Gangadhar Rao biography in Hindi: गंगाधर राव नेवालकर झांसी के अन्तिम राजा थे। उन्होने अपने राज्य को कर्ज मुक्त करके एक सम्पन्न और खुशहाल राज्य बनाया। वे झांसी की रानी रानी लक्ष्मीबाई के पति थे और राजकुमार दामोदर राव के पिता थे।
गंगाधर राव का परिचय (Introduction to Gangadhar Rao)
नाम | महाराजा गंगाधर राव नेवालकर (Maharaja Gangadhar Rao) |
पिता | शिव राव भाऊ |
जन्म | 1797 ईस्वी |
पत्नी | रानी रमाबाई और रानी लक्ष्मीबाई |
पुत्र | दामोदर गंगाधर राव |
ससुर | मोरोपंत तांबे |
शासन | 1843 से लेकर 21 नवंबर 1853 तक, झांसी |
बड़े भाई | रघुनाथ राव |
विख्यात होने का कारण | रानी लक्ष्मी बाई के पति, झांसी के 5वें राजा |
मृत्यु | 20 नवंबर 1853, झांसी |
मृत्यु का कारण | पेचिश |
स्मृति/समाधि स्थल | गंगाधर राव की छतरी, झांसी |
महाराजा गंगाधर राव झांसी के पांचवे और अंतिम राजा थे। उनके पिता का नाम शिव राव भाऊ था। वह झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के पति थे। मोरोपंत तांबे उनके ससुर थे। गंगाधर राव एक कुशल और जनप्रिय शासक थे। हालांकि जो प्रसिद्धि रानी लक्ष्मीबाई ने प्राप्त की थी उतनी प्रसिद्धि भले ही महाराजा प्राप्त न कर सके पर वे हमेशा से ही न्याय-प्रिय और जनप्रिय शासक थे।
झांसी नामक शहर ने जो ख्याति प्राप्त की है वह रानी लक्ष्मीबाई और महाराजा गंगाधर राव के कारण ही प्राप्त की है। यह शहर वर्तमान समय में उत्तरप्रदेश (भारत) में है, परंतु उस समय बुंदेलखंड का हिस्सा हुआ करता था।
गंगाधर राव के पूर्वज (Ancestors Of Gangadhar Rao)
गंगाधर राव नेवालकर के पूर्वज महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले से आए थे। कुछ खान्देश चले गए और वहां पर पेशवा और होल्कर सेना में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करने लगे।
रघुनाथ हरि नेवालकर ने बुंदेलखंड में मराठा राजनीति को समर्थन दिया। पर रघुनाथराव वृद्ध हो गए तो उन्होंने झांसी का शासन अपने छोटे भाई शिव राव भाऊ को दे दिया।
असल में शिव राव भाऊ ही गंगाधर राव के पिता थे पर उनका भी देहांत हो गया। शिव राव एक कुशल और प्रबुद्ध शासक थे जिन्होंने झांसी की आर्थिक स्थिति को सुधारा।
गंगाधर राव बने झांसी के राजा (Gangadhar Rao Became the King of Jhansi)
सन् 1796 में गंगाधर राव के ताऊ जी, रघुनाथ राव का देहांत हो गया। उस समय रघुनाथ राव ही झांसी के राजा थे, परंतु उनकी मृत्यु के बाद उनके छोटे भाई शिव राव को राजा बना दिया गया। कुछ सालों के बाद शिव राव का भी देहांत हो गया। तब शिव राव के पौत्र रामचंद्र राव को झांसी संभाली गई।
परंतु, रामचंद्र राव एक कुशल शासक साबित नहीं हो सके। रामचंद्र राव की 1835 में मृत्यु हो गई और झांसी का राजा रघुनाथ राव तृतीय को घोषित किया गया। परंतु 1838 में रघुनाथ राव तृतीय की भी मृत्यु हो गई। उसके बाद 1843 में ब्रिटिश शासकों ने गंगाधर राव को झांसी का राजा स्वीकार कर लिया।
