अशोक महान का इतिहास व परिचय | Ashoka The Great Biography in Hindi

सम्राट अशोक (अंग्रेजी: Samrat Ashoka) मौर्य साम्राज्य के चक्रवर्ती राजा थे जिन्होंने प्राचीन भारत पर 268 ईसा पूर्व से लेकर 232 ईसा पूर्व तक शासन किया। सम्राट अशोक को ‘अशोक महान’ व ‘प्रियदर्शी’ के नाम से भी जाना जाता है।

सम्राट अशोक का परिचय (Introduction to Samrat Ashoka)

नामसम्राट अशोक  
अन्य नामप्रियदर्शी
जन्म304 ईसा पूर्व, पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार)
मातासुभद्रांगी (जिन्हें धर्मा के नाम से भी जाना गया)
पिताबिंदुसार मौर्य
भाईविताशोक और 99 अन्य
पत्नीदेवी, करूवकी, पद्मावती, असंधिमित्रा, तिश्यारक्षा
पुत्रमहिंदा, कुणाल, तिवाला
पुत्रीसंघमित्रा,  चारुमति
दादाचंद्रगुप्त मौर्य
दादीदुर्धरा 
साम्राज्यमौर्य साम्राज्य
धर्मबौद्ध
पूर्ववर्ती राजाबिंदुसार मौर्य
उत्तराधिकारी राजादशरथ
मृत्यु232 ईसा पूर्व, पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार)
उम्र71-72 वर्ष
सम्राट अशोक का इतिहास | Samrat Ashoka Biography in Hindi
सम्राट अशोक का इतिहास व परिचय (Samrat Ashoka Biography in Hindi)

सम्राट अशोक चक्रवर्ती मौर्य शासक थे जिन्होंने प्राचीन भारत पर (268 ई. पू. -232 ई. पू.) अपने शासन का परचम लहराया। उनके पिता का नाम बिंदुसार मौर्य और माता का नाम सुभद्रांगी था। चंद्रगुप्त मौर्य सम्राट अशोक के दादा थे जिन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी।

सम्राट अशोक (Samrat Ashoka) ने अपने दादा चंद्रगुप्त मौर्य के शासन को आगे और विस्तारित किया। उन्होंने पश्चिम में वर्तमान अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में बांग्लादेश तक, उत्तर में जम्मू-कश्मीर से लेकर दक्षिण में उड़ीसा तक शासन को फैलाया। उसने  प्राचीन भारत के अधिकांश हिस्सों को अपने क्षेत्र में मिला लिया। वर्तमान कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल ही ऐसे राज्य थे जो उसके शासन में नहीं थे। 

सम्राट अशोक ने कलिंग (वर्तमान उड़ीसा) को जीतने के लिए युद्ध किया। इस कलिंग युद्ध में 1,00,000 से ज्यादा लोग मारे गए और 1,50,000  से ज्यादा लोग घायल हो गए। खून से लथपथ धरती व मृतकों को देखकर सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन हो गया और यहीं से उन्होंने प्रण लिया कि वह कभी युद्ध नहीं करेंगे।

सम्राट अशोक पर भविष्यवाणी (Prediction On Samrat Ashoka)

जब सम्राट अशोक का जन्म हुआ था तो उसने अपनी माता सुभद्रांगी को बहुत कम कष्ट दिया था जिससे माता सुभद्रांगी ने उसका नाम अशोक रखा। 

अशोक की त्वचा व दिखावट भद्दी थी जिसके कारण पिता बिंदुसार ने उसे कभी पसंद नहीं किया। एक दिन, भावी राजा को जानने के लिए बिंदुसार ने पिंगलवत्स-जीव नाम के एक ज्योतिष को बुलाया। सभी 101 राजकुमारों को एक बगीचे में बुलाया गया। परंतु, अशोक जाना नहीं चाहता था क्योंकि उसके पिता उसे पसंद नहीं करते थे तो उसकी माता ने उसे वहां जाने के लिए कहा। 

