्त ने पब्बता के सिर को काट कर उस धागे को निकाल लिया।
इसके बाद चाणक्य ने चंद्रगुप्त को राजकीय कार्यों के लिए तैयार किया। उसे तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए भेजा। जब चंद्रगुप्त बड़ा हो गया तो चाणक्य ने सेना बनाने के लिए उन सोने के सिक्कों को निकाल लिया।
चंद्रगुप्त व चाणक्य ने किया धनानंद पर आक्रमण (Attack On Dhanananda By Chandragupta And Chanakya)
चाणक्य (Chanakya) ने गांव-गांव जाकर लोगों को चंद्रगुप्त की सेना से जुड़ने के लिए कहा। जब उनके पास एक बड़ी सेना बन गई तो उन्होंने धनानंद की राजधानी पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया, जिसमें उनकी हार हो गई।
जब एक दिन वह गांव में ठहरे हुए थे तो वहां पर उन्होंने एक महिला की बात सुनी जो अपने पुत्र को डांट रही थी। उसका बेटा गरम खिचड़ी को बीच में से खाना चाहता था जिससे उसका हाथ जल गया। उस महिला ने अपने बेटे को कहा कि तू चाणक्य की तरह मूर्ख है जो किनारों से खाने की बजाए साधा बीच में से खाना चाहता है।
आचार्य चाणक्य को यह बात समझ में आ गई। उन्होंने उस महिला के पैर छूकर कहा कि माता आपने हमारी आंखें खोल दी।
इसके बाद आचार्य चाणक्य और चंद्रगुप्त ने धनानंद के राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों पर आक्रमण करके उनको जीत लिया। और ऐसे करते करते उन्होंने धनानंद की राजधानी पाटलिपुत्र को भी जीत लिया और राजा धनानंद को चंद्रगुप्त ने मार दिया।
चाणक्य ने एक आदमी को धनानंद के खजाने को ढूंढने के लिए कहा। जैसे ही उन्हें खजाने के बारे में पता चल गया तो चाणक्य ने उस व्यक्ति को मरवा दिया। इससे उनकी कूटनीति का पता चलता है।
आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त को राजा बना दिया और मौर्य साम्राज्य की स्थापना करवा दी।
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राजकुमार बिंदुसार के जन्म की घटना (Event of Birth of Bindusara)
आचार्य चाणक्य हमेशा ही चंद्रगुप्त की सुरक्षा के बारे में चिंतित रहते थे। शत्रुओं के जहर के प्रति इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए चाणक्य चंद्रगुप्त के खाने में कुछ मात्रा में जहर मिला देते थे।
चंद्रगुप्त को इस बात का पता नहीं था तो उन्होंने अनजाने में जहर मिला हुआ भोजन अपनी गर्भवती पत्नी दुर्धरा के साथ खा लिया। बच्चे को जन्म देने में 7 दिन बचे थे। उस समय दुर्धरा की मौत हो गई।
जब आचार्य चाणक्य को यह बात पता चली तो उन्होंने दुर्धरा के पेट को तलवार से चीरकर भ्रूण को निकाल लिया। उस भ्रूण को हर दिन एक बकरी के गर्भ में रखा जाता था।
सात दिन बाद चंद्रगुप्त को पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम बिंदुसार रखा गया क्योंकि उसके शरीर पर बकरी के खून की बूंदों के निशान पड़ गए थे।
मौर्य साम्राज्य के प्रधानमंत्री – चाणक्य (Chanakya – The Prime Minister Of Maurya Empire)
चंद्रगुप्त के समय में आचार्य चाणक्य मौर्य साम्राज्य के प्रधानमंत्री बन गए। राज्य के कार्यों के निर्णय उनकी सलाह से लिए जाते थे। उन्होंने राज्य में शहरों, गांवों, भवनों को इस तरह से बनाया कि वे साफ-सुथरे तथा शत्रु प्रतिरोधी भी बने।
