दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय 2024 | Swami Dayanand Saraswati Biography in Hindi

स्वामी दयानंद सरस्वती (अंग्रेजी: Swami Dayanand Saraswati) एक महान देशभक्त, संन्यासी एवं मार्गदर्शक थे जिन्होंने आर्य समाज की स्थापना की थी। वे एक ब्राह्मण थे जिन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियां खत्म की। वो यह मानते थे कि मूर्ति पूजा करना व्यर्थ है और ओमकार निराकार में भगवान का अस्तित्व है। वैदिक धर्म को उन्होंने सर्वश्रेष्ठ बताया है। उन्होंने समाज के उत्थान में बहुत योगदान दिए, जैसे – महिलाओं के लिए बराबर अधिकार, शिक्षा का अधिकार, बाल-विवाह का विरोध, सती प्रथा का विरोध इत्यादि।

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स्वामी दयानंद सरस्वती का परिचय (Introduction to Dayanand Saraswati)

नाम स्वामी दयानंद सरस्वती (Swami Dayanand Saraswati)
वास्तविक नाममूलशंकर तिवारी
जन्म12 फरवरी 1824, टंकारा (गुजरात)
मातायशोदा बाई
पिताकृष्ण लालजी तिवारी
धर्महिंदू
संस्थापकआर्य समाज, 1875 में
गुरुविरजानंद
मृत्यु30 अक्टूबर 1883, अजमेर, राजस्थान (भारत)
दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय

दयानंद सरस्वती जी का जन्म 12 फरवरी 1824 को टंकारा (मोरबी जिला, गुजरात) के एक हिंदू परिवार में हुआ था। उनका वास्तविक नाम मूलशंकर तिवारी था। यह नाम इसलिए रखा गया था क्योंकि उनका जन्म धनु राशि और मूल नक्षत्र में हुआ था। 

दयानंद सरस्वती के पिता कृष्ण लाल जी तिवारी भगवान शिवजी के एक परम भक्त थे। जब स्वामी जी 8 वर्ष के थे, तो उनके पिता ने उन्हें शिवरात्रि पर जागने के लिए कहा था। जब रात को दयानंद, शिवजी की मूर्ति के पास बैठकर ध्यान में मग्न थे तब उन्होंने देखा कि एक चूहा शिवजी की मूर्ति के आगे रखा हुआ प्रसाद खा रहा है।

इस घटना को देखकर, उन्होंने अपने आप से प्रश्न किया कि जब भगवान शिव में इतनी शक्ति है तो फिर इस चूहे को दूर क्यों नहीं कर सकते? उन्होंने अपनी प्रारंभिक आयु से ही इस तरह के प्रश्न पूछना शुरू कर दिए और इसी बात से उनके माता-पिता को उनकी चिंता होने लगी।

स्वामी दयानंद सरस्वती का घर त्याग (Dayanand Saraswati Left his Home)

स्वामी जी हमेशा से ही धर्म और भगवान के बारे में जानने में बहुत ज्यादा उत्सुक रहते थे। जब उनकी छोटी बहन और चाचा का एक बीमारी के कारण देहांत हो गया तो उन्होंने भगवान के बारे में और ज्यादा खोजना शुरू कर दिया।

जब स्वामी जी किशोर हुए तब उन्हें समझ में आ चुका था कि वह शादी नहीं करेंगे क्योंकि यह चीज उनके लिए नहीं है। इसके बाद, उन्होंने घर से दूर जाने का फैसला कर लिया। 

सन् 1846 में स्वामी जी ने अपना घर छोड़ दिया और वे अब भगवान को खोजने में निकल चुके थे। उत्तर-भारत के तीर्थ स्थलों व हिमालय की पहाड़ियों में उन्होंने अपना जीवन बिताने का निश्चय किया। लगभग 25 साल तक स्वामी जी इन्हीं उत्तर-भारत के तीर्थ स्थलों में रहे थे।

