धनानंद (अंग्रेजी: Dhana Nanda) प्राचीन भारत के नंद साम्राज्य का अंतिम सम्राट था। उसने एक दिन चाणक्य नाम के ब्राह्मण की भरी सभा में बेइज्जती की थी। चाणक्य ने शपथ ली कि वह उसके राज्य को जड़ से उखाड़ फेंकेगा। कुछ वर्षों बाद, चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य के साथ मिलकर नंद साम्राज्य को खत्म कर दिया। इस घटना से नंद साम्राज्य का पतन और मौर्य साम्राज्य की उत्पत्ति हुई।
धनानंद का परिचय (Introduction to Dhana Nanda)
नाम | धनानंद (Dhana Nanda) |
पिता | महापद्मनंद |
भाई | उग्रसेन, पांडुक, पांडुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, गोविशंक, दश-सिधक, कैवर्त |
पत्नी | अमितानिता |
पुत्र | पब्बता |
पुत्री | दुर्धरा |
शासन | 329 ई. पू. – 321 ई. पू. |
साम्राज्य | नंद साम्राज्य |
पूर्ववर्ती राजा | कैवर्त |
उत्तराधिकारी | चंद्रगुप्त मौर्य |
मृत्यु | 321 ईसा पूर्व, पाटलिपुत्र |
धनानंद नंद साम्राज्य का अंतिम शासक था। उसके पिता का नाम महापद्मनंद था। उसके 9 भाई थे जिनमें से वह सबसे छोटा था। उसकी पुत्री का नाम दुर्धरा था जिसने चंद्रगुप्त मौर्य के साथ प्रेम किया और बाद में उन्हीं से विवाह कर लिया। दुर्धरा की कोख से उत्पन्न संतान बिंदुसार था जो धनानंद का दोहित्र था।
धनानंद एक शराबी शासक था जो इंद्रियों के वश में पड़ा रहता था। वह अपने महल में कन्याओं के नाच गान में ही मदमस्त रहता। उसके राज्य में लूटपाट, भ्रष्टाचार, दुर्व्यवहार, डकैती जैसी बातें आम हो गई थी।
धनानंद ने राज्य के लोगों की सेवा के बारे में न सोच कर अपने ठाठ बाट पर ध्यान दिया और यही चीज उसके राज्य को पतन की ओर लेकर गई।
नंद साम्राज्य की स्थापना धनानंद के पिता महापद्मनंद ने की थी। सभी भाइयों ने प्राचीन भारत पर 22 वर्षों तक मिलकर राज किया और उसके बाद चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद साम्राज्य का खात्मा कर दिया।
आचार्य चाणक्य का अपमान (Humiliation of Chanakya)
धनानंद ने राजधानी पाटलिपुत्र में ब्राह्मणों को सम्मानित करने व उपहार देने के लिए एक कार्यक्रम रखा था। इस कार्यक्रम में दूर-दूर से ब्राह्मण आए हुए थे। आचार्य चाणक्य भी इस कार्यक्रम में गए हुए थे। आचार्य चाणक्य की वेशभूषा अच्छी नहीं दिखती थी।
धनानंद ने चाणक्य की वेशभूषा का अपमान किया और उन्हें सभा से बाहर निकालने का आदेश दिया। आचार्य ने शपथ लेते हुए कहा कि वह उसके साम्राज्य को जड़ से खत्म कर देंगे।
इस बात को सुनकर चाणक्य को गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया। चाणक्य वहां से बच निकले और धनानंद के पुत्र पब्बता को मित्र बना लिया। पब्बता राजा बनना चाहता था।
चाणक्य ने इस बात का फायदा उठाया और पब्बता को अपने साथ मिला लिया। पब्बता ने एक शाही मुहर लगी अंगूठी चाणक्य को दे दी और चाणक्य ने उसी अंगूठी को दिखा करके राजधानी पाटलिपुत्र से बाहर निकल आए।
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धनानंद को समाप्त करने के लिए चाणक्य ने बनाये सोने के सिक्के (Chanakya Created Gold Coins to Ruin Dhana Nanda)
चाणक्य पाटलिपुत्र से बच निकलने के बाद वनों में चले गए। नंद साम्राज्य को खत्म करने के लिए उन्हें बड़ी सेना की जरूरत थी और सेना को बनाने के लिए उन्हें धन की जरूरत थी। तो उन्होंने अपनी एक तकनीक से 800 मिलियन से ज्यादा सोने के सिक्के बना डाले। यह तकनीक उन्हें 1 सिक्के को 8 सिक्के में बदल कर देती थी।
उन्होंने इस धन को वहां जंगलों में छुपा दिया। और एक युवक की तलाश में चले गए, जो नंद साम्राज्य को उखाड़ फेंके और उनके अधीन रहकर अखंड भारत का निर्माण करें।
चाणक्य ने एक दिन चंद्रगुप्त नाम के बच्चे को देखा जो बहुत होशियार और चालाक था। वह अपने मित्रों को आदेश दे रहा था। चाणक्य चंद्रगुप्त के नेतृत्व से प्रभावित हुए।
