सूरदास (अंग्रेजी: Surdas) 16वीं शताब्दी के एक महान कवि, गायक तथा भक्त थे। ऐसा माना जाता है कि सूरदास जन्म से अंधे थे परंतु फिर भी अपनी आस्था से वे भक्ति में लीन हुए और भगवान श्रीकृष्ण को उन्होंने अपने आराध्य माना।
सूरदास ने बहुत सारी रचनाएं की जिनमें से सूरसागर, सूर सरावली, साहित्य लहरी आदि प्रसिद्ध हैं। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर सूरसागर 101 वर्ष जिए थे परंतु उनके जन्म व मृत्यु दिनांक के बारे में विश्वासदायी स्रोत नहीं मिले हैं। सूरदास का समय कवि रहीम व कबीर दास के समय से बाद का है।
सूरदास का परिचय (Introduction to Surdas)
नाम | सूरदास (Surdas) |
जन्म | संभवतः 1478 से 1483 के बीच, सिही गांव, फरिदाबाद, हरियाणा (भारत) |
माता | जमुनादास देवी |
पिता | रामदास सारस्वत |
धर्म | हिन्दू |
उपलब्धियाँ | भक्ति आंदोलन में योगदान, संत मत, संयोग तथा वियोग रस की अद्वितीय रचनाएं |
मुख्य रचनाएँ | सूर सागर, सूर सरावली, साहित्य लहरी |
प्रसिद्धि का कारण | कवि, गायक व भक्त |
काव्य भाषा | ब्रज |
मृत्यु | संभवतः 1579 से 1584 के बीच, ब्रज, भारत |
आयु | 101 वर्ष |
कवि सूरदास का जन्म 15 वी शताब्दी में हुआ था। उनके जन्म की निश्चित दिनांक का पता नहीं चल पाया है। संभवत ऐसा माना जाता है कि सूरदास का जन्म 1478 ईस्वी से लेकर 1483 ईस्वी के बीच में वर्तमान हरियाणा के फरीदाबाद के नजदीक सिही गांव में ही हुआ था। उनके पिता का नाम रामदास सारस्वत तथा माता का नाम जमुनादास देवी था।
ऐसा माना जाता है कि सूरदास जन्म से ही अंधे थे। जिसकी वजह से उनके परिवार ने उन्हें अपेक्षाकृत कर दिया और घर छोड़ने के लिए बाध्य किया। उस समय बालक सूरदास मात्र 6 वर्ष के थे और वह घर छोड़कर यमुना नदी के किनारे पर जाकर रहने लगे। यह स्थान संभवतः मथुरा आगरा के मध्य स्थित रुनकता था।
कविवर यहीं रुनकता में महाप्रभु वल्लभाचार्य से मिले। वह वल्लभाचार्य की बातों से भगवान कृष्ण के प्रति प्रेरित हुए तथा अपने आपको कृष्ण की लीला के वर्णन करने में लगा लिया।
सूरदास का साहित्यिक परिचय व रचनाएं (Literature Biography of Surdas and Literary Works)
सूरदास भक्ति और श्रृंगार के प्रसिद्ध कवि हैं। उन्होंने श्रृंगार रस के संयोग तथा वियोग पक्ष दोनों का ही हृदयस्पर्शी वर्णन किया है। उन्होंने वात्सल्य रस के वर्णन में अत्यंत कुशलता से अपनी रचनात्मकता को दिखाया है। उन्होंने अपनी रचनाओं को मुख्यता ब्रज भाषा में ही लिखा जिससे ब्रजभाषा एक ग्राम भाषा से उठकर काव्य भाषा भी बन गई।
सूरदास ने अपनी साहित्यिक रचनाओं से इस तरह से प्रसिद्धि पाई है कि उन्होंने नेत्रहीन होते हुए भी बड़े-बड़े नेत्रों वालों को भी पीछे छोड़ दिया। सूरदास जी की तीन रचनाएं प्रसिद्ध हैं – सूरसागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी।
उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना सूरसागर है जो कविवर के व्यक्तित्व में चार चांद लगा देती है। उन्होंने इसमें भगवान कृष्ण की लीलाओं के पद संग्रहित किए हैं तथा उन्हें ब्रजभाषा में बहुत ही अलंकृत रुप से संजोकर रखे हैं।
