चंद्रगुप्त प्रथम (अंग्रेजी: Chandragupta I) गुप्त वंश का एक राजा था जिसने उत्तर भारत पर शासन किया। उसके कारण गुप्त वंश का नाम पूरे भारत में प्रसिद्ध होने लगा। चंद्रगुप्त प्रथम तथा चंद्रगुप्त मौर्य दोनों अलग-अलग राजा थे। उनके जन्मों में कई सदियों का अंतराल है।
गुप्त साम्राज्य दूसरे राज्यों के साथ पारिवारिक संबंध बनाकर उसने गुप्त वंश को मजबूत बनाया।
चंद्रगुप्त प्रथम का परिचय (Introduction to Chandragupta I)
नाम | चंद्रगुप्त प्रथम (Chandragupta I) |
जन्म | पाटलिपुत्र (वर्तमान बिहार) |
माता | अज्ञात |
पिता | घटोत्कच |
पत्नी | कुमार देवी |
पुत्र | समुद्रगुप्त (कचा) |
पौते | चंद्रगुप्त द्वितीय, राम गुप्त |
धर्म | हिंदू |
साम्राज्य | गुप्त |
पूर्ववर्ती राजा | घटोत्कच |
उत्तराधिकारी राजा | समुद्रगुप्त |
उपाधि | महाराजाधिराज |
मृत्यु | 335 ईस्वी, पाटलिपुत्र |
चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश का तीसरा और प्रतापी राजा था जिसने ‘गुप्त सवंत’ (319-320 ईस्वी) की शुरुआत की थी। उसके पिता का नाम घटोत्कच था।
सम्राट बनने के बाद उसने लिच्छवी राज्य के साथ पारिवारिक संबंध बनाया और खुद को ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि दी जो प्रायः एक उच्च शासक के लिए प्रयोग की जाती थी।
उसका राज्य अभिषेक 319-320 ईस्वी में हुआ था। राजा बनने के बाद, चंद्रगुप्त ने लिछवी कुल की राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया। इस विवाह के उपरांत, गुप्त वंश का नाम प्रसिद्ध हो गया। उसके पुत्र समुद्रगुप्त ने माता कुमार देवी व पिता चंद्रगुप्त प्रथम की स्मृति में सोने के सिक्के जारी किये जिन पर उन दोनों की छवि बनी हुई है।
चंद्रगुप्त प्रथम का शासन (Reign of Chandragupta I)
319-320 इस्वी में राजतिलक होने के उपरांत ही चंद्रगुप्त प्रथम ने गुप्त सवंत (319-320 ईस्वी) की शुरुआत की। परंतु यह तथ्य कल्पना मात्र है जो यथार्थ सत्यता की पुष्टि नहीं करता। चंद्रगुप्त प्रथम ने संभवतया एक लंबे समय तक उत्तर भारत पर राज किया था। उसने गुप्त साम्राज्य की सीमा को बढ़ाने के लिए बड़े कदम तो नहीं लिए, परंतु गुप्त वंश की प्रसिद्धि बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
इलाहाबाद के अभिलेख में बताया गया है कि चंद्रगुप्त प्रथम ने वृद्ध आयु में अपने पुत्र समुद्रगुप्त को राजगद्दी पर बैठा था। जिसका स्पष्ट मतलब है कि उसने काफी लंबे समय तक शासन किया था।
चंद्रगुप्त प्रथम का विवाह (Marriage of Chandragupta I)
चंद्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवी कुल की राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया। लिच्छवी वंश का शासन वैशाली (वर्तमान बिहार) में हुआ करता था जिन्होंने लगभग 36 पीढ़ियों तक वहां शासन किया। गुप्त वंश के लोगों ने इस विवाह को एक महत्वपूर्ण कड़ी समझी क्योंकि गुप्त वंश का हाल ही में उदय हुआ था जिसने एक मजबूत वंश के साथ संबंध बनाया था।
