सम्राट समुद्रगुप्त (अंग्रेजीः Samudragupta) प्राचीन भारत के गुप्त वंश के चौथे राजा थे। उन्होंने 350 ईस्वी से लेकर 375 ईस्वी तक शासन किया। वे भारत के महानतम राजाओं में से एक थे जिन्होंने भारत को एकता के सूत्र में बांधा।
समुद्रगुप्त का परिचय (Introduction to Samudragupta)
पूरा नाम | सम्राट समुद्रगुप्त (Samudragupta) |
उपनाम | कवियों का राजा, राजाओं का उन्मूलक |
जन्म | 335 ईस्वी, इंद्रप्रस्थ (प्राचीन भारत) |
माता | कुमार देवी |
पिता | चंद्रगुप्त प्रथम |
पत्नी | दत्ता देवी |
पुत्र | चंद्रगुप्त द्वितीय, रामगुप्त |
पौते | कुमारगुप्त प्रथम, पुरुगुप्त |
धर्म | हिंदू |
साम्राज्य | गुप्त |
प्रसिद्धि का कारण | गुप्त वंश का द्वितीय और महान शासक |
पूर्ववर्ती राजा | चंद्रगुप्त प्रथम |
उत्तराधिकारी राजा | चंद्रगुप्त द्वितीय |
मृत्यु | पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार) |
सम्राट समुद्रगुप्त का जन्म 335 ईस्वी में प्राचीन भारत के शहर इंद्रप्रस्थ में हुआ था। उनके पिता का नाम चंद्रगुप्त प्रथम तथा माता का नाम कुमार देवी था। एक मत के अनुसार, समुद्रगुप्त का पुराना नाम “कचा” था। परंतु, अपने राज्य को समुद्र तक फैलाने के बाद उसने अपना नाम “समुद्र” रखा।
समुद्रगुप्त के पिता चंद्रगुप्त प्रथम जब वह वृद्ध हो गये थे तो उन्होने गुप्त राज्य को अपने पुत्र समुद्रगुप्त को सौंप दिया और उसे सम्राट घोषित कर दिया।
समुद्रगुप्त के सिक्कों में उन्हे लंबा और मजबूत पेशियों वाला दिखाया गया है। अभिलेख के अनुसार, उसने गरीब, कमजोर और मध्यम वर्ग के लोगों की हर तरह से मदद की। यहां तक कि उसने अमीर लोगों को भी उनका राज्य वापस दे दिया जो युद्ध में हार गए थे।
इसके साथ ही वह एक महान कवि और संगीतकार भी था। पढ़े-लिखे लोगों में भी उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। कवियों और साहित्यकारों में भी रचनात्मक क्षमता से एक मजबूत पहचान बनाई और बहुत सारी कविताओं का भी सृजन किया। इस कारण उसे “कवियों का राजा” भी कहा जाने लगा। उसके संगीत के प्रेम को सिक्कों में भी देखा जा सकता है जहां वह वीणा को धारण करके सिंहासन पर बैठे हुए हैं।
समुद्रगुप्त के शिलालेख (Inscriptions of Samudragupta)
समुद्रगुप्त ने राजा बनने के बाद जो महान कार्य किए उनको अभिलेखों (शिलालेखों) में लिखवाया। उसके दरबार में कवि हरिषेण रहता था जिसने समुद्रगुप्त की विजयगाथाओं व अभियानों को अभिलेखों में लिखा।
उसके अभिलेख उसी स्तम्भ पर लिखे गए हैं जिस पर सम्राट अशोक के लेख हैं। प्रयाग का अभिलेख उसके इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। यह अभिलेख वर्तमान समय में इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में है। इस अभिलेख में उसकी दिग्विजयों, व्यक्तित्व, और चरित्र का प्रमाण मिलता है।
अभिलेख में समुद्रगुप्त को लाख गायों का दानी, विद्वान, विद्या का संरक्षक, धर्म का प्राचीर, कविराज, संगीतकार इत्यादि नामों से संबोधित किया गया है। यह अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है।