तपस्वी पिंगलवत्स-जीव को आभास हुआ कि आने वाले समय में राजकुमार अशोक ही मौर्य साम्राज्य का सम्राट बनेगा। परंतु, उन्होंने कुछ स्पष्ट जवाब नहीं दिया और एक इशारा करते हुए कहा कि जिस राजकुमार के पास अच्छा घोड़ा, गद्दी, पेय, पात्र और भोजन होगा वह राजा बनेगा। 

सभा समाप्त हो जाने के बाद तपस्वी ने सुभद्रांगी को बताया कि अशोक ही राजा बनेगा। इस खबर का पता चलते ही सुभद्रांगी ने तपस्वी को जल्द से जल्द महल छोड़ने के लिए कहा क्योंकि बिंदुसार अस्पष्ट जवाब से क्रोधित हो सकता था।

सम्राट अशोक  (Ashoka the Great)
सम्राट अशोक (Ashoka the Great)

तक्षशिला के विद्रोह में सम्राट अशोक (Samrat Ashoka in Rebellion of Takshashila)

बिंदुसार ने अशोक को तक्षशिला के विद्रोह को शांत करने के लिए भेजा। बिंदुसार ने उसे हाथी, घोड़े, सेना, रथ तो दिए परंतु, अन्य कोई हथियार नहीं दिये। और अशोक ने हथियारों की मांग भी नहीं की। रस्ते में दैवीय शक्तियों ने अशोक को हथियार प्रदान किए। इतिहासकारों के अनुसार, पिता के ऐसे व्यवहार से स्पष्ट पता चलता है कि वह अशोक को मरवा देना चाहते थे। 

जब अशोक तक्षशिला पहुंचा तो वहां के लोगों ने उसका स्वागत किया और बताया कि वे राजा के खिलाफ नहीं है बल्कि मंत्रियों के खिलाफ हैं। वापस आते वक्त, देवताओं ने यह घोषणा की कि वह संपूर्ण भारत का चक्रवर्ती सम्राट बनेगा।

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उज्जैन का वायसराय (Viceroy Of Ujjain)

बिंदुसार ने अपने पुत्र अशोक (Samrat Ashoka) को उज्जैन का वायसराय नियुक्त किया था। उज्जैन से पाटलिपुत्र के रस्ते में विदिशा नाम का एक शहर आता था। जहां पर वह एक बार रूका और एक सुंदर लड़की के प्रेम में पड़ गया। उस लड़की का नाम देवी था जो व्यापारी की बेटी थी। उसने अशोक के पुत्र महिंदा और पुत्री संघमित्रा को जन्म दिया। जब वह 20 वर्ष का था तब उसे पुत्र महिंदा की प्राप्ति हुई थी।

कुछ सूत्रों के मुताबिक अशोक 14 वर्षों तक उज्जैन का वायसराय रहा था।

अशोक बना सम्राट (Samrat Ashoka Became Emperor)

सुसिम, बिंदुसार का सबसे प्रिय और ज्येष्ठ पुत्र था जिसने प्रधानमंत्री का भरी सभा में सिर पर थप्पड़ मार कर अपमान किया था। इस रूखे व्यवहार से, प्रधानमंत्री ने सुसिम को एक अयोग्य राजा मान लिया था और अशोक को राजा बनाने के लिए उन्होंने 500 मंत्रियों का एक समूह बनाया।

जब अशोक उज्जैन का वायसराय था तब एक बार फिर तक्षशिला में विद्रोह पनप उठा था। जिसे दबाने के लिए बिंदुसार ने ना चाहते हुए अपने प्रिय पुत्र सुसिम को भेजा। उसके जाने के बाद बिंदुसार का स्वास्थ्य कमजोर हो गया। इसी समय में अशोक उज्जैन से पाटलिपुत्र आ गया। बिंदुसार सुसिम को राजा बनाना चाहता था तो अपनी स्थिति को देखते हुए उसने अशोक को तक्षशिला जाने और सुसिम को वापस बुलाने के लिए कहा। 

