Atal Bihari Vajpayee poems in Hindi – अगर आप अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविताओं को ढूंढ रहे थे तो अब आपका इंतजार खत्म हो गया है क्योंकि इस आर्टिकल के अंदर हमने अटल बिहारी वाजपेयी की कुछ प्रसिद्ध कविताओं का संकलन किया है और हमें उम्मीद है कि आपको यह कविता बहुत पसंद आएंगी।
अटल बिहारी वाजपेयी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री थे और प्रधानमंत्री होने के साथ-साथ वे एक विलक्षण प्रतिभा के कवि भी थे। उनकी कविताओं में एक अलग तरह का औज है। हमें पूरा विश्वास है कि आप नीचे लिखी गई कविताएं पढ़ने के बाद आप उनकी अन्य कविताओं को भी पढ़ेंगे। अटल बिहारी वाजपेयी के विचार उनकी कविताओं में स्पष्ट दिखाई देते हैं।
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अटल बिहारी वाजपेयी की प्रसिद्ध कविताएँ | Atal Bihari Vajpayee Poems in Hindi
माननीय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक प्रबुद्ध कवि भी थे। उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताओं को हमने यहां पर संकलित किया है जिन्हें आप पढ़कर अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं।

कदम मिलाकर चलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
बाधाएं हैं, आती है तो आए
घने प्रलय की घोर घटाएं
पावों के नीचे अंगारे
सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं
निज हाथों से हंसते-हंसते
आग लगा कर चलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा।।
हास्य रुदन में, तूफानों में
अमर संख्यक बलिदानों में
उद्यानों में, वीरानों में
अपमानों में, सम्मानों में
उन्नत मस्तक, उभरा सीना
पीड़ोंओं में पलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा।।
–पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी
गीत नय़ा गाता हूँ
(पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी)
बेनकाब चेहरे हैं
दाग बड़े गहरे हैं।
टूटता तिलस्म
आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
गीत नहीं गाता हूं।।
लगी कुछ ऐसी नजर
बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
गीत नहीं गाता हूं।।
टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर झरे सब पीले पात कोयल की कूक रात प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं गीत नया गाता हूं गीत नया गाता हूं।।
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी
अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा,
रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं
गीत नया गाता हूं।।
–पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी
(Atal Bihari Vajpayee poems in Hindi)
हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन
मैं शंकर का वह क्रोध अनल, कर सकता धरती क्षार क्षार
मैं डमरु की वह प्रलय ध्वनि हूं जिसमें नाचता भीषण संहार
रणचंडी की अतृप्त प्यास
मैं दुर्गा का उन्मत्त हास
मैं यम की प्रलयंकर पुकार
जलते मरघट का धुआंधार
फिर अंतर्तम की ज्वाला से धरती में आग लगा दूं मैं
यदि धधक उठे जल, थल, अंबर, जड़, चेतन तो कैसा विस्मय
हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन,
रग-रग हिंदू मेरा परिचय।।
मैं आदि पुरुष निर्भयता का वरदान लिए आया भू पर
पय पीकर सब मरते आए,
मैं अमर हुआ लो विष पीकर
अधरों की प्यास बुझाई है मैंने
पीकर वह आग प्रखर
हो जाती दुनिया भस्मसात जिसको पलभर में ही छू कर
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन
मैं नर नारायण नीलकंठ बन गया, न इसमें कोई संशय
हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन,
रग-रग हिंदू मेरा परिचय ।।
–पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी
(Atal Bihari Vajpayee poems in Hindi)
करो बीस्सोंं समझौते
(पाकिस्तान के संदर्भ में लिखी गई कविता)
एक नहीं करो बीस्सोंं समझौते
इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो
चिंगारी का खेल बुरा होता है
औरों के घर में आग लगाने का वो सपना
वो सपना सदा अपने ही घर में खरा होता है।।
अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र न खोदो
अपने पैरों आप कुल्हाड़ी नहीं चलाओ
ओ नादान पड़ोसी अपनी आंखे खोलो
आजादी अनमोल ना इसका मोल लगाओ
पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है
तुम्हें मुफ्त में मिली, न कीमत गई चुकाई
अंग्रेजों के बल पर दो टुकड़े पाए हैं
मां को खंडित करके तुमको लाज न आई।।
जब तक गंगा की धार सिंधु में ज्वार, अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष
स्वातंत्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे अगणित जीवन योवन अशेष
अमेरिका क्या, संसार भले ही क्यों ना हो विरुद्ध
काश्मीर पर भारत का रुख नहीं झुकेगा
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते
स्वतंत्र भारत का निश्चय नहीं रुकेगा।।
–पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी
बंटवारा
(देश की आजादी के वक्त बंटवारे पर लिखी गई कविता)
किंतु आज पितरों के शोणित से रंजीत वसुंधरा की छाती
टुकड़े-टुकड़े हुई विभाजित बलिदानी पुरखों की ख्याति
कण कण पर शोणित बिखरा है पग पग पर माथे की रोली
इधर मनसुख की दिवाली और उधर जनधन की होली।।
रो-रोकर पंजाब पूछता किसने है दोआब बनाया
किसने मंदिर गुरुद्वारों को अधर्म का अंदाज दिखाया
खड़े दिल्ली पर हो किसने पौरुष को ललकारा
किसने पापी हाथ बढ़ाकर मां का मुकुट उतारा।।
काश्मीर के नंदनवन को किसने है सुलगाया
किसने छाती पर अन्यायों का अंबार लगाया
आंख खोल कर देखो घर में भीषण आग लगी है
धर्म, सभ्यता, संस्कृति खाने दानव क्षुधा जगी है
हिंदू कहने में शर्माते, दूध लजाते लाज न आती
घोर पतन है, अपनी मां को मां कहने में फटती छाती।।
–अटल बिहारी वाजपेयी
(Atal Bihari Vajpayee poems in Hindi)
मैं जी भर जिया
मौत से ठन गई जूझने का मेरा कोई इरादा न था मोड़ पर मिलेंगे इसका कोई वादा न था रास्ता रोककर खड़ी हो गई यूँ लगा जिंदगी से बड़ी हो गई
मौत की उम्र क्या दो पल भी नहीं जिंदगी सिलसिला आजकल की नहीं मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ लौट कर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं
तू दबे पांव चोरी-छिपे से ना आ सामने वार कर फिर मुझे आजमा मौत से बेखबर जिंदगी का सफर शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर
बात ऐसी नहीं कि कोई गम ही नहीं दर्द अपने पराए कुछ कम भी नहीं प्यार परायों से मुझे इतना मिला न अपनों से बाकी है कोई गिला
हर चुनौती से 2 हाथ में ने किए आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।।
–अटल बिहारी वाजपेयी
वाजपेयी जी की अन्य कविताओं को पढ़ने के लिए उनकी पुस्तक खरीदने के लिए यहां क्लिक करें। हिंदी साहित्य में उन्होंने अपना अहम स्ठान बनाया और अच्छे प्रधानमंत्री होने के साथ साथ वे एक अच्छे कवि भी थे।
दोस्तों यह थी अटल बिहारी वाजपेई की कुछ कविताएं और हमें पूरा विश्वास है कि आप को ये कविताएं बहुत पसंद आई होगी और अगर आप उनकी अन्य कविताओं को भी पढ़ना चाहते हैं तो उनकी कविताओं की पुस्तक खरीद सकते हैं।