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गुरु विरजानंद जी से मिलना (Met with Guru Virjanand)

स्वामी जी जब उत्तर भारत में थे तब उन्हें स्वामी विरजानंद दंडी मिले थे। वे विरजानंद स्वामी जी से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए और उन्हें अपना गुरु बनाने का निश्चय कर लिया। दयानंद अपने गुरु जी से योग, भगवान, वेद इत्यादि का ज्ञान ग्रहण करते थे और उनसे काफी ज्यादा उन्होंने सीखा था।

अब स्वामी जी ने लोगों को धर्म, भगवान, और वेदों के बारे में बताना शुरू कर दिया और वह उत्तर भारत से दक्षिण भारत की तरफ निकल पड़े थे।

आर्य समाज की स्थापना (Founding of Arya Samaaj)

आर्य समाज की स्थापना 10 अप्रैल 1875 को स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने गुड़ी-पड़वा के दिन मुंबई में की थी। स्वामी जी ने इस समाज की स्थापना इसलिए की थी क्योंकि वह मानते थे कि पुजारी लोग आत्मवर्धन के लिए हिंदुओं को भ्रमित कर रहे हैं। वे भगवान के बारे में उन सभी लोगों को बताना चाहते थे। 

स्वामी जी ने अलग-अलग जगहों पर जाकर लोगों को भगवान के बारे में बताया। उनका मुख्य उद्देश्य यह था कि लोगों को वेदों के बारे में बताया जाए ताकि लोग वेदों को पढ़ें और अपना वैदिक जीवन जिए। 

आर्य समाज ने मूर्ति पूजा, जीव की बलि, तीर्थ-यात्रा, पुजारी-शिल्प, मंदिर में प्रसाद चढ़ाना, जातिगत भेदभाव, बाल-विवाह, मांस खाना, महिलाओं के प्रति भेदभाव इत्यादि को त्यागने की प्रवृत्ति बनाई।

स्वामी दयानंद सरस्वती जी (Swami Dayanand Saraswati)
स्वामी दयानंद सरस्वती जी

दयानंद सरस्वती ने कुरीतियों का विरोध किया (Dayanand Saraswati Proteseted Against Bad Rituals)

स्वामी दयानंद सरस्वती (Dayanand Saraswati) जी ने समाज में मानव हित को बढ़ाना चाहा और उसमें व्याप्त कुरीतियों को खत्म करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने निम्नलिखित सुधार किये –

1. नारी शिक्षा एवं समानता –

स्वामी जी ने हमेशा से ही नारी शिक्षा पर बल दिया और महिलाओं की समानता के लिए आवाज उठाई। वे मानते थे कि नारी समाज का आधार है, उन्हें शिक्षित करना जरूरी है ताकि समाज में महिला व पुरूष के बीच समानता बढ़ सकें। अगर कोई भी निर्णय लिया जाए तो उसमें महिलाओं को पूछा जा सके।

2. सती प्रथा का विरोध –

जब एक पुरुष की मृत्यु हो जाती थी तो उसकी पत्नी को भी उस पुरुष के साथ ही मृत्यु शय्या पर लेटा दिया जाता था और उस जीवित स्त्री को भी साथ में ही जला दिया जाता था, इस कुप्रथा का नाम सती प्रथा था। स्वामी जी ने इसका खुलकर विरोध किया और लोगों को इसके बारे में सजग किया।

3. विधवा पुनर्विवाह –

उस समय में एक विधवा महिला का दूसरा विवाह होना समाज में अच्छी बात नहीं थी। स्वामी जी ने लोगों को इस कुरीति से बाहर निकालने के लिए काफी प्रयास किए और एक सफल जीवन जीने के लिए उन्होंने लोगों को प्रेरित किया।

4. समाज में एकता –

स्वामी जी चाहते थे कि सभी लोग हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन इत्यादि एक ही भगवान को माने और एक ही ध्वज के नीचे रहे। पर दुख की बात है कि उनका यह सपना कभी पूरा नहीं हो सका। वो यह चाहते थे कि सभी व्यक्ति मानव धर्म को माने।

