भास्कराचार्य (अंग्रेजीः Bhaskaracharya) एक भारतीय गणितज्ञ तथा खगोलविद् थे। उन्होंने गणित के कई सारे महान सिद्धांतों की खोज की। वे मध्यकालीन भारत के सबसे बड़े गणितज्ञ थे। उन्होंने खगोल विज्ञान में भी कई सिद्धांतों का प्रतिपादन किया।
भास्कर के परिवार के लोग भी पढ़े लिखे तथा बुद्धिमान थे। ऐसे पारिवारिक माहौल से उन्हें अध्ययन में काफी सहायता मिली। उनके पिता भी एक गणितज्ञ तथा ज्योतिषी थे।
भास्कराचार्य का परिचय (Introduction to Bhaskaracharya)
नाम | भास्कर द्वितीय |
प्रचलित नाम | भास्कराचार्य |
जन्म | 1114 ईस्वी, बिज्जरगी, कर्नाटक (भारत) |
पिता | महेश्वर (महेश्वर उपाध्याय) |
पत्नी | अज्ञात |
पुत्र | लोकसमुद्र |
पुत्री | लीलावती (संभवतया) |
प्रसिद्धि का कारण | महान खगोल वैज्ञानिक और गणितज्ञ |
खोज-क्षेत्र | बीजगणित, अंकगणित, ग्रहगणित, खगोल विज्ञान, ज्यामिति, संख्यिकी, त्रिकोणमिति |
मृत्यु | 1185 ईस्वी, उज्जैन (भारत) |
भास्कराचार्य का जन्म 1114 ईस्वी को बिज्जरगी, कर्नाटक के देशष्ठ ऋग्वेदी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता महेश्वर (महेश्वर उपाध्याय) एक गणितज्ञ, खगोल विज्ञानी तथा ज्योतिषी थे जिन्होंने उसे गणित सिखाई थी।
बचपन से भास्कर को गणित व खगोल विज्ञान में बहुत रुचि थी। शुरुआती शिक्षा ग्रहण करने के बाद वह इसी कार्य में अग्रसर रहे। बाद में, वह उज्जैन की खगोल विज्ञान जंतर-मंतर का मुख्य अध्यक्ष भी बने। यह जंतर-मंतर उस समय की सबसे बड़ी जंतर मंतर थी।
भास्कर सह्याद्री क्षेत्र (वर्तमान जलगांव जिला, महाराष्ट्र ) में रहा करते थे। पिता से ग्रहण की हुई शिक्षा उन्होंने अपने बेटे लोक समुद्र को भी सिखाई तथा उसे गणित व खगोल विज्ञान के बारे में बताया। लोक समुद्र के बेटे ने 1207 में एक स्कूल का निर्माण करवाया जहां पर उसके दादा भास्कर के सिद्धांतों को सिखाया जाता था।
भास्कर जब 36 वर्ष के थे तब उन्होंने सिद्धांत शिरोमणि की रचना की थी। इस सिद्धांत शिरोमणि में उन्होंने गणित की बहुत सारी शाखाओं का आधारभूत ज्ञान व सूत्रों का प्रतिपादन किया है। जब वह 69 वर्ष के थे उन्होंने करण कुतूहल की रचना की थी।
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सिद्धांत शिरोमणि – भास्कराचार्य की रचना (Bhaskaracharya’s Creation – Siddhanta Shiromani)
सिद्धांत शिरोमणि के मुख्यतः चार भाग हैं। ये सभी भाग गणित की ही शाखाएं हैं।
- लीलावती (अंकगणित)
- बीजगणित
- ग्रह गणित
- गोलाध्याय
लीलावती (अंकगणित)
भास्कर ने संभवतः अपनी पुत्री लीलावती के नाम पर ही गणित की इस पुस्तक का नाम लीलावती रखा था जिसमें उन्होंने गणित की शाखा अंकगणित को समझाया है।
मुख्यतः इसमें परिभाषाएं, अंक गणितीय सूत्र, ब्याज गणना, ज्यामिति आरोहण, तलीय ज्यामिति, ठोस ज्यामिति, अनिश्चित समीकरणों के हल निकालना, व कई तरह के सिद्धांत इत्यादि को सम्मिलित किया गया है।
लीलावती में 13 अध्याय हैं जो कि अंकगणित, ज्यामिति, बीजगणित तथा कुछ त्रिकोणमिति को भी उल्लेखित करते हैं। इसमें निम्न विषयों को समझाया गया है-
- शून्य के गुणधर्म
- पाई का मान
- ऋणात्मक संख्याओं के गुणधर्म
