चंद्रशेखर आजाद (अंग्रेजी: Chandra Shekhar Azad, जन्म: 23 जुलाई 1996 – मृत्यु: 27 फरवरी 1931) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक क्रांतिकारी नेता थे जिन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिकन संगठन की स्थापना की। इस संगठन में भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व बहुत सारे अन्य क्रांतिकारी सम्मिलित थे।
भारतवर्ष को आजाद कराने के लिए उन्होंने देश के नौजवानों को सबसे ज्यादा प्रेरित किया। आजाद ने ब्रिटिश शासन को खत्म करने के लिए अनेकों प्रयत्न किये। उन्होंने कभी भी अपने आप को कैद नहीं होने दिया। आजाद ने, आजाद रहने के लिए गोली मारकर अपनी आत्महत्या कर ली।
चंद्रशेखर आजाद का परिचय (Introduction to Chandra Shekhar Azad)
प्रचलित नाम | चंद्रशेखर आजाद |
वास्तविक नाम | चंद्रशेखर तिवारी |
जन्म | 23 जुलाई 1906, बदरका, उत्तर प्रदेश |
माता | जागरणी देवी |
पिता | सिताराम तिवारी |
आंदोलन | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम |
धर्म | हिंदू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
प्रसिद्धि का कारण | स्वतंत्रता सेनानी व क्रांतिकारी |
मृत्यु | 27 फरवरी 1931, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु का कारण | बंदूक की गोली से आत्महत्या |
जीवनकाल | 24 वर्ष |
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1960 को वर्तमान उत्तर प्रदेश के भाभ्रा गांव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम चंद्रशेखर तिवारी था। उनके पिता का नाम सीताराम तिवारी तथा माता का नाम जागरणी देवी था। उनके दादे-परदादे उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गांव से थे।
आजाद की माता जागरण देवी ने अपने पुत्र को संस्कृत का बहुत बड़ा त्रानी बनना चाहती थी और उन्होंने उसे बनारस के काशी विद्यापीठ में पढ़ाने के लिए भी भिजवाया।
1921 में चंद्रशेखर 15 साल के एक विद्यार्थी थे। उस समय चल रहे असहयोग आंदोलन में उन्होंने भाग लिया। असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
जेल होने के बाद उन्हें जिला मजिस्ट्रेट टॉमसन क्रिकेट के सामने प्रस्तुत किया गया। परंतु इस मुलाकात से पहले उन्होंने अपने आप को आजाद का नाम लिया और अपने पिता को स्वतंत्रता का नाम दिया और अपना घर बताया जेल।
चंद्रशेखर के पिता सीताराम तिवारी ने 3 विवाह किये थे। उनकी तीसरी पत्नी जागरणी देवी थी जिनका पहला पुत्र सुखदेव था।
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हिंदुस्तान रिपब्लिकन संगठन व क्रांतिकारी जीवन
1922 में असहयोग आंदोलन को महात्मा गांधी के द्वारा समाप्त कर दिया गया। इस निर्णय से चंद्रशेखर आजाद निराश हुए। इस आंदोलन की समाप्ति के बाद वे राम प्रसाद बिस्मिल नामक एक व्यक्ति से मिले। रामप्रसाद ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन संगठन की स्थापना की थी और आजाद इस संगठन से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए।
उन्होंने इस संगठन को सफल बनाने के लिए फंडस एकत्रित करना शुरू किए और वे एक प्रमुख सदस्य बन गए। संगठन के लिए अधिकांश पैसे सरकारी संपत्ति की चोरी, ट्रेन की लूटपाट इत्यादि से आती थे।
सरकारी संपति चुराने के कारण आजाद व उनके संगठन के लोग ब्रिटिश सरकार के उच्चतम शत्रु बन चुके थे।
आजाद की क्रांतिकारी गतिविधियां (Azad’s Revolutionary Activities)
आजाद ने झांसी से 15 किलोमीटर दूर अपने अभ्यास के लिए एक उपयुक्त स्थान चुना। इस स्थान पर उन्होंने गांव के आसपास के लोगों को बच्चों को भी बंदूक चलाने से सिखाई। अपने व अपने दल के सदस्यों के रहने के लिए हनुमान मंदिर के पास बेटवा नदी के किनारे एक झोपड़ी का निर्माण किया। आजाद ने अपने आसपास के गांव के लोगों के साथ काफी अच्छे संबंध बना लिए।
इसी दौरान उन्होंने बुंदेलखंड मोटर गैरेज के यहां कार चलानी भी सीखी। कई सारे प्रसिद्ध व्यक्ति व कांग्रेस के नेता उनके दोस्त बन चुके थे। उनका मुख्य समर्थक बुंदेलखंड केसरी दीवान शत्रुघ्न सिंह थे। शत्रुघ्न ने बुंदेलखंड में स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत की थी। उन्होंने आजाद को वित्तीय सुरक्षा के साथ-साथ हथियार व लड़ाकू सैनिक भी दिये।
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन की स्थापना
