गुरु जांभोजी (अंग्रेजीः Jambhoji) को जंभेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। वह एक महान संत थे जो 15 वीं शताब्दी में राजस्थान के पीपासर नामक गांव में जन्मे थे।
जांभोजी ने विश्नोई संप्रदाय की स्थापना कर जीव कल्याण व वृक्षों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण व चमत्कारी कार्य किया।
उन्होंने विश्नोई संप्रदाय की स्थापना करते हुए 29 नियम दिए थे। उन्ही 29 नियमों के कारण उनके इस संप्रदाय को बिश्नोई (20+9 = बीस+नौ) नाम दिया गया था। कालांतर में बिश्नोई शब्द विश्नोई में बदल गया है।
गुरु जंभेश्वर का परिचय (Introduction to Guru Jambheshwar)
नाम | गुरु जांभेश्वर (जांभोजी) |
जन्म दिनांक | 1451 ईस्वी, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी |
जन्म स्थान | पीपासर, वर्तमान राजस्थान (भारत) |
माता | हंसा कंवर देवी |
पिता | लोहट जी पंवार |
मंत्र | “विष्णु विष्णु तू भण रे प्राणी” |
मंदिर-स्थान | पीपासर, मुकाम, समराथल धोरां, जांभोवल, जजिवाल |
पर्व | जंभेश्वर जन्माष्टमी, अमावस्या व्रत |
सम्प्रदाय | बिश्नोई |
रचित ग्रंथ | जंभ संहिता, जंभ सागर शब्दावली, विश्नोई धर्मप्रकाश, जंभसागर |
धर्म | हिन्दू |
प्रसिद्धि का कारण | बिश्नोई सम्प्रदाय के संस्थापक, वन्य जीव-जन्तुओं व वृक्षों की रक्षा करना, प्रकृति प्रेमी |
मृत्यु | 1536 ईस्वी, मुकाम, राजस्थान (भारत) |
जीवनकाल | 85 वर्ष |
गुरुदेव जांभोजी का जन्म 1451 ईस्वी की भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को पीपासर गांव (वर्तमान नागौर, राजस्थान में) हुआ था। उनके पिता लोहट जी, पंवार वंश के राजपूत थे तथा माता हंसा देवी थी।
जब जांभोजी 32 या 33 वर्ष की उम्र के थे तब 1483 ईस्वी में उनके माता-पिता का देहांत हो गया। माता-पिता के देहांत हो जाने के बाद जंभेश्वर ने गृह त्याग दिया और भौतिक जीवन त्याग कर समराथल (बीकानेर, राजस्थान) में आ गए। यहां समराथल में उन्होंने हरि चर्चा में रुचि लगाई तथा अपना अधिकांश समय बिताया।
विश्नोई संप्रदाय की स्थापना (Establishment of Vishnoi sect)
2 वर्ष बाद, 1485 ईस्वी में गुरु जंभेश्वर ने समराथल (बीकानेर) में विश्नोई संप्रदाय का प्रवर्तन किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को 29 नियमों की पालना करने को कहा जिसकी वजह से इस संप्रदाय का नाम विश्नोई (बीस+नौ) संप्रदाय पड़ा।
जांभोजी के इस संप्रदाय व उनके विचारों को अपनाने वाले लोगों को विश्नोई के नाम से जाना जाने लगा। वर्तमान समय में भी मुख्यतः राजस्थान के बीकानेर, नागौर व जोधपुर जिलों में विश्नोई संप्रदाय के लोग रहते हैं। विश्नोई संप्रदाय के लोगों का मुख्य उद्देश्य जीव कल्याण तथा वृक्षों की रक्षा करना रहा है।
संभवतया आपने अमृता बाई विश्नोई की कहानी जरूर सुनी होगी जिन्होंने वृक्षों के लिए अपनी जान दे दी थी। अमृता बाई ही नहीं बल्कि उनके गांव के 363 से ज्यादा लोगों ने वृक्षों से चिपक कर अपने प्राण त्याग दिए थे। वे लोग जांभोजी के विचारों के अनुसारक थे।
गुरु जंभेश्वर की रचनाएं (Guru Jambheshwar Compositions)
विश्नोई संप्रदाय की स्थापना करने के बाद जांभोजी ने कई सारे ग्रंथों की रचना भी की थी। जांभोजी के द्वारा रचित मुख्य ग्रंथ निम्न हैं –