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स्वामी दयानंद सरस्वती के धर्मों पर विचार (Dayanand Saraswati on Religions)

स्वामी जी ने अपने विचार अलग-अलग धर्मों पर स्वतंत्रापूर्वक रखे थे और वह किसी भी व्यक्ति के पक्ष और विपक्ष में नहीं थे। उनके धर्मों पर विचार निम्न थे –

1. इस्लाम –

स्वामी जी ने इस्लाम धर्म को कोसा और कहा कि कुरान जैसी किताब किसी भगवान के द्वारा नहीं लिखी गई है। यह इंसानों के द्वारा लिखी गई है क्योंकि भगवान किसी भी व्यक्ति जीव का बुरा नहीं चाहते। 

2. ईसाई – 

स्वामी दयानंद सरस्वती यह मानते थे कि ईसाई धर्म की बाइबल में लिखी गई की कहानियां पाप को बढ़ावा देती हैं और भगवान कभी भी नहीं चाहते कि इस दुनिया में पाप बढे़ क्योंकि भगवान अचूक है।

3. सिख –

स्वामी जी ने गुरु नानक को दुष्ट के रूप में कहा था क्योंकि गुरु नानक वेद, संस्कृत जैसी चीजों को नहीं मानते थे। हालांकि, स्वामी जी ने गुरु गोविंद सिंह को बहुत बहादुर व्यक्ति कहा था। 

4.जैन –

स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने जैन धर्म को सबसे भयानक धर्म बताया है। 

5. बौद्ध-

 उन्होंने बौद्ध धर्म को हास्यास्पद और नास्तिक बताया है। स्वामी जी ने कहा था कि इस धरती को बनाया नहीं गया है।

 इन विचारों पर अभी भी वाद-विवाद चलता है। ये विचार सही है या नहीं है इनका पता नहीं है।

स्वामी जी पर रचे गए षड्यंत्र (Conspiracy Created on Dayanand Saraswati)

स्वामी जी पर बहुत सारे असफल षड्यंत्र रचे गए थे। स्वामी जी के लोग यह कहते थे कि स्वामी जी के खाने में बहुत बार ज़हर मिला दिया जाता था पर फिर भी वह अपने हठयोग के कारण उन सभी षड्यंत्रों से बच जाते थे।

एक किवदंती के अनुसार, कुछ आक्रमणकारियों ने स्वामी जी को नदी में फेंकने का प्रयास किया। पर इसके बजाय स्वामी जी ने उन आक्रमणकारियों को ही नदी में फेंक दिया और स्वामी जी ने उनको वापस बचा भी लिया। 

एक और कहानी के अनुसार, जब स्वामी जी गंगा नदी के किनारे अपना ध्यान कर रहे थे तब कुछ मुसलमान लोगों ने स्वामी जी को गंगा नदी में फेंक दिया। क्योंकि मुसलमान लोग यह मानते थे कि स्वामी जी ने उनके धर्म को ठेस पहुंचाई है। दयानंद पानी के अन्दर ही रहे जब तक कि वे आक्रमणकारी वहां से चले नहीं गए।

स्वामी जी इस षड्यंत्र से भी बच निकले क्योंकि उन्हें अपने योग से सिद्धि प्राप्त हुई थी।

दयानंद सरस्वती का अंतिम जीवन (Final days of Dayanand Saraswati)

सन् 1883 में स्वामी जी जोधपुर (राजस्थान) के राजा जसवंत सिंह द्वितीय के यहां आए हुए थे। राजा जसवंत सिंह स्वामी जी का काफी मान सम्मान करते थे और उनके व्याख्यान सुनने के लिए काफी ज्यादा उत्सुक रहते थे।