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भारत को बांधा राजनीतिक एकता में (Tied India in Political Unity)
समुद्रगुप्त अखिल भारतीय साम्राज्य से बहुत प्रभावित हुआ। उसने भारत को राजनीति एकता में बांधा। वर्तमान कश्मीर, पश्चिम पंजाब, पश्चिमी राजस्थान, सिंध और गुजरात को छोड़कर उसने संपूर्ण भारत पर अपने शासन का झंडा लहराया। उसका प्रभुत्व आसपास के देशों में भी फैला हुआ था।
श्रीलंका के मेधवर्धन ने गया में एक बोध मंदिर बनवाने के लिए उससे अनुमति मांगी। इस कार्य को करवाने के लिए उसने कई सारे उपहार भी भेजें। बाद में समुद्रगुप्त ने इस कार्य को अनुमति भी दे दी।
जिससे पता चलता है कि वह विदेशी राजाओं के साथ भी मित्रतापूर्वक व्यवहार रखता था। उसने (Samudragupta) अपने बल पर एक नए युग की स्थापना की।
समुद्रगुप्त की विजय (Victories of Samudragupta)
समुद्रगुप्त एक महान शासक, कूटनीतिज्ञ और विद्वान था। उसने गंगा, यमुना दोआब पर सैन्य मार्च किया जिसमें 9 राजाओं रुद्रदेव, चंद्रवर्मन, नाग, नागसेन, मतिल, नागदंत, गणपति, अच्युत, नंदी एवं बलवर्मा को हरा दिया और उनको अपने राज्य में मिला लिया। जहां ग्रहण = शत्रु पर अधिकार, मोक्ष = शत्रु को मुक्त करना, अनुग्रह = राज्य को लौटाना है।
उसे पता था कि दूर देश के राज्यों पर खुद का शासन चलाना संभव नहीं है तो उसने उन राज्यों को जीतने के बाद अपने शत्रु को ही सौंप कर अपना आधिपत्य बनाये रखा।
समुद्रगुप्त पहले उनसे युद्ध करता और उन्हें हरा देने के बाद उनके राज्य को अपने राज्य में मिला लेता। परंतु, उन राज्यों पर उन्हीं राजाओं को वापस सौंप देता जो युद्ध में हार गए थे। इस तरह से उसने बहुत सारे राजाओं का विश्वास जीत लिया और भारत को एक धागे में बांधने का काम किया।
मध्य भारत पर उसका शासन तो पहले ही कायम था। उसके भय से सीमांत क्षेत्रों के राज्यों ने भी आत्मसमर्पण कर दिया और उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। कुछ विदेशी शासकों जैसे शाहिशाहानुशाही, शक-मरूण्ड और सिंहल ने उसके साथ अपनी पुत्रियों के विवाह का प्रस्ताव भी रखा और उससे मित्रता बना ली।
अश्वमेध का यज्ञ (Ashwamedha Yagya)
प्राचीन युग में राजा अपने प्रभुत्व स्थापित हो जाने या महान कार्य पूरा हो जाने के बाद एक यज्ञ करते थे जिसे अश्वमेध यज्ञ कहते हैं।
समुद्रगुप्त ने भी अश्वमेध यज्ञ करवाया और सोने के सिक्के चलाये। परंतु यह बात इलाहाबाद के अभिलेख में नहीं मिलती है कि समुद्रगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ करवाया था। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि उसने कई सारी घोड़ों का दूसरे यज्ञों के लिए त्याग भी किया था।
इलाहाबाद के अभिलेख की शुरुआती चार लाइने मिट चुकी हैं तो कुछ विद्वान अनुमान लगाते हैं कि इन लाइनों में समुद्रगुप्त के अश्वमेध यज्ञ का वर्णन था। वहीं कुछ इस तथ्य के खिलाफ भी हैं जो कहते हैं कि अश्वमेध की बातों को चार लाइनों में वर्णन करना, तत्कालीन कवि के लिए औचित्य पूर्ण है।
