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Baba Ramdev Ji Biography in Hindi: बाबा रामदेव जी (अंग्रेजीः Baba Ramdev Ji) एक महान लोकदेवता तथा समाज सुधारक थे जिन्होंने मध्य काल में व्याप्त सामाजिक बुराइयों को खत्म किया। बाबा रामदेव को रामदेव जी, रामदेव पीर, रामसा पीर इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। उन्होने अपने क्षेत्र पोकरण मे भैरव नामक क्रूर व्यक्ति का अंत करके वहाँ के क्षेत्रीय लोगों को आतंक से मुक्त कराया।
बाद में रामदेव जी ने इसी पोकरण को अपनी भतीजी को दहेज में दे दिया और वर्तमान जैसलमेर में रुणिचा (रामदेवरा) नामक स्थान बसाकर वहीं पर जीवित समाधि धारण की। समाज में किए गए सुधार कार्य व अपने भक्तों को दिए हुए परचों के कारण बाबाजी समाज सुधारक व लोकदेवता के रूप में प्रसिद्ध हुए।
बाबा रामदेव जी का परिचय (Introduction to Baba Ramdev Ji)
नाम | बाबा रामदेव जी (Baba Ramdev Ji) |
जन्म | भाद्रपद शुक्ल दूज, 1409 विक्रम संवत, ऊँडूकासमेर गाँव, शिव तहसील, बाड़मेर, राजस्थान (भारत) |
माता | मैणादे |
पिता | अजमाल जी |
पत्नी | नेतलदे |
संतान | निःसंतान |
भाई | वीरमदेव |
बहिन | सुगणा |
वंश | तंवर |
सम्प्रदाय/पंथ | कामड़िया |
धर्म | हिन्दू |
प्रसिद्धि का कारण | लोकदेवता, समाज-सुधारक |
मृत्यु/समाधि | भाद्रपद एकादशी 1442 विक्रम संवत, रामदेवरा, जैसलमेर, राजस्थान (भारत) |
समाधि प्रकार | जीवित समाधि |
बाबा रामदेव जी का जन्म भाद्रपद की शुक्ल दूज को विक्रम संवत 1409 में राजस्थान प्रांत के बाड़मेर जिले के शिव तहसील के ऊँडूकासमेर गाँव के राजपूत परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम अजमाल जी तंवर तथा माता का नाम मैणादे था।
बाल्यकाल में इन्हें गुरु मल्लिनाथ जी से पोकरण क्षेत्र प्राप्त हुआ और पोकरण में उस समय एक प्रसिद्ध क्रूर व्यक्ति रहा करता था जिसका नाम भैरव था। बाल्यावस्था में ही रामदेव जी ने उस क्रूर भैरव का अंत कर दिया तथा वहां के क्षेत्रीय निवासियों को आतंक व भय से मुक्त किया।
रामसा पीर ने किसी भी धर्म विशेष पर अपने कटाक्ष व्यंग्य प्रकट नहीं किए बल्कि उन्होंने तो सभी धर्मों को समान माना व सभी व्यक्तियों को एक ही ईश्वर की संतान बताया। जिसकी वजह से रामसापीर हिंदू होते हुए भी हर एक धर्म में पूजे गए चाहे वह मुस्लिम हो या सिख।
रामसा पीर ने कामड़िया पंथ की स्थापना करके सभी मनुष्यों को बराबर महत्व दिया।
रामदेव जी ने पोकरण को अपनी भतीजी के दहेज में देने के बाद, उन्होंने रामदेवरा (रुणिचा) गांव बसाया जो कि वर्तमान समय में राजस्थान के जैसलमेर जिले में है।
राजा अजमाल जी व उनका पुत्र दुःख (Raja Ajmal Ji and his Sorrow of not having a Son)
बाबा रामदेव जी के पिता अजमाल जी जैसलमेर के एक राजा थे जिन्होंने मैणादे नाम की राजकुमारी से विवाह किया। अजमाल जी की दो पुत्रियां लासा व सुगना थी परंतु उन्हें कोई पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। तो वह द्वारका गए और वहां पर भगवान कृष्ण से पुत्र प्राप्ति के लिए मनोकामना की।
ऐसा माना जाता है कि जब अजमल जी द्वारका गए थे तो वहां पर वे कई दिनों तक भगवान कृष्ण की आराधना करते रहे पर उन्हें कृष्ण की भगवान कृष्ण की मूर्ति से कोई जवाब नहीं मिला तो क्रोधित होकर उन्होंने मूर्ति पर लड्डू फेंक दिया जिसके बाद वहां के पुजारी ने उन्हें सलाह दी कि आप गुप्त द्वारका में चले जाइए।