इस बीच झांसी का संपूर्ण नियंत्रण अंग्रेजों के पास रहा था। गंगाधर राव के राजा बनने से पहले झांसी की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी।गंगाधर राव ने अपने कुशल प्रबंधन से झांसी की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार किया।
महाराजा गंगाधर राव के गुण (Qualities of Gangadhar Rao)
जैसा कि आपने पढ़ा, 1843 में गंगाधर राव (Gangadhar Rao) झांसी के राजा बने थे। उनके व्यक्तित्व और गुणों ने झांसी की स्थिति में काफी ज्यादा सुधार किया। उनके कुछ मुख्य गुण यहां पर लिखे गए हैं-
- कुशल शासक-
महाराजा गंगाधर राव एक कुशल शासक थे। जब वे राजा बने थे तो उस समय झांसी की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। रघुनाथ राव तृतीय के शासन में हुए कर्जों को भी उन्होंने उतार दिया और झांसी को एक आर्थिक संपन्न राज्य बनाया।
- जनप्रिय राजा-
गंगाधर राव ने झांसी की प्रजा के लिए काफी समुचित विकास कार्य कराए। उन्होंने झांसी के लिए 5000 सैनिकों की सेना तैयार की और उसका नेतृत्व किया ताकि झांसी की प्रजा को भविष्य में कोई आपत्ति न आए।
- विद्वान-
गंगाधर राव को हमेशा से ही पुस्तकों से स्नेह था। झांसी के किले में उनकी खुद की पुस्तकालय थी जहां पर संस्कृत और वास्तुकला की बहुत सारी किताबें रखी हुई थी, उन्हें वे पढ़ा करते थे। वे एक बुद्धिमान और विद्वान इंसान थे जिन्हें कला और संस्कृति में रुचि थी। यहां तक कि अंग्रेज अधिकारी भी उनके गुणों की प्रशंसा किया करते थे।
- स्वाभिमानी-
एक बार जब दशहरे के दिन रविवार की छुट्टी होने के कारण अंग्रेज सैनिक परेड में उपस्थित नहीं हुए तो राजा गंगाधर राव ने अंग्रेजों के सैन्य स्थल पर जाकर इसका स्पष्टीकरण मांगा। तो ब्रिटिश अधिकारियों ने उनसे माफी मांगी। इससे पता चलता कि गंगाधर राव एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे।
गंगाधर राव का शासन और झांसी (Kingdom of Gangadhar Rao and Jhansi)
मई 1842 में गंगाधर राव ने मणिकर्णिका नाम की एक लड़की से विवाह किया। विवाह होने के बाद मणिकर्णिका का नाम ‘लक्ष्मीबाई’ कर दिया गया क्योंकि उस समय की प्रथा के अनुसार विवाह के बाद महिला का नाम बदल दिया जाता था। रानी के आने के बाद झांसी का सारा कर्जा उतर गया।
यह नाम धन की देवी लक्ष्मी के नाम के ऊपर रखा गया था क्योंकि राजा ने यह माना कि मणिकर्णिका के आने के बाद उनके राज्य में अमीरी आई है।
हालांकि राजा की पहली शादी रमाबाई के साथ हुई थी। रमाबाई जब गर्भावस्था में थी तब उनका देहांत हो गया।
उस समय की शर्त के अनुसार अंग्रेजों ने झांसी के राजा के सभी अधिकार गंगाधर राव को नहीं सौंपे थे। बल्कि अंग्रेजों ने यह कहा था कि जब गंगाधर राव झांसी का सारा कर्ज उतार देंगे तब उन्हें सारे अधिकार वापस लौटा दिए जाएंगे।