मंत्रियों ने बताया कि अशोक भी बीमार पड़ गया है तो वह तक्षशिला नहीं जा पाएगा। सुसिम की अनुपस्थिति में मंत्रियों ने अशोक को सम्राट बनाने का प्रस्ताव रखा परंतु बिंदुसार ने मना कर दिया।

बिंदुसार का स्वास्थ्य और खराब हो गया था और कुछ दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद, अशोक ने अपने अन्य भाइयों का कत्ल कर दिया और खुद को मौर्य साम्राज्य का सम्राट घोषित कर दिया। हालांकि, सुसिम को जब यह बात पता चली तो वे पाटलिपुत्र की ओर रवाना हुआ। परंतु, उसे रास्ते में ही प्रधानमंत्री राधागुप्त ने मरवा दिया। 

इस तरह, अशोक ने अपने सगे भाई विताशोका को छोड़कर अन्य 99 भाइयों का कत्ल करके मौर्य साम्राज्य के शासन पर अधिकार कर लिया।

बिंदुसार मौर्यः सम्राट अशोक के पिता (Bindusara: Father Of Samrat Ashoka)
बिंदुसार मौर्यः सम्राट अशोक के पिता

सम्राट अशोक का पारिवारिक जीवन (Family Life of Samrat Ashoka)

I. अशोक की रानियां (Queens of Samrat Ashoka)

सम्राट अशोक की पांच रानियां थी –

  1. देवी
  2. करूवकी
  3. असंधिमित्रा
  4. पद्मावती
  5. तिश्यारक्षिता (तिश्यारक्षा)

रानी असंधिमित्रा सम्राट अशोक की सबसे प्रिय रानी थी। वह असंधिमित्रा से बहुत प्रभावित हुआ और उसको 7 दिन के लिए शासन संभालने को भी कहा। परंतु, असंधिमित्रा ने इंकार कर दिया। उसने अपनी अन्य 16,000 महिलाओं में हमेशा ही रानी असंधिमित्रा को सबसे ऊपर रखा।

असंधिमित्रा ने ही उसे 84,000 स्तूप और विहार बनाने के लिए उत्साहित किया था। अशोक के राजा बनने के बाद से ही असंधिमित्रा ही मौर्य साम्राज्य की महारानी थी। जब असंधिमित्रा की मृत्यु हो गई तो अशोक ने तिश्यारक्षिता को महारानी बनाया।

रानी पद्मावती का पुत्र राजकुमार कुणाल था जिसे तिश्यारक्षिता नाजायज संबंध के लिए उत्साहित करना चाहती थी। परंतु, कुणाल ने मना कर दिया। तिश्यारक्षिता को अशोक ने 7 दिन के लिए शासन दिया जिसके बाद तिश्यारक्षिता ने कुणाल को अंधा कर दिया। अशोक ने इस व्यवहार से क्रोधित होकर तिश्यारक्षिता के नाक, कान काटने के लिए आदेश दिया। जब कुणाल की दृष्टि ठीक हो गई तो उसने यह विनती की तिश्यारक्षिता को माफ कर दिया जाए।

II. अशोक के पुत्र (Samrat Ashoka’s Sons)

पुत्र का नामपुत्र की माता का नाम
तिवाराकरूवकी 
कुणालपद्मावती
महिंदादेवी

III. अशोक की पुत्रियां (Samrat Ashoka’s Daughters)

पुत्री का नामपुत्री की माता का नाम
संघमित्रादेवी
चारुमतिअसंधिमित्रा

सम्राट अशोक का क्रूर व्यवहार (Samrat Ashoka’s Cruel Behaviour)

जब अशोक सम्राट बना था तब वह एक निर्दयी और कामी शासक था जो स्त्री मोह व हिंसा में पड़ा रहता था।