तब अजमाल जी ने पानी में डूबी हुई द्वारका में जाने की ठान ली। उनके विश्वास व भक्ति को देखकर कृष्ण भगवान ने उन्हें एक वरदान दिया और कहा कि वह उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे।
कुछ ही वर्षों के बाद, अजमाल जी को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम वीरमदेव और अगले वर्षों में उन्हें रामदेव की प्राप्ति हुई।
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समाज सुधार कार्य (Social Reform Works by Ramsa Peer)
रामदेव जी ने सभी इंसानों को एक समान माना चाहे वह अमीर हो, गरीब हो या फिर उंच्चे परिवार से हो या निम्न परिवार से। उन्होंने विशेषकर गरीबों की बहुत मदद की।
रामसा पीर ने सभी लोगों को मिलजुल कर रहने को कहा।
उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों का विरोध किया। तथा लोगों को जात-पांत, छुआछूत, ऊंच-नीच जैसी चीजों से अवगत कराया तथा उनसे दूर रहने के लिए कहा।
उन्होंने सभी इंसानों को बराबर बताया व उनमें कभी भी भेदभाव नहीं किया जिसकी वजह से आज भी वह सभी धर्मों में पूजे जाते हैं और बहुत सारे लोगों के इष्ट देव भी हैं।
उनकी प्रसिद्ध भक्त डाली बाई एक मेघवाल समुदाय से थी फिर भी वह रामदेव जी की सबसे बड़ी भक्त बनी। इससे यह पता चलता है कि रामदेव जी ने जात-पात को त्याग दिया था। उस समय में छुआछूत व जात-पात बहुत ज्यादा थी फिर भी रामदेव जी ने इस तरह की छुआछूत को पूर्णतः मिटाने का संदेश दिया।
उन्होंने जाति प्रथा, मूर्ति पूजा और तीर्थ यात्रा का विरोध किया।
बाबा रामदेव जी के पर्चे (Baba Ramdev Ji’s Pamphlets)
एक दिन रामदेव ने अपने पिता से एक खिलौने – घोड़े की मांग की। जिसके लिए उन्होंने खिलौने बनाने वाले को लकड़ी व वस्त्र दिए ताकि वह रामदेव के लिए एक घोड़ा बना कर दे। खिलौने बनाने वाले ने सारे वस्त्र को अपनी पत्नी के लिए रख लिया। उसने घोड़े को बनाकर उसके ऊपर पुराने कपड़े सिल दिए।
जब रामसापीर उस घोड़े पर बैठे तो घोड़ा हवा में उड़ने लगा और गायब हो गया। जिसके बाद उनके पिता अजमाल जी बहुत क्रोधित हो गए और उस खिलौने वाले को जेल में डाल दिया। पर जैसे ही रामदेव जी वापस आए तो उन्होंने बताया कि खिलौने वाले ने उनके साथ छल किया है। नए वस्त्र लगाने के बजाय पुराने वस्त्र लगाए हैं। खिलौने वाले ने उनसे माफी मांगी और रामदेव जी ने क्षमा कर दिया।
एक दिन रामदेव जी के भान्जे को साँप ने काट लिया जिसके बाद वह बेहोश हो गया था। तो रामदेव जी की बहन सुगना ने उसे अपने भाई को दिखाया। रामदेव जी ने अपने भान्जे को कहा की, “देख, भाणूं थानै थारा मामोसा बुलावै।” ऐसी बात सुनकर उनका भान्जा तुरंत ठीक हो गया और अपने मामा के गले लग गया।
1 दिन रामदेव जी ने अपने एक भक्त के रखे हुए मिश्री के थैले को नमक के थैले में बदल दिया था।
इसी तरह से उन्होंने एक दिन उफनते हुए दूध को भी रोक दिया था।
रामदेव जी में असाधारण शक्तियां थी और उन्हीं शक्तियों की परखने के लिए मक्का से पांच पीर आए। रामदेव जी ने उनका स्वागत किया और उनसे प्रार्थना की कि वे उसके साथ भोजन ग्रहण करें।
परंतु पीरों ने मना कर दिया और कहा कि वे सिर्फ अपने व्यक्तिगत पात्र में ही भोजन ग्रहण करते हैं जो कि मक्का में है। इसके बाद रामदेव जी मुस्कुराए और कहा कि देखो आपके पात्र मक्का से आ रहे हैं। उन सभी पीरों के कटोरे हवा में उड़ते हुए उनके हाथों में आकर ठहर गए।