जब गंगाधर राव ने सारा कर्जा उतार दिया तो बुंदेलखंड के राजनीतिक एजेंट्स ने ब्रिटिश तक ये बात पहुंचाई पर ब्रिटिश सरकार ने कहा कि उन्हें अंग्रेजों की एक सैन्य टुकड़ी अपने राज्य में रखनी होगी। और यह भी कहा कि इस टुकड़ी का खर्चा भी गंगाधर राव (Gangadhar Rao) को ही उठाना पड़ेगा।
परिस्थितियों के वशीभूत गंगाधर राव ने ये सभी शर्तें स्वीकार कर ली। इसके लिए उन्होंने 2 सैनिक दल और 227,458 रुपये अपने पास अलग से रखें।
सभी समस्याओं से झांसी को निकालने के बाद एक बड़ा आयोजन किया गया। इस आयोजन में आसपास के जागीरदारों और सूबेदारों ने गंगाधर राव को अमूल्य उपहार भेंट किए। एक बुंदेलखंड राजनीतिक एजेंट ने राजा को 30,000 रुपये की भेंट दी।
गंगाधर राव और लक्ष्मीबाई की तीर्थ यात्रा (Gangadhar Rao and Lakshmibai’s Pilgrimage)
राजा का विवाह होने के बाद जब राज्य कुशल मंगल चल रहा था तो राजा ने तीर्थ यात्रा पर जाने की सोची। उन्होंने गवर्नर जनरल को सूचित किया कि उनकी तीर्थ यात्रा पर जाने की व्यवस्था की जाए।
इस तीर्थ यात्रा में रानी लक्ष्मीबाई भी गई थी। वे सबसे पहले गया पहुंचे और वहां से प्रयाग होते हुए वाराणसी पहुंचे। क्योंकि वाराणसी रानी लक्ष्मी बाई का जन्म स्थान था तो वहां पहुंचकर राजा बहुत प्रसन्न हुए। और राजा रानी दोनों ने प्रार्थना की और दान दिया, फिर वहां से वापस झांसी आ गए।
गंगाधर राव और लक्ष्मी बाई को पुत्र की प्राप्ति (Birth of Son of Gangadhar Rao and Lakshmi Bai)
कहा यह जाता है कि गंगाधर राव और रानी लक्ष्मीबाई का जब विवाह हुआ था तब गंगाधर राव 40 वर्ष के और रानी लक्ष्मीबाई 14 वर्ष की थी। उनका विवाह मई 1842 में हुआ था और 1851 में रानी लक्ष्मीबाई को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम दामोदर राव रखा गया था।
राज्य में खुशी का ठिकाना नहीं था क्योंकि अब उन्हें झांसी का उत्तराधिकारी मिल चुका था। इसके उत्सव में राजा ने राज्य के सभी लोगों को उपहार बांटे। यह उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया। परंतु विधाता को कुछ अलग ही मंजूर था।
जन्म के 4 महीने के बाद दामोदर राव इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। इस सदमे से रानी को बहुत ज्यादा आघात पहुंचा।
झांसी का नया उत्तराधिकारी (A New Heir of Jhansi)
गंगाधर राव (Gangadhar Rao) अपने पुत्र को खोने के बाद बहुत उदास रहने लगे। उनकी तबीयत खराब होती चली गई। अक्टूबर 1853 के नवरात्रि दिनों में वे अपनी कुलदेवी की आराधना कर रहे थे तब दशहरे के दिन उनके पेट में बहुत तेजी से दर्द होने लगा। और पता चला कि उन्हें पेचिश है।
राज्य के सभी महान डॉक्टरों को बुलाया गया पर उनकी तबीयत में कोई सुधार नहीं आया। यज्ञ, जप, तप, इत्यादि किए गए फिर भी कोई असर नहीं पड़ा। प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने गंगाधर राव से पूछा कि राज्य का उत्तराधिकारी कौन बनेगा?