चंद्रगुप्त के महलों के चारों ओर गहरी खाई बनाकर उसमें पानी भर दिया गया। इस पानी में मगरमच्छ छोड़ दिए गए ताकि कोई भी बाहर का इंसान किले की दीवार से चढ़कर अंदर ना आ पाए।
राज्य में हर राजकीय कार्यों के लिए क्रॉस वेरिफिकेशन लगाया गया ताकि भ्रष्टाचार कम हो सके। उन्होंने धनानंद के समय से चलते आ रहे आतंक, विद्रोह, भ्रष्टाचार इत्यादि को खत्म कर दिया।
वे चंद्रगुप्त के पुत्र बिंदुसार के समय में भी मौर्य साम्राज्य के प्रधानमंत्री रहे। परंतु जब बिंदुसार को पता चला कि चाणक्य ने उसकी मां के पेट को चीर दिया था तो बिंदुसार ने उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटा दिया।
परंतु बाद में जब बिंदुसार को पूरी बात का पता चला तो उन्होंने चाणक्य से विनती की कि वे वापस प्रधानमंत्री बन जाए। परंतु, चाणक्य वृद्ध हो चुके थे तो उन्होंने प्रधानमंत्री बनने से मना कर दिया।
आचार्य चाणक्य की मृत्यु (Death of Chanakya)
जब बिंदुसार ने आचार्य चाणक्य को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया था तो बिंदुसार ने उनसे माफी मांगी। उन्होंने बिंदुसार को माफ तो कर दिया परंतु वे दोबारा प्रधानमंत्री नहीं बने।
सुबंधु नाम के एक व्यक्ति ने बिंदुसार को हवा लगाई थी कि चाणक्य ने बिंदुसार की माता को मार दिया था। वह चाणक्य से जलता था।
जब बिंदुसार ने सुबंधु को चाणक्य के पास उन्हें शांत करने के लिए भेजा तो सुबंधु ने वृद्ध चाणक्य को 283 ईसा पूर्व में मार कर जला दिया।
आचार्य चाणक्य के श्राप वजह से वह भी पागल हो गया और उसने मंत्री पद छोड़ दिया। इस तरह एक महान व्यक्तित्व वाले इंसान आचार्य चाणक्य का देहांत हुआ।
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FAQs
उत्तर- आचार्य चाणक्य को ही कौटिल्य और विष्णुगुप्त कहा जाता है। वे एक बहुत ही कुशाग्र बुद्धि इंसान थे जो सामने वाले व्यक्ति को अपने तर्क से ही हरा देते थे। उन्होंने अर्थशास्त्र नामक किताब लिखी थी जो बहुत प्रसिद्ध है। आचार्य चाणक्य की नीति की बातें बहुत प्रेरणादायक है।
उत्तर- आचार्य चाणक्य का पूरा नाम कौटिल्य ब्राह्मण/ विष्णुगुप्त ब्राह्मण था।
उत्तर- आचार्य चाणक्य का जन्म 375 ईसा पूर्व में तक्षशिला में हुआ था
उत्तर- आचार्य चाणक्य के पिता का नाम ऋषि चणक था जो उनके गुरु भी थे।
उत्तर- चाणक्य का जन्म 375 ईसा पूर्व में तक्षशिला, भारत में हुआ था।
उत्तर- बहुत सारे सूत्र यह बताते हैं कि आचार्य चाणक्य अविवाहित थे और उनकी कोई पत्नी भी नहीं थी।
उत्तर- बौद्ध सूत्रों के मुताबिक आचार्य चाणक्य की सुबंधु नामक व्यक्ति ने हत्या कर दी थी। सुबंधु आचार्य चाणक्य से जलता था और वह बिंदुसार के दरबार में उनसे ऊंचा पद चाहता था। जैन सूत्रों के मुताबिक, बिंदुसार की सौतेली माता हेलेना ने चाणक्य को जहर देकर मरवा दिया था।
उत्तर- आचार्य चाणक्य की उम्र 92 वर्ष थी। क्योंकि उनका जन्म 375 ईसा पूर्व में हुआ था और उनकी मृत्यु 283 ईसा पूर्व में हुई थी।
उत्तर- आचार्य चाणक्य के गुरु ऋषि चणक थे जो उनके पिता भी थे।
उत्तर- आचार्य चाणक्य की मृत्यु 283 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र में हुई थी।
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