सम्राट अशोक के कुछ निर्दयी कार्य (Cruel works of Samrat Ashoka) –

  • जिन मंत्रियों ने अशोक को राजा बनाने में मदद की थी वह उसकी निंदा करने लग गए थे तो उनकी वफादारी को परखने के लिए हर उस पेड़ को काटने के लिए कहा गया जिसके फल व फूल थे। आदेश को पूरा न कर पाने पर अशोक ने खुद अपनी तलवार से उन 500 मंत्रियों का गला काट दिया।
  • अशोक अपनी रखेलों (उपस्त्रियों) के साथ बगीचे में गया हुआ था। वहां पर ‘अशोक वृक्ष’ को देखकर वह कामुक हो गया। परंतु, रखैल उसकी खुरदरी त्वचा को पसंद नहीं करती थी। जब अशोक सो गया तो उन महिलाओं ने उस वृक्ष के फूल व जड़ों को तोड़ दिया। जब वह जागा तो उसने उन 500 महिलाओं को जिंदा जला दिया।
  • प्रधानमंत्री राधागुप्त ने राजा को ऐसे कृत्यों से रोकने के लिए दोषियों के खातिर एक जेल बनवाई। यह जेल बाहर से बहुत सुंदर दिखती थी परंतु इसके अंदर उतने ही भयंकर तरीके से दंड दिए जाते थे।

कलिंग का युद्ध (Kalinga War)

जब अशोक को मौर्य साम्राज्य के सम्राट बने हुए 8 साल हो गए थे तब उसने कलिंग का युद्ध किया। कलिंग के युद्ध में एक लाख से ज्यादा लोग मारे गए और 1,50,000 से ज्यादा लोग घायल हो गए और कई हजारों जानवर भी मारे गए। इस भयंकर हत्याकांड से सम्राट अशोक को मन ही मन रुदन हुआ।

उसे एहसास हुआ कि इस युद्ध के कारण लाखों बेगुनाह लोगों व जीवों की जाने चली गई। युद्ध के भीषण खून-खौलाब को देखकर उसका (Samrat Ashoka ) हृदय परिवर्तन हो गया और उसने शपथ ली कि वह आने वाले समय में कभी युद्ध नहीं करेगा।

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अशोक का बौद्ध धर्म में परिवर्तन (Samrat Ashoka Converted Into Bauddha Dharma)

अशोक ने गैर-बौद्ध धर्म के लोगों को एक बार अपने महल में बुलाया। उसने सभी लोगों को एक प्रश्न दिया। परंतु उनमें से कोई भी उस प्रश्न का जवाब नहीं दे सका। अशोक ने निगोराधा नाम के बौद्ध सन्यासी को देखा जो असल में उसी का भतीजा था परंतु उसे पता नहीं था। उसे विद्या सीखाने के लिए अशोक ने उसको कहा। परंतु, निगोराधा ने कुछ धनराशि की मांग की। 

अशोक ने उसे 4,00,000 सिल्वर के सिक्के और रोजाना 8 चावलों के अंश दिए। सम्राट (Samrat Ashoka) अब बौद्ध उपासक बन गया। इसके बाद, वह एक “मोग्गलीपुत्तातिस्सा” नाम के एक बौद्ध शिक्षक से मिला। उसने “मोग्गलीपुत्तातिस्सा” से बहुत सारी ज्ञान की बातें व बौद्ध धर्म के बारे में जाना। उन से प्रभावित होकर उसने अपने आप को बौद्ध धर्म में परिवर्तित कर लिया।

स्तूपों व मंदिरों का निर्माण

बौद्ध धर्म में परिवर्तित होने के बाद अशोक ने अपने राज्य में 84,000 स्तूपों व 84,000 विहारों को बनाने का आदेश दिया। हर एक स्तूप  में भगवान गौतम बुद्ध के अवशेषों को सोने, चांदी के बक्सों में रखा गया। इन स्तूपों को उन शहरों में बनवाया गया जिनकी जनसंख्या एक लाख से ज्यादा थी। इन स्तूपों व विहारों के साथ ही उसने बहुत सारे मंदिरों का भी निर्माण करवाया।