तो उस समय गंगाधर राव की तबीयत बहुत बिगड़ चुकी थी तो उन्होंने बताया कि अपने परिवार के वासुदेव नेवालकर के पुत्र आनंद राव को गोद लेना चाहते हैं। इस बात को रानी लक्ष्मीबाई ने भी स्वीकार कर लिया और आनंद राव को गोद ले लिया। आनंद राव की आयु उस समय मात्र 5 वर्ष थी। गंगाधर राव ने आनंद राव का नाम बदलकर दामोदर राव रख दिया।
ब्रिटिश सरकार को अंतिम पत्र (Last Letter to British Government)
जब गंगाधर राव ने बच्चे को गोद ले लिया था तब उन्होंने ब्रिटिश सरकार को एक पत्र लिखा। इस पत्र में गंगाधर राव (Gangadhar Rao) ने कहा, “ब्रिटिश सरकार के लिए मैंने हमेशा से ही मदद की है और उनके आदेशों की ईमानदारी से पालना की है। अब मैं एक असाध्य बीमारी से ग्रस्त हूं और मेरा वंश खत्म होने की कगार पर है।
मैंने ब्रिटिश सरकार के लिए हमेशा से ही सेवाएं दी है और सरकार ने भी मेरी मदद की है। इसलिए मैं सरकार को यह सूचना देना चाहता हूं कि मैंने अपने परिवार के वासुदेव नेवालकर के पुत्र आनंद राव को गोद लिया है। रिश्ते में यह बच्चा मेरा पौत्र है।
इस बच्चे का नाम दामोदर गंगाधर राव रखा गया है जो कि मेरे मरने के बाद झांसी का उत्तराधिकारी होगा। अगर मैं इस बीमारी से स्वस्थ हो गया तो इस मुद्दे पर पुनर्विचार किया जाएगा मेरी उम्र को देखते हुए संभव है कि भविष्य में मुझे उत्तराधिकारी की प्राप्ति हो।
पर अगर मुझे कुछ हो जाता है और मैं इस बीमारी से उभर न पाऊं तो ब्रिटिश शासन मेरे पुत्र की सुरक्षा करेगी। जब तक मेरी पत्नी जीवित है वह इस राज्य और दामोदर राव की संरक्षक होगी। वह मेरे इस पूरे राज्य की शासक होगी। आप सुनिश्चित करें कि मेरे जाने के बाद मेरे पुत्र और पत्नी को कोई समस्या का सामना न करना पड़े।“
यह पत्र जब राजा ने मेजर एलिस को थमा रहे थे तब उनका गला भर आया और कहा कि इस राज्य को ऐसे ही कुशलता पूर्वक चलने दिया जाए। मेजर ने उन्हें सांत्वना दी और विश्वास दिलाया कि वे उनकी इस समाचार को सरकार तक पहुंच जाएंगे और उनकी मदद जरूर करेंगे।
गंगाधर राव नेवालकर की मृत्यु का कारण (Death of Gangadhar Rao)
इस पत्र को देने के बाद राजा गंगाधर राव नेवालकर बेहोश होकर वहीं गिर गए। कैप्टन मार्टिन और मेजर एलिस ने उनको दवा दिलाई और उन्हें बेड पर लिटाया। रानी लक्ष्मीबाई राजा के पास आकर उनकी देखभाल करने लगी। राजा को दवा के कारण नींद आने लगी।
सुबह 4:00 बजे जब राजा ने आंखें खोली तो देखा कि सभी लोग और प्रजा उनकी मंगल कामना के लिए प्रार्थना कर रही है।
राव ने अंग्रेजी दवा लेने से मना कर दिया था। 20 नवंबर, 1853 की रात को पेचिश की बिमारी के कारण महाराजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई।
बार-बार पूछे गए प्रश्न (FAQS)
उत्तर- महाराजा गंगाधर राव की दो पत्नियां थी- रमाबाई और लक्ष्मीबाई। पहली पत्नी रमाबाई जब गर्भावस्था में थी तब उनका देहांत हो गया। रानी लक्ष्मीबाई गंगाधर राव की दूसरी पत्नी थी जिनका विवाह 1842 में महाराजा गंगाधर राव के साथ हुआ था।
उत्तर- गंगाधर राव की मृत्यु 20 नवंबर 1853 को पेचिश नामक बीमारी के कारण हुई थी। इस बीमारी के कारण उनके पेट में बहुत तेजी से दर्द होने लगता था।
उत्तर- दामोदर राव, गंगाधर राव और लक्ष्मीबाई की इकलौती संतान थी। जन्म के 4 महीने के बाद दामोदर राव का निधन हो गया। एक किवदंती के अनुसार, अंग्रेजों के षड्यंत्र के कारण दामोदर राव की हत्या हुई थी।