विवाह के बाद उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम कचा रखा गया था। कचा ने अपने राज्य की सीमाओं को समुद्र तट फैलाने के बाद अपना नाम बदलकर ;समुद्रगुप्त’ रख लिया। जिससे पता चलता है कि कचा ही समुद्रगुप्त था परंतु इस तथ्य के कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं।
कुछ इतिहासकारों के मुताबिक, चंद्रगुप्त ने लिच्छवी वंश पर आक्रमण कर के हरा दिया था। वापस शांति बनाने के लिए उन्होंने एक संधि की जिसके अनुसार लिच्छवी वंश के राजा ने राजकुमारी कुमार देवी का विवाह चंद्रगुप्त के साथ कर दिया। परंतु ऐसा तथ्य भी इतिहास के पन्नों पर उद्धृत नहीं है जो इसकी सत्यता को प्रमाणित करता हो।
इस विवाह ने चंद्रगुप्त को राजनीतिक व सैन्य ताकत दी, जिसके बाद उसने खुद को महाराजाधिराज की उपाधि दी। कहा जाता है कि उसके सिक्कों पर लिच्छवी नाम लिखा हुआ था जो दर्शाता है कि लिच्छवी वंश से उसे सहायता मिली थी। विवाह के बाद उसने (Chandragupta I) लिच्छवी राज्य को अपने राज्य में मिला लिया था।
शासन का विस्तार (Extension of Reign)
चंद्रगुप्त के शासन के विस्तार के बारे में बहुत कम ही तथ्य है। उसके पुत्र समुद्रगुप्त के द्वारा बनाए गए इलाहाबाद के शिलालेख में चंद्रगुप्त प्रथम के बारे में थोड़ी ही जानकारी दी गई है। उसने बताया गया है कि समुद्रगुप्त ने बहुत सारे राजाओं को परास्त कर दिया था।
समुद्रगुप्त ने जिन राज्यों को जीता था, उसका मतलब यह था कि वो राज्य पहले गुप्त वंश के अंग नहीं थे। यानी कि उन पर चंद्रगुप्त प्रथम का अधिकार नहीं था। तो विद्वानों ने एक कच्चा अनुमान लगाया गया है कि चंद्रगुप्त प्रथम का शासन, पश्चिम में प्रयागराज, दक्षिण में मध्य भारत, उत्तर में नेपाल, पूर्व में बंगाल इन्हीं क्षेत्रों के बीच में था। अतः कहा जा सकता है कि चंद्रगुप्त प्रथम का शासन बंगाल व इसके आसपास के क्षेत्रों तक ही सीमित था।
सोने के सिक्के (Gold Coins)
मथुरा, लखनऊ, अयोध्या, सीतापुर, गाजीपुर, वाराणसी, बयाना, हाजीपुर इत्यादि क्षेत्रों से सोने के सिक्के मिले हैं। जिन पर चंद्रगुप्त व उसकी पत्नी कुमार देवी की छवि बनी हुई है। इन सिक्कों पर गुप्त लिपि में चंद्रा नाम लिखा गया है।
इसके अलावा कुछ स्थानों से ऐसे भी सिक्के प्राप्त हुए हैं जिन पर शेर पर बैठी हुई रानी की छवि बनी हुई है और गुप्त लिपि में लिच्छवी नाम लिखा हुआ है।
कुछ इतिहास शास्त्रियों के मुताबिक ये सिक्के चंद्रगुप्त के पुत्र समुद्रगुप्त ने जारी किए थे। वहीं कुछ इतिहासकारों का मत है कि यह सिक्के खुद चंद्रगुप्त (Chandragupta I) ने जारी किए थे।
इन सिक्कों में चंद्रगुप्त और कुमार देवी अलग-अलग खड़े हुए हैं तो कुछ इतिहासकारों ने प्रस्तावित किया है कि चंद्रगुप्त और कुमार देवी दोनों एक साथ मिलकर राज्य तो चलाते थे परंतु शासन के भिन्न-भिन्न क्षेत्र संभालते थे। वहीं दूसरे सिक्के में, जहां पर एक रानी की छवि है वह मां दुर्गा है।