- जंभसंहिता
- जंभसागर शब्दावली
- विश्नोई धर्म प्रकाश
- जंभसागर
विश्नोई संप्रदाय के 29 नियम (29 Rules of Bishnoi)
गुरु जंभेश्वर ने विश्नोई संप्रदाय के लिए 29 नियमों की रचना की थी जो कि निम्न हैं –
- तीस दिन तक सूतक रखना।
- झूठ नहीं बोलना।
- वाद-विवाद का त्याग करना।
- अमावस्या का व्रत रखना।
- हरा वृक्ष नहीं काटना।
- निंदा नहीं करनी।
- चोरी नहीं करनी।
- क्षमा दया धारण करना।
- वाणी विचार कर बोलना।
- प्रतिदिन सवेरे स्नान करना।
- अमल नहीं खाना।
- तंबाकू का सेवन नहीं करना।
- भांग नहीं पीना।
- मांस नहीं खाना।
- मद्यपान नहीं करना।
- बेल बधिया नहीं कराना।
- रसोई अपने हाथ से बनानी।
- काम, क्रोध आदि अजरों को वश में करना।
- थाट अमर रखना।
- भगवान विष्णु का भजन करना।
- संध्या समय आरती और हरिगुण गाना।
- नीला वस्त्र व नील का त्याग करना।
- निष्ठा व प्रेम पूर्वक हवन करना।
- पांच दिन ऋतुवन्ती स्त्री का गृह कार्य से पृथक रहना।
- पानी, ईंधन और दूध को छानकर प्रयोग में लेना।
- शील का पालन करना व संतोष रखना।
- बाह्य व आंतरिक पवित्रता रखना।
- द्विकाल संध्या उपासना करना।
- जीव दया पालनी।
बिश्नोई समुदाय के सभी लोग इन नियमों का अनुसरण करते हैं तथा अपने जीवन को सार्थक बनाते हैं। परंतु कुछ ऐसे नियम भी हैं जिन्हें बिश्नोई लोग अपने समुदाय का मुख्य आधार नियम मानते हैं जिनमें वृक्षों की रक्षा करना, जीव-जंतुओं की रक्षा करना, शाकाहारी भोजन करना आदि हैं।
गुरु जंभेश्वर की मृत्यु (Death of Guru Jambheshwar)
1536 ईस्वी में 85 वर्ष की उम्र में गुरु जंभेश्वर की लालासर गांव (बीकानेर) में निर्वाण को प्राप्त हुए। तालवा गांव के निकट जांभोजी को समाधि दी गई थी।
जिस स्थान पर गुरु जंभेश्वर की समाधि बनी हुई है उस स्थान को “मुकाम” के नाम से जाना जाता है। प्रति वर्ष दो बार फागुन व अश्विन की अमावस्या को यहां मेला भी भरता है।
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FAQS
उत्तर- जांभोजी एक महान संत थे जिन्होंने पर्यावरण व जीवो की रक्षा के लिए 29 नियम दिए तथा एक संप्रदाय की स्थापना की जिसे विश्नोई संप्रदाय के नाम से जाना जाता है। इनका जन्म राजस्थान के पीपासर गांव में हुआ था जो कि नागौर जिले में है।
उत्तर- गुरु जांभोजी ने विष्णु संप्रदाय की स्थापना कर के 29 नियम दिए जो मानव को प्रकृति प्रेमी व श्रेष्ठ जीवन जीने में मददगार हैं इसी कारण जांभोजी प्रसिद्ध है। विश्नोई संप्रदाय के लोग उन्हें अपना गुरु मानते हैं।
उत्तर- गुरु जांभोजी ने विष्णु जी संप्रदाय की स्थापना की थी जिनके अनुयायी का मुख्य कर्तव्य वृक्षों की रक्षा करना, जीव जंतुओं की रक्षा करना है। जांभोजी के मेले में कोई भी भगत अंगारों पर नहीं चलते हैं। हालांकि, राजस्थान के जसनाथी सम्प्रदाय के लोग जलते हुए अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं।
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अपने बिश्नोई समाज तथा गुरु जांभोजी के बारे में बहुत ही अच्छे से बताया है, आपके द्वारा दी गई जानकारी एकदम सटीक तथा संतोषजनक है।
बहुत सुंदर और सटीक जानकारी, धन्यवाद
bhut accha