हिंदुस्तान रिपब्लिकन संगठन के लोग तथा क्रांतिकारी नेताओं ने 1925 में काकोरी ट्रेन में लूटपाट की। ब्रिटिश सरकार ने इस संगठन के मुख्य लोगों व क्रांतिकारियों को पकड़ने का आदेश दिया। कई क्रांतिकारियों को मृत्यु दंड देने का निर्णय लिया गया। चंद्रशेखर आजाद, केशव चक्रवर्ती तथा मुरारी लाल गुप्ता सरकार के हाथों से बच निकले। आजाद ने फिर एक बार हिंदुस्तान रिपब्लिकन संगठन की पुनर्स्थापना की।
1928 में आजाद ने भगत सिंह तथा कई अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर हिंदुस्तान रिपब्लिकन संगठन का नाम परिवर्तित करके हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन रखा व उसकी पुनर्स्थापना की। इस संगठन में सुखदेव, राजगुरु व अन्य क्रांतिकारी भी सम्मिलित थे।
इन चारों क्रांतिकारियों ने मिलकर लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए जॉन सांडर्स की हत्या करने के लिए योजना बनाई। ब्रिटिश सरकार ने जॉन सांडर्स की हत्या के अपराध में सुखदेव, राजगुरु व भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी।
मन्मथ नाथ गुप्ता इस संगठन में एक सदस्य थे जो संगठन की आंतरिक गतिविधियों की घटनाओं का वर्णन लिखा करते थे उन्होंने आजाद की जीवनी भी लिखी।
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चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु (Death of Chandra Shekhar Azad)
27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद पुलिस के एक अधिकारी नोट्ट बोवर को किसी ने यह सूचना दी कि चंद्रशेखर आजाद वहां के पार्क में है और अपने साथी सुखदेव राज के साथ बातचीत कर रहे हैं। बोवर ने पुलिस फोर्स के साथ आजाद को बंदी बनाने के लिए पार्क को चारों तरफ से घेर लिया।
डीएसपी ठाकुर विश्वेश्वर सिंह के साथ कई हवलदारों ने राफेल के साथ पार्क में प्रवेश किया और गोली चलानी शुरू कर दी। सुखदेव राज वहां से बिना कोई चोट के बच कर निकल गए। परंतु, आजाद पेड़ के पीछे छुप गए और वहीं से पुलिस पर गोली चलाने शुरू कर दी।
पार्क में काफी लंबे समय तक गोलीबारी चलने के बाद, आजाद ने अपने आप को स्वतंत्र रखने के लिए अपनी ही बंदूक से गोली मार ली। आजाद ने कभी भी जिंदा ने पकड़े जाने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा किया। इस तरह, 23 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के पार्क में चंद्रशेखर आजाद ने आजाद (स्वतंत्र) रहने के लिए गोली मारकर अपनी आत्महत्या कर ली।
आजाद के मृत शरीर को रसूलाबाद घाट पर अंतिम संस्कार करने के लिए ले जाया गया। उनकी शहीदी की सूचना आम जनता को नहीं दी गई। जब इस घटना का पता आम जनता को चला तो जनता ने उस पार्क को चारों तरफ से घेर लिया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह के नारे लगाए और आजाद की जय जय कार की।
आजाद के पुराने दोस्त वीरभद्र तिवारी तथा यशपाल को पुलिस अधिकारियों को आजाद की सूचना देने का दोषी ठहराया गया।
FAQs
चंद्रशेखर आजाद (जन्म: 23 जुलाई 1996 – मृत्यु: 27 फरवरी 1931) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक क्रांतिकारी नेता थे जिन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिकन संगठन की स्थापना की।
उनका वास्तविक नाम चंद्रशेखर तिवारी था। उनके पिता का नाम सीताराम तिवारी तथा माता का नाम जागरणी देवी था। उनके दादे-परदादे उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गांव से थे।
आजाद की माता जागरण देवी ने अपने पुत्र को संस्कृत का बहुत बड़ा त्रानी बनना चाहती थी और उन्होंने उसे बनारस के काशी विद्यापीठ में पढ़ाने के लिए भी भिजवाया।
1921 में चंद्रशेखर 15 साल के एक विद्यार्थी थे। उस समय चल रहे असहयोग आंदोलन में उन्होंने भाग लिया। असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
चंद्रशेखर आजाद पार्क में काफी लंबे समय तक गोलीबारी चलने के बाद, आजाद ने अपने आप को स्वतंत्र रखने के लिए अपनी ही बंदूक से गोली मार ली। आजाद ने कभी भी जिंदा ने पकड़े जाने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा किया। इस तरह, 23 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के पार्क में चंद्रशेखर आजाद ने आजाद (स्वतंत्र) रहने के लिए गोली मारकर अपनी आत्महत्या कर ली।
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