चंद्रगुप्त प्रथम की मृत्यु (Death of Chandragupta I)
इतिहास की किताबों के अनुसार, चंद्रगुप्त प्रथम की मृत्यु 335 ईस्वी को पाटलिपुत्र में ही हुई थी। परंतु, उसकी मृत्यु के बारे में कोई ठोस सबूत नहीं है।
अपनी मृत्यु के समय वह एक वृद्ध इंसान था तथा गुप्त साम्राज्य के पूर्ववर्ती राजाओं की तुलना में शासन को अधिक लंबे समय तक संभाला और सफलतापूर्वक चलाया भी।
उत्तराधिकारी – समुद्रगुप्त (Successor of Gupta dynasty)
इलाहाबाद शिलालेख पर उलेखित है कि चंद्रगुप्त प्रथम ने अपनी वृद्धावस्था में पुत्र समुद्रगुप्त को सम्राट बनाया। समुद्रगुप्त ने गुप्त वंश का पाशा ही पलट दिया। उसने पूरे भारत पर गुप्त वंश का झंडा लहराया।
कुछ जगहों से प्राप्त सोने के सिक्के से पता चला है कि चंद्रगुप्त प्रथम की मृत्यु के बाद कचा नाम का इंसान गुप्त साम्राज्य का सम्राट बना था। संभवतया कचा, समुद्रगुप्त का बड़ा भाई था।
परंतु कुछ स्रोतों के अनुसार, कचा, समुद्रगुप्त का ही दूसरा नाम था। इस तरह चंद्रगुप्त (Chandragupta I) के बाद समुद्रगुप्त ने गुप्त वंश की राजगद्दी संभाली और उसने भारत के लगभग सभी राज्यों पर विजय प्राप्त करके देश को एकता के धागे में पिरोया। वी ए स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन भी कहा है।
FAQs
उत्तर- गुप्त वंश का तीसरा राजा चंद्रगुप्त प्रथम था जिसने गुप्त वंश का नाम भारत में चर्चा में ला दिया। वह एक प्रतापी शासक था जिसने गुप्त संवत की शुरुआत की थी।
उसका राज्य अभिषेक 319-320 ईस्वी में हुआ था। राजा बनने के बाद, चंद्रगुप्त ने लिछवी कुल की राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया। इस विवाह के उपरांत, गुप्त वंश का नाम प्रसिद्ध हो गया। उसके पुत्र समुद्रगुप्त ने माता कुमार देवी व पिता चंद्रगुप्त प्रथम की स्मृति में सोने के सिक्के जारी किये जिन पर उन दोनों की छवि बनी हुई है।
उत्तर- चंद्रगुप्त प्रथम और चंद्रगुप्त मौर्य दोनों अलग-अलग सम्राट थे। चंद्रगुप्त मौर्य गुप्त वंश के संस्थापक और पहले राजा थे जिनका जन्म 340 ईसा पूर्व में हुआ था। वहीं चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश के तीसरे राजा थे जिनका जन्म ईसा की चौथी शताब्दी में हुआ था। अतः दोनों के इतिहास में लगभग 650 वर्ष का अंतराल है।
उत्तर- 319-320 ईस्वी में चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश का सम्राट बना और उसी वर्ष उसने गुप्त संवत की शुरुआत की थी।
उत्तर- चंद्रगुप्त प्रथम।
उत्तर- कुमार देवी।
मुझे उम्मीद है दोस्तों आपको चंद्रगुप्त प्रथम (Chandragupta I) की जीवनी और उसका इतिहास पसंद आया होगा। अगर आपका किसी भी तरह का कोई प्रश्न या सुझाव है तो आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं, धन्यवाद।
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