नाना साहेब (अंग्रेजीः Nana Saheb) ऐसे इंसान थे जिनका नाम मराठों में छत्रपति शिवाजी महाराज व संभाजी महाराज के बाद पूरे भारत में गूंजता है। ऐसे वीर पुरुष की जीवनी आज हम आपके लिए लेकर आए हैं।
नानासाहेब स्वतंत्रता संग्राम के एक महान संचारक थे। वे बिठूर के पेशवा थे जिनके कारण अंग्रेजों को कई बार हार का सामना करना पड़ा। नाना साहेब का अदम्य साहस उनकी वीरता और शौर्य का प्रतीक था।
नाना साहेब का परिचय (Introduction to Nana Saheb)
पूरा नाम | नाना साहेब (Nana Saheb) |
जन्म का नाम | धोंडू पंत |
जन्म दिनांक | 19 मई 1824 |
जन्म स्थान | वेणुग्राम, कानपुर (उत्तर प्रदेश, भारत) |
पिता | माधवनारायण भट्ट |
माता | गंगाबाई |
पालक पिता | पेशवा बाजीराव द्वितीय |
पुत्र | राव साहेब |
उपाधि | पेशवा |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
धर्म | हिंदू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
साथी | तात्या टोपे और अजीमुल्लाह खान |
मृत्यु दिनांक | 6 अक्टूबर 1858 |
मृत्यु स्थान | देवखारी गांव, नेपाल ( यह तथ्य विरोधाभासी है) |
मृत्यु का कारण | तीव्र बुखार |
जीवन काल | 34 वर्ष |
![नाना साहेब की वास्तविक इमेज](http://hindivibes.com/wp-content/uploads/2021/04/peshwa-nana-saheb.jpg?x38926)
नाना साहेब का जन्म 19 मई 1824 को वेणुग्राम (कानपुर) में हुआ था। इनके पिता का नाम माधव नारायण भट्ट और माता का नाम गंगाबाई था। पिता माधव नारायण भट्ट पेशवा बाजीराव द्वितीय के सगे भाई थे।
बाजीराव द्वितीय पुणे से कानपुर आ गए थे और इनके साथ माधव नारायण भट्ट और गंगाबाई भी आ गई। अब वे बिठूर में ही रहने लगे। माधव नारायण भट्ट और गंगाबाई को एक पुत्र की प्राप्ति हुई। इस पुत्र का नाम ‘धोंडूपंत’ रखा गया था।
परंतु किसको पता था कि यह बच्चा वीर योद्धा के रूप में इतिहास में अपना नाम जगमगाएगा। उन्हें बचपन में नाना राव भी कहा जाने लगा। इधर पेशवा बाजीराव द्वितीय नि:संतान थे तो उन्होंने इस बच्चे को गोद ले लिया। पेशवा ने उनकी पढ़ाई-लिखाई करवाई और हाथी घोड़े की सवारी, तलवार, बंदूक चलाना सिखाया।
वह बचपन में तात्या टोपे के साथ खेला करते। बिठूर में रानी लक्ष्मीबाई भी रहा करती थी। रानी लक्ष्मीबाई तात्या टोपे और नाना साहेब को अपना गुरु मानती थी। इसके अलावा उन्होंने कई भाषाओं का ज्ञान भी नाना साहेब को दिलवाया।
पेशवा बाजीराव द्वितीय की मृत्यु और पेंशन का रुकना (Death of Peshwa Bajirao II and )
28 जनवरी 1851 को पेशवा बाजीराव द्वितीय का स्वर्गवास हो गया। पेशवा के जाने के बाद जब बिठूर के उत्तराधिकारी का प्रश्न उठा तो अंग्रेज सरकार ने नानासाहेब को एक पत्र भेजा।
इस पत्र में कहा गया कि ब्रिटिश सरकार नाना साहेब (Nana Saheb) को पेशवा धन संपत्ति का उत्तराधिकारी तो मानती है ना कि उपाधि और राज सुविधाओं का।
ऐसे में पेशवा की गद्दी प्राप्त करने के संबंध में कोई कार्यक्रम या प्रदर्शन न किया जाए। परंतु नाना साहिब में अदम्य साहस था। उन्होंने पेशवा के शस्त्रागार पर अपना अधिकार जमा लिया। इसके बाद उन्होंने पेशवा की उपाधि ग्रहण कर ली।
नाना साहेब की पेंशन का रुकना (Stay of Pension of Nana Saheb)
उस जमाने में ब्रिटिश सरकार हर पेशवा को 80,000 डॉलर सालाना पेंशन दिया करती थी। परंतु बाजीराव द्वितीय के जाने के बाद वह पेंशन बंद कर दी गई। नाना ने अपने आपको पेशवा घोषित कर दिया था तो वे पेंशन को पुनः चालू करवाना चाहते थे।
यहां तक कि उन्होंने अंग्रेजों को एक पत्र लिखा और कहा कि पेशवा की पेंशन शुरू की जाए। उन्होंने इस संबंध में कानपुर के कलेक्टर को भी सूचना दी लेकिन उनकी यह मांग उचित नहीं मानी गई।