कवि सूर की वर्णन शैली भावात्मक, उपदेशात्मक, वर्णनात्मक, अलंकारिक, कूट आदि रही हैं जो पाठक के मन को मोह लेती है। उनकी रचनाओं में अलंकारों का भी बहुतायत उपयोग हुआ है। कविवर ने उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास इत्यादि अलंकारों में अपनी निपुणता को दिखाया है।
सूर भगवान कृष्ण के परम भक्त थे। उन्होंने बाल कृष्ण के ऊपर बहुत सारी रचनाओं का सृजन करके साहित्य में एक नए रस का ही उत्पादन कर दिया जिसे ‘वात्सल्य’ रस के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपने 101 साल के जीवन में हिंदी साहित्य को अनगिनत व मूल्यवान योगदान दिया जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता।
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भक्ति आंदोलन में योगदान (Contribution in Bhakti Movements)
सूरदास मध्य भारत में चल रहे भक्ति आंदोलन के भी एक अभिन्न अंग थे। सातवीं शताब्दी में दक्षिण भारत से शुरू हुए इस भक्ति आंदोलन की लहर मध्यकाल में भी देखी जा सकती थी। और संभवतः भक्ति आंदोलन 17 वीं शताब्दी तक चलता ही रहा।
इस आंदोलन ने एकत्रित लोगों की आध्यात्मिक शक्ति को निरूपित किया।
यह भक्ति आंदोलन पूरे भारत में फैला हुआ था और जन-जन तक अपने विचारों व आध्यात्मिक बातों को बता रहा था।
सूरदास की मृत्यु (Death of Surdas)
इतिहासकार मानते हैं कि कवि सूरदास की मृत्यु 1579 ईस्वी से लेकर 1584 ईस्वी के बीच हुई थी। उनका मृत्यु स्थान पारसौली गांव, ब्रज (उत्तरप्रदेश) में बताया गया है।
कविवर ने अपने 101 साल के जीवन में महान रचनाएं करके अपने नाम को अमर बनाया है। उन्होंने यह भी सिद्ध कर दिखाया कि मनुष्य अगर मन से कोई कार्य करें तो वह उसमें सफल हो जाता है चाहे वह कार्य कितना भी क्यों न मुश्किल हो।
सूर खुद नेत्रहीन होते हुए भी इतनी महान रचनाओं का सृजन किया जिससे पता चलता है कि वह भक्ति में बहुत गहनता से डूबे हुए थे।
वर्तमान आधुनिक युग में भी उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर बहुत सारे नए कवि जागृत हो रहे हैं। उनके व्यक्तित्व पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं।
FAQs
उत्तर- कवि सूरदास ने हिंदी साहित्य में अपना मूल्यवान योगदान दिया है। उन्होंने अपनी रचनाओं को बृज भाषा में रचकर कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया है।
सूरदास इसी लिए प्रसिद्ध है क्योंकि उन्होंने नेत्रहीन होते हुए भी बहुत ही महान ग्रंथों व काव्य खंडों की रचना की। उन्होंने भगवान कृष्ण को अपने आराध्य माना और उन्हीं पर अपने पदों की रचना करके अपनी भक्ति का परिचय दिया।
उत्तर- कविवर सूर की मुख्यतः तीन रचनाएं प्रसिद्ध हैं (Creations by Surdas) – सूरसागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी। जिनमें से सूरसागर, सूरदास की सबसे प्रसिद्ध व अनोखी रचना है।
उत्तर- कवि सूर (Surdas) ने हिंदी साहित्य को अपने ब्रजभाषा की रचनाओं के माध्यम से ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। उन्होंने अपने पदों में अनुप्रास, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग करते हुए भाषा को अलंकृत बना दिया।
कविवर मुख्यतः पाठक के मन को मोह लेते हैं। वह भगवान कृष्ण की लीलाओं का सजीव वर्णन करते हैं जिनमें संयोग तथा वियोग रस की रचनाएं का वर्णन किया है।
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