चंद्रगुप्त शिकारी के यहां पर रहता था। तो चाणक्य ने शिकारी को एक हजार सोने के सिक्के दे दिए और चंद्रगुप्त को अपने साथ लेकर चले गए।
चंद्रगुप्त व पब्बता की परीक्षा (Test of Chandragupta and Pabbata)
चाणक्य के पास अब दो शिष्य हो गए थे – पब्बता और चंद्रगुप्त। उन दोनों में से चाणक्य को एक को चुनना था जो नंद साम्राज्य को उखाड़ फेंके। तो चाणक्य ने दोनों की परीक्षा लेनी चाही।
चाणक्य ने दोनों को एक-एक धागा दे दिया और उसे गले में डालने के लिए कहा।
जब चंद्रगुप्त सो रहा था तो चाणक्य ने पब्बता को बुलाया और कहा कि उसे चंद्रगुप्त के गले से उस धागे को निकालना है जबकि ध्यान रहे चंद्रगुप्त जाग न जाए। पब्बता इस कार्य में सफल नहीं हो सका।
यही प्रक्रिया चाणक्य ने चंद्रगुप्त के साथ भी की। जब पब्बता सो रहा था तो उन्होंने चंद्रगुप्त को बुलाया। और कहा कि उसे पब्बता के गले से उस धागे को निकालना है जबकि ध्यान रहे पब्बता जाग न जाए।
चंद्रगुप्त ने अपनी तलवार से पब्बता का गला काट दिया और उस धागे को अपने गुरुदेव को सौंप दिया। चाणक्य चंद्रगुप्त के इस व्यवहार से प्रसन्न हुए। उन्होंने चंद्रगुप्त को 7 वर्षों तक पढ़ाया लिखाया और उसे राजा योग्य इंसान बनाया।
चंद्रगुप्त की सेना ने किया धनानंद पर आक्रमण (Chandragupta’s Army Attacked on Dhana Nanda)
जब चाणक्य ने चंद्रगुप्त को अपना शिष्य बनाया था तब से चाणक्य ने गांव-गांव में जाकर लोगों को कहा कि आप चंद्रगुप्त की सेना से जुड़ जाइए। गांव के लोग चंद्रगुप्त की सेना से जुड़ते गए और इससे एक सेना तैयार हो गई। हालांकि, यह एक बड़ी सेना नहीं थी।
आचार्य चाणक्य की सलाह से चंद्रगुप्त ने पाटलिपुत्र पर हमला कर दिया। इस हमले में चंद्रगुप्त की हार हो गई। चाणक्य और चंद्रगुप्त ने इस हार से कुछ सबक सीखे।
चाणक्य जब एक गांव में ठहरे हुए थे तो उन्होंने एक महिला की बात सुनी जो अपने पुत्र को डांट रही थी। उसके पुत्र ने गरम खिचड़ी के बीच में हाथ डालकर खाना चाहा था जिससे उसका हाथ जल गया था। उसकी माता ने उसको कहा कि तू चाणक्य की तरह मूर्ख है जो सबसे पहले बीच में से खाना चाहता है।
चाणक्य ने इस बात को सुनकर उस महिला को चरण स्पर्श किया और कहा कि माता आपने मेरी आंखें खोल दी।
चाणक्य को समझ आ चुका था कि उन्हें अगर नंद को हराना है तो बाहरी गांवों को सबसे पहले जीतना जरूरी है। चंद्रगुप्त की सेना ने नंद साम्राज्य के बाहरी गांव को जीतते हुए राजधानी पाटलिपुत्र की तरफ धीरे-धीरे आगे बढ़े। आखिर में, उन्होंने पाटलिपुत्र पर अधिकार कर लिया।
धनानंद की मृत्यु (Death of Dhana Nanda)
पाटलिपुत्र पर अधिकार करने के बाद चंद्रगुप्त ने 321 ईसा पूर्व में धनानंद का कत्ल कर दिया और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। उसकी मृत्यु के उपरांत ही नंद साम्राज्य समाप्त हो गया। उसका पुत्र पबता पहले ही मारा जा चुका था और उसकी पुत्री दुर्धरा चंद्रगुप्त के प्रति प्रेम मोह में पड़ गई थी। अतः नंद साम्राज्य का कोई उत्तराधिकारी नहीं बचा था।
उसकी मौत हो जाने के बाद चाणक्य ने चंद्रगुप्त को प्राचीन भारत का नया सम्राट घोषित कर दिया।
धनानंद की पुत्री दुर्धरा का विवाह (Marrigae of Dhana Nanda’s Daughter)
धनानंद की पुत्री दुर्धरा ने जब पहली बार चंद्रगुप्त को देखा था तो उसे चंद्रगुप्त से प्यार हो गया था। नंद साम्राज्य के विनाश हो जाने के बाद, चंद्रगुप्त ने दुर्धरा से विवाह कर लिया। दम्पति को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम बिंदुसार रखा गया था। यही बच्चा चंद्रगुप्त के बाद मौर्य साम्राज्य का सम्राट बना था।
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