इससे नाना साहेब (Nana Saheb) को बहुत ठेस पहुंची क्योंकि उन्हें उनके आश्रितों का पालन पोषण करना था। नाना साहेब ने पेंशन के लिए लॉर्ड डलहौजी को भी इसके बारे में सूचना दी परंतु उसने भी इंकार कर दिया। क्योंकि अंग्रेज यह है मानते थे कि गोद लिया हुआ पुत्र किसी भी सिंहासन का उत्तराधिकारी नहीं बन सकता था।
अब नाना साहेब ने अजीमुल्ला खान को अपना वकील नियुक्त किया और रानी विक्टोरिया के पास ब्रिटेन भेजा। अजीमुल्ला खान भी इस मामले में असफल रहे और आते वक्त उन्होंने फ्रांस, इटली और रूस की यात्रा की और उनके बारे में जाना। वापस आने के बाद अजीमुल्ला खान ने नाना को इन सब के बारे में बताया
1857 की क्रांति में नाना साहेब (Nana Saheb in the Revolution of 1857)
नाना साहेब ने 1857 में काल्पी, दिल्ली और लखनऊ की यात्रा पर गए। उनकी यात्रा कुछ रहस्य से भरी लगती है। अंग्रेजों के द्वारा किया गया रुखा व्यवहार उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं आया था जब वह काल्पी में थे तो वे बिहार के कुंवर सिंह से मिले और क्रांति की कल्पना की।
इधर मेरठ में क्रांति की शुरुआत हो चुकी थी तो नाना अपनी सेना से कभी छुपकर तो कभी प्रत्यक्ष वार किया करते। उनकी सेना ने अंग्रेज खजाने से 8,50,000 रुपये और युद्ध का सामान लूट लिया था।नाना साहेब (Nana Saheb) और तात्या टोपे ने मिलकर कानपुर में विद्रोह किया। इस बगावत में नाना ने कानपुर पर अधिकार कर लिया।
अब कानपुर पर आजादी का झंडा फहरा रहा था। अंग्रेज हैवलॉक कानपुर को वापस पाने के लिए एक विशाल सेना के साथ कानपुर पर आक्रमण कर दिया।
1 जुलाई 1857 को नाना ने पेशवा की उपाधि धारण की और स्वतंत्रता का परचम लहराया। नाना क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर रहे थे। फतेहपुर तथा अन्य स्थानों पर नाना के क्रांतिकारियों और अंग्रेजों के बीच भीषण युद्ध हो रहे थे। इन युद्धों में कई बार क्रांतिकारी जीते तो कई बार अंग्रेज।
अंग्रेज बढ़ते आ रहे थे तो नाना ऐसी स्थिति में लखनऊ की तरफ चले गए। उसके बाद फिर वे लखनऊ से कानपुर वापस आ गए। अंग्रेजों को कभी यह महसूस नहीं हुआ था कि नाना उनका सहयोग कर रहे थे या विद्रोह।
कानपुर में क्रांति के बाद अंग्रेज समझ चुके थे कि नाना उनके विद्रोही हैं। इसके एवज में अंग्रेजों ने उनको पकड़ने के लिए एक बहुत बड़ा इनाम रखा। इससे नाना के अदम्य साहस और उनके चालाक व्यक्तित्व का पता चलता है।
![नाना साहेब और उनके सैनिक अंग्रेज सैनिकों के खिलाफ विद्रोह करते हुए](http://hindivibes.com/wp-content/uploads/2021/04/nana-and-his-soldier-fighting-against-british-soldeirs.jpg?x38926)
सत्ती घाट पर नरसंहार (Massacre at Satti Ghat)
कानपुर को अंग्रेजों ने वापस ले लिया और नाना के साथ समझौता कर लिया। 1857 में कानपुर का कमांडिंग ऑफिसर जनरल व्हीलर अपने सैनिकों और परिवार के साथ कानपुर आ रहा था। उस दौरान नाना साहेब (Nana Saheb)और उनके साथी सैनिकों ने इस अंग्रेज दल पर आक्रमण कर दिया। इस घटना में महिलाओं और बच्चों का भी कत्ल कर दिया गया।
कुछ अंग्रेज इतिहासकार यह मानते हैं कि नाना साहेब ने समझौता करने के बाद नि:शस्त्र सेना पर आक्रमण किया जो कि गलत था।इस घटना के बाद अंग्रेज पूरी तरह से क्रोधित हो गए और उन्होंने बिठूर पर आक्रमण कर दिया। इस हमले से नाना साहेब बच निकले और बिठूर छोड़ दिया। इसके बाद वे कहां गए इसके बारे में कई मत हैं।
कुछ इतिहासकार यह मानते हैं कि नाना कानपुर छोड़कर नेपाल चले गए ताकि वे अंग्रेजों से बच सकें।