रामदेव की इस तरह की अद्भुत क्षमता व शक्तियों को देखकर पीरों ने उन्हें रामसापीर के नाम से पुकारा। पीर उनके व्यक्तित्व व शक्तियों से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए और उन्होंने उन्हीं के साथ रहने की ठान ली।
बाबा रामदेव जी की समाधि (Baba Ramdev’s Samadhi)
बाबा रामदेव जी ने 33 साल की उम्र में रामदेवरा (रुणिचा) जैसलमेर, राजस्थान में भाद्रपद एकादशी विक्रम संवत् 1442 को जीवित समाधि ले ली और अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया।
रामसापीर की मुख्य भगत, मेघवाल परिवार की डालीबाई ने भी रामसापीर के पास ही जीवित समाधि ले ली। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक डाली बाई ने रामसापीर से 2 दिन पहले ही समाधि ले ली थी।
रामदेव पीर व डाली बाई दोनों की समाधि रामदेवरा (रुणिचा) में है जो कि पोकरण से 10 किलोमीटर दूर है।
रामदेवरा में ही बाबा जी के अन्य मुख्य शिष्यों की भी समाधि बनी हुई है जो उन्हीं के मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। इसके अलावा, मक्का से जो 5 मुस्लिम पीर आए थे उन्हीं की भी समाधि यहीं पर बनी हुई है।
रुणिचा का मेला (Runicha Fair)
रुणिचे के मेले में राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, मध्य प्रदेश, मुंबई, दिल्ली इत्यादि क्षेत्रों से रामदेव जी के लाखों भक्त आते हैं।
रामदेव जी का मेला प्रतिवर्ष रुणिचा में भाद्रपद की शुक्ल दूज को भरता है क्योंकि इसी दिन रामदेव जी का जन्म हुआ था।
भाद्रपद की इस दूज को रुणिचा में भक्तों की भीड़ लग जाती है। लाखों लोग रामसा पीर का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं तथा अपने व अपने परिवार के लिए शुभ मनोकामना करते हैं। उनका प्रत्येक भक्त हाथ में रामसापीर की ध्वजा लिए उनके मंदिर में दर्शन करता है।
रामसा पीर के मेले में कामड़िया पंथ के बहुत सारे लोग तेरहताली नृत्य भी करते हैं।
यहां पर सभी धर्मों के लोग आते हैं चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम। रामदेव जी की यह सबसे बड़ी विशेषता रही कि उन्होंने कभी भी धर्म को इतना महत्व नहीं दिया। बल्कि, मनुष्य की समानता को महत्व दिया जिसकी वजह से वह आज कई धर्मों में पूजे जाते हैं।
रुणिचा के वर्तमान मंदिर की संरचना का निर्माण 1931 में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने करवाया था।
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FAQs
बाबा रामदेव जी का मेला प्रति वर्ष हिंदू कैलेंडर के मुताबिक भाद्रपद शुक्ल दूज को रामदेवरा (रुणिचा) में भरता है। बाबा जी के इस मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं जो भारत के विभिन्न राज्यों से संबंध रखते हैं।
2021 में बाबा रामदेव जी की जयंती हिंदू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद शुक्ल दूज को है।
रामदेव जी के बड़े भाई का नाम वीरमदेव था तथा उनकी दो बहनें भी थी जिनके नाम सुगना व लासा था।
रामसापीर को हिंदू-मुस्लिम व अन्य धर्मों के लोग भी पूछते हैं क्योंकि उन्होंने सांप्रदायिक सद्भाव की स्थापना की। उन्होंने अपने पंथ कमड़िया की स्थापना करके सभी इंसानों को बराबर महत्व दिया।