समुद्रगुप्त की पोती ने भी उसके अश्वमेध यज्ञ का वर्णन किया है जो शिलालेख पर आज भी देखा जा सकता है। कुछ इतिहासकार यह मानते हैं अश्वमेध यज्ञ की प्रथा सदियों से बंद हो चुकी थी जिसने समुद्रगुप्त (Samudragupta) ने फिर से शुरू किया।
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समुद्रगप्त ने जारी किये सोने के सिक्के (Samudragupta issued gold coins)
समुद्रगुप्त, गुप्त वंश का पहला शासक था जिसने सोने के सिक्के बनवाए। इन सिक्कों पर उसकी फोटो बनी हुई है। इतिहास प्रमाणों के अनुसार, समुद्रगुप्त ने कुषाण साम्राज्य के शासक वासुदेव द्वितीय के सिक्कों की नकल करके अपने सिक्के बनाये।
वासुदेव द्वितीय के सिक्कों पर जिस तरह से वासुदेव को दिखाया गया है और कलाकारी की गई है उसी तरह से समुद्रगुप्त को भी बैठा हुआ दिखाया गया है और उन पर भी वैसी ही कलाकारी की गई है।
समुद्रगुप्त के सिक्के कई प्रकार के थे जिनमें से मुख्य प्रकार निम्न थे (Types of Gold Coins of Samudragupta)-
- मानक
- तीरंदाज
- युद्ध-कुल्हाड़ी
- बाघ कातिल
- संगीतकार
- अश्वमेध
समुद्रगुप्त की मृत्यु (Death of Samudragupta)
समुद्रगुप्त की मृत्यु पाटलिपुत्र शहर (वर्तमान पटना, बिहार) में हुई थी। इतिहासकार वीए स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा है क्योंकि उसने भारत को एकता के धागे में बांधा और सैकड़ों युद्ध में विजय प्राप्त की। कवि हरिषेण द्वारा लिखे गए प्रयाग प्रशस्ति में उसे एक महान सम्राट बताया है।
समुद्रगुप्त की मृत्यु के बाद उसका पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय राजगद्दी पर बैठा जो उसकी रानी दत्ता देवी का पुत्र था। समुद्रगुप्त (Samudragupta) का यह इतिहास हमें आज भी एक विद्वान शासकीय दिलाता है जिसने भारत को एकता के धागे में पिरोया।
FAQs
सम्राट समुद्रगुप्त का जन्म 335 ईस्वी में प्राचीन भारत के शहर इंद्रप्रस्थ में हुआ था। उनके पिता का नाम चंद्रगुप्त प्रथम तथा माता का नाम कुमार देवी था। एक मत के अनुसार, समुद्रगुप्त का पुराना नाम “कचा” था। परंतु, अपने राज्य को समुद्र तक फैलाने के बाद उसने अपना नाम “समुद्र” रखा।
समुद्रगुप्त के पिता चंद्रगुप्त प्रथम जब वह वृद्ध हो गये थे तो उन्होने गुप्त राज्य को अपने पुत्र समुद्रगुप्त को सौंप दिया और उसे सम्राट घोषित कर दिया।
चंद्रगुप्त द्वितीय और रामागुप्ता। चंद्रगुप्त द्वितीय समुद्रगुप्त की मृत्यु के बाद गुप्त वंश का शासक बना।
पाटलिपुत्र शहर में (वर्तमान पटना बिहार)।
दत्ता देवी जो चंद्रगुप्त द्वितीय की माता थी।
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तो बस दोस्तों मुझे उम्मीद है आपको समुद्रगुप्त (Samudragupta) का इतिहास जानकर बहुत अच्छा लगा होगा। अगर हां तो, अपने दोस्तों के साथ यह पोस्ट शेयर करना मत भूलना, आपका धन्यवाद।