अंग्रेजों ने खजाने की तलाश में पूरे महल को खोद डाला (Digged Well in the Search of Treasure of Nana Saheb)
हालांकि नाना साहेब (Nana Saheb) अंग्रेजों के हाथ नहीं लग सके परंतु अंग्रेजों ने नाना के महल को खजाने की तलाश में खोदना शुरू कर दिया। अंग्रेजों ने आधी सेना को किले की खुदाई में लगा दी। इस खोज में उन्होंने कई जासूसों की मदद भी ली। इसके बाद वे खजाना ढूंढने में सफल हो गए।
अंग्रेजों को खोज के दौरान साथ 7 गहरे कुएं मिले जिनको खोदने पर उन्हें सोने की प्लेट मिली। अब यह निश्चित हो चुका था कि खजाना यहीं इन्हीं कुओं में छिपाया गया है। तो उन्होंने कुओं का पानी बाहर निकाल कर उनको गहरा खोदना शुरू कर दिया।
कुओं के तल में उन्हें बड़े बड़े बक्से दिखाई दिए जिसमें सोने की प्लेट, सिक्के और बेशकीमती सामान रखा गया था। अंग्रेजी ने वो सारा खजाना लूट लिया और यह माना कि नाना साहब ने बहुत बड़ा खजाने का भाग अपने साथ लेकर भाग गए हैं।
नाना साहेब की मृत्यु (Death Of Nana Saheb)
ऐसा माना जाता है कि नाना साहेब (Nana Saheb) कानपुर छोड़ कर नेपाल चले गए थे। वहां पर वे तीव्र बुखार से पीड़ित हो गए।
6 अक्टूबर 1858 को तीव्र बुखार के कारण मात्र 34 वर्ष की उम्र में नेपाल के ‘देवखारी’ गांव में नाना साहेब का देहांत हो गया।
वहीं कुछ इतिहासकार यह मानते हैं कि अपने आखिरी दिनों में नाना साहेब गुजरात में थे। वहां वे ‘सिहोर’ में अपना नाम बदलकर रह रहे थे। उन्होंने अपना नाम स्वामी दयानंद योगेंद्र रख लिया था और बीमारी की वजह से उनका देहांत हो गया।
नाना साहेब की मौत आज भी एक रहस्य बनी हुई है। उनकी मृत्यु के बारे में कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं। परंतु नाना साहेब ने जो नाम बनाया था वह नाम बहुत प्रसिद्ध है जो आज भी इतिहास के पन्नों पर गूंजता है।
FAQs
उत्तर- रानी लक्ष्मीबाई नानासाहेब (Nana Saheb) को अपना गुरु मानती थी क्योंकि उन्होंने जो युद्ध नीति सीखी थी वह नानासाहेब और तात्या टोपे से सीखी थी। साथ ही रानी लक्ष्मीबाई नानासाहेब को अपना बड़ा भाई भी मानती थी क्योंकि वह बिठूर में ही पले बढ़े और उन्हीं के साथ रहे थे।
उत्तर- नाना साहेब की मृत्यु के समय आयु मात्र 34 वर्ष थी। क्योंकि उनका जन्म 19 मई 1824 को और मृत्यु 6 अक्टूबर 1858 में हुई थी। नाना साहेब की मृत्यु कैसे हुई इसके बारे में कोई पक्का प्रमाण नहीं है। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि उनकी मृत्यु नेपाल में हुई थी।
उत्तर- ऐसा माना जाता है कि नाना साहेब की मृत्यु नेपाल के गांव ‘देवखारी’ में तीव्र बुखार के कारण 6 अक्टूबर 1818 को हुई थी। वहीं कुछ इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि उनकी मृत्यु गुजरात के ‘सिहोर’ में हुई थी।
उत्तर- नाना साहेब (Nana Saheb) बिठूर के पेशवा थे जो 1857 की क्रांति के अग्रणी क्रांतिकारियों में से एक थे। उन्होंने अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने का सपना लिया था। इनके पूर्वज मराठा थे तो उनके खून में वीरता और शौर्य के लक्षण दिखते थे।उन्हें बचपन से ही तलवार घोड़े इत्यादि का शौक था और वह बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे।
उत्तर- नाना साहेब की मृत्यु 6 अक्टूबर 1858 को नेपाल के ‘देवखारी’ गांव में तीव्र बुखार के कारण हो गई। उनकी मृत्यु के बारे में पक्का प्रमाण नहीं है क्योंकि कुछ इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि उनकी मृत्यु गुजरात में हुई थी।
बहुत ही सुंन्दर और विस्तार से लिखा गया है। जिसे पढ़ कर बहुत आनंद आया।