बंटवारा
(देश की आजादी के वक्त बंटवारे पर लिखी गई कविता)
किंतु आज पितरों के शोणित से रंजीत वसुंधरा की छाती
टुकड़े-टुकड़े हुई विभाजित बलिदानी पुरखों की ख्याति
कण कण पर शोणित बिखरा है पग पग पर माथे की रोली
इधर मनसुख की दिवाली और उधर जनधन की होली।।
रो-रोकर पंजाब पूछता किसने है दोआब बनाया
किसने मंदिर गुरुद्वारों को अधर्म का अंदाज दिखाया
खड़े दिल्ली पर हो किसने पौरुष को ललकारा
किसने पापी हाथ बढ़ाकर मां का मुकुट उतारा।।
काश्मीर के नंदनवन को किसने है सुलगाया
किसने छाती पर अन्यायों का अंबार लगाया
आंख खोल कर देखो घर में भीषण आग लगी है
धर्म, सभ्यता, संस्कृति खाने दानव क्षुधा जगी है
हिंदू कहने में शर्माते, दूध लजाते लाज न आती
घोर पतन है, अपनी मां को मां कहने में फटती छाती।।
–अटल बिहारी वाजपेयी
(Atal Bihari Vajpayee poems in Hindi)