एक दिन राजा जसवंत सिंह एक नर्तकी के साथ शारीरिक मोह में थे जिसका नाम नन्ही जान था। स्वामी जी ने राजा की इस हरकत को देख लिया और राजा को समझाया कि वह इस स्थिति में ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते। वह एक तरफ ज्ञान सीखना चाहते हैं और दूसरी तरफ विलासिता में लिप्त रहना चाहते हैं, ये दोनों एक साथ कभी भी संभव नहीं है। 

जसवंत सिंह ने उनकी इस बात को मान लिया और नर्तकी नन्ही जान से दूर रहने लगे। परंतु, नर्तकी नन्ही जान ने स्वामी जी से बदला लेने की सोची। नन्ही जान ने स्वामी जी के रसोइये को रिश्वत दी और उससे कहा कि तुम स्वामी जी के दूध के गिलास में कांच के छोटे-छोटे टुकड़े मिला दो। 

स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु (Death of Dayanand Saraswati)

29 सितंबर 1883 को एक रसोइए ने स्वामी जी के दूध के गिलास में कांच के टुकड़े मिला दिए थे। जब स्वामी जी ने दूध के गिलास को पी लिया तब उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। लगभग 5-6 दिन निकलने के बाद, डॉक्टर को बुलाया गया पर अब स्वामी जी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो चुकी थी। उस समय पर उस रसोइए ने अपनी गलती स्वीकार कर ली और स्वामी जी ने उसे माफ कर दिया।

राजा जसवंत सिंह ने स्वामी जी का इलाज माउंट आबू करवाने के लिए कहा और उन्हें माउंट आबू भेज दिया। पर स्वामी जी की तबीयत और बिगड़ती जा रही थी अब उनका इलाज नहीं हो पा रहा था। उन्हें अजमेर लाया गया।

30 अक्टूबर 1883 को दीपावली का त्यौहार था और उसी दिन स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु हो गई।

स्वामी जी ने अपने जीवन के 59 वर्षों में देश के लोगों को एकता, वैदिक ज्ञान, धर्म, मानव हित इत्यादि के बारे में सिखाया। समाज में व्याप्त बुराइयों को नष्ट करने के उन्होंने काफी सारे प्रयास किए। स्वामी जी (Dayanand Saraswati) आज भी एक प्रेरणादायक पुरुष है। वे मानव इतिहास में एक समाज सुधारक रहे हैं। 

सम्बंधित पुस्तकें

पुस्तक का नामलेखक
स्वामी दयानंद सरस्वतीमधुर अथैया
सत्यार्थ प्रकाशस्वामी दयानंद सरस्वती
स्वामी विवेकानंद की आत्मकथा: एक जीवनीशंकर

FAQs

स्वामी दयानंद सरस्वती कौन थे?

स्वामी दयानंद सरस्वती एक महान देशभक्त एवं मार्गदर्शक थे जिन्होंने आर्य समाज की स्थापना की थी। स्वामी जी एक ब्राह्मण थे जिन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियां खत्म की। वो यह मानते थे कि मूर्ति पूजा करना व्यर्थ है और ओमकार निराकार में भगवान का अस्तित्व है। वैदिक धर्म को स्वामी जी ने सर्वश्रेष्ठ बताया है।
दयानंद सरस्वती जी का जन्म 12 फरवरी 1824 को टंकारा (मोरबी जिला, गुजरात) के एक हिंदू परिवार में हुआ था। उनका वास्तविक नाम मूलशंकर तिवारी था। यह नाम इसलिए रखा गया था क्योंकि उनका जन्म धनु-राशि और मूल नक्षत्र में हुआ था।  

स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म कब हुआ था?

दयानंद सरस्वती जी का जन्म 12 फरवरी 1824 को टंकारा (मोरबी जिला, गुजरात) के एक हिंदू परिवार में हुआ था

स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु कब हुई थी?

30 अक्टूबर 1883 को दीपावली का त्यौहार था और उसी दिन स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु हो गई थी।

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