सम्राट अशोक के स्तूपों के पास आज भी उसके शिलालेख (Samrat Ashoka’s edicts) मिलते हैं जिनके ऊपर उसकी जीवनी व कार्यों का उल्लेख किया गया है।

सम्राट अशोक के धम्म का प्रचार (Promotion Of Samrat Ashoka’s Dhamma)

एक बार सम्राट अशोक बोधि वृक्ष की यात्रा पर गया और वहाँ से आने के बाद धम्म का विस्तार करना शुरू किया। अशोक ने सामाजिक कार्योंं में लोगों की भलाई के लिए कुछ नियम बनाए थे जिन्हें धम्म (Samrat Ashoka’s Dhamma) कहा जाता है। 

मनुष्य और पशुओं के इलाज के लिए औषधियों व अस्पतालों का निर्माण करवाया गया। हर गांव व शहर में पीने के पानी, भोज्य पदार्थों का इंतजाम किया गया। राहगीर को कोई भी परेशानी न हो इसलिए हर सड़क के पास कुओं व आश्रयों का निर्माण किया गया। 

उसने संन्यासियों को बड़े स्तर पर भोजन व आवास प्रदान करना शुरू कर दिया। अब बहुत सारे नकली संन्यासी भी असली संन्यासियों के संग में जुड़ने लग गए। असली संन्यासियों ने नकली संन्यासियों के साथ रहने से इनकार कर दिया जिसके कारण 7 वर्षों तक उपोस्थ पर्व आयोजित नहीं किया गया। 

एक घटना में नकली संन्यासियों को निकालने के चक्कर में सैनिकों ने कुछ असली संन्यासियों को भी मार दिया। तो सैनिकों ने मोग्गलीपुत्त तिस्सा (Moggaliputta Tissa) को बुलाया और उनसे इस समस्या का निवारण करवाया। जब सब कुछ सही हो गया तो उपोस्थ पर्व भी मनाया जाने लगा। 

उसने पाँच-पाँच बौद्ध संन्यासियों के दल को हरेक क्षेत्र में भेजा और बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया। इन दलों में उसके पुत्र-पुत्रियां भी गए थे।

अशोक के धम्म के कुछ नियम (Rules of Samrat Ashoka’s Dhamma) –

  1. कोई भी किसी भी जीव की हत्या नहीं करेगा।
  2. पेड़ पौधे लगाना, कुओं व विश्राम ग्रहों का निर्माण करवाना।
  3. शाही रसोई घर में जीव हत्या पर अंकुश।
  4. इंसानों व पशुओं के लिए औषधि की  सुविधा।
  5. माता-पिता के आदेशों की पालना।
  6. गरीब व वृद्ध लोगों के लिए अलग से सहायता।
  7. सभी के साथ भलाई का कार्य करना।

सम्राट अशोक की मृत्यु (Death Of Samrat Ashoka)

सम्राट अशोक की मृत्यु 232 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र में हुई थी। मृत्यु के समय उसकी उम्र 71-72 वर्ष थी। अशोक ने लगभग 37 वर्षों तक प्राचीन भारत पर राज किया।

अपने अंतिम दिनों में उन्होंने राज्य की कमाई को सन्यासियों में बांटना शुरू कर दिया। परंतु, मंत्रियों ने ऐसा करने से रोक दिया। तो अशोक ने खुद की चीजों को दान देना शुरू कर दिया।

जब अपना सब कुछ दान दे दिया तो एक विशिष्ट फल जो अशोक के पास रहता था उसे भी दान के रूप में दे दिया। वह पूरी तरह से बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो चुका था। जब अशोक का देहांत हो गया था तो अशोक के शरीर को 7 दिन और रातों तक जलाया गया।

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