- गुणा व वर्ग
- ब्याज व ब्याज गणना
- अनिश्चित समीकरणों का हल
इस पुस्तक में समस्याएं भी दी गई है ताकि विद्यार्थी खुद उन्हें हल करें और सिद्धांत को गहराई से समझें। जिससे पता चलता है कि भास्कर (Bhaskaracharya) प्रायोगिक शिक्षा को एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानते थे।
बीजगणित
सिद्धांत शिरोमणि का दूसरा भाग बीजगणित है। इसमें भास्कर ने अनिश्चित गणितीय समीकरणों को हल किया तथा शून्य, धनात्मक संख्याएं, ऋणात्मक संख्याएं इत्यादि का भी वर्णन किया।
बीजगणित में 12 अध्याय हैं जिनमें भास्कर ने संख्याओं व समीकरणों के अज्ञात चरों को निकालने के समाधान बताएं हैं। यह निम्न विषयों को सम्मिलित करती है – धनात्मक व ऋणात्मक संख्याएं, बीजिय समीकरणें, साधारण समीकरणें (जिनमें 1 से ज्यादा चर हो), चतुर्थांश समीकरणे इत्यादि।
उन्होंने (Bhaskaracharya) अनिश्चित समीकरणों के हल निकालने के लिए “चक्रवाला सिद्धांत” का प्रतिपादन किया।
ग्रहगणित
ग्रहगणित सिद्धांत शिरोमणि का तीसरा भाग है जिसमें भास्कर ने ग्रहों की गति से जुड़े कई तथ्य व व्याख्यान दिए हैं। भास्कर इस परिणाम पर पहुंचे कि ग्रहों की त्वरित गति शून्य होती है।
त्रिकोणमिति के सूत्रों के माध्यम से उन्होंने इस बात को सिद्ध भी किया, जिससे पता चलता है कि उन्हें न्यूटन से पहले त्रिकोणमिति व डिफरेंशियल समीकरणों का भी बोध था।
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भास्कराचार्य की अन्य रचनाएं (Other Creations by Bhaskaracharya)
त्रिकोणमिति
त्रिकोणमिति में भास्कराचार्य की अपने पूर्वजों की तुलना में ज्यादा रुचि थी। उससे पहले के विद्वानों ने त्रिकोणमिति को एक गणना का मात्र साधन समझा था।
पंरतु भास्कर ने कोण व दूरी निकालने के लिए त्रिकोणमिति का प्रयोग किया। उन्होंने त्रिकोणमिति फलनों की सारणी बनाकर उनमें संबंध भी स्थापित किए।
इसके अलावा उन्होंने गोलिय त्रिकोणमिति की भी रचना की।
कलन
भास्कर ने कलन में भी अपना योगदान दिया। उन्होंने डिफरेंसियल कलन के जड़ में जाकर पाया कि डिफरेंशियल नियताक फलन की उच्चतम वैल्यू पर खत्म हो जाता है। उन्होंने कई ग्रहों की पृथ्वी के साथ पास आने व दूर जाने की भी गणना की।
खगोल विज्ञान
भास्कर ने सातवीं शताब्दी के ब्रह्मगुप्त के खगोल विज्ञान मॉडल को प्रयोग में लेते हुए, सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के एक चक्कर लगाने में लगे समय की गणना की। जिसके अनुसार पृथ्वी को एक चक्कर लगाने में 365.2588 दिन लगते हैं।
वर्तमान वैज्ञानिकों के अनुसार यह समय 365.2563 दिन है। जिससे पता चलता है कि उनकी गणना में सिर्फ 3.5 मिनट का ही अंतर है। जो यह दर्शाता है कि भास्कराचार्य (Bhaskaracharya) की गणित का ज्ञान बहुत जबरदस्त था।
खगोल विज्ञान में भास्कर ने सूर्य उदय समीकरण, चंद्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण, चंद्र वर्धमान, ग्रहों का तारों के साथ संयोजन, ग्रहों का ग्रहों के साथ संयोजन, सूर्य तथा चंद्रमा के पथ इत्यादि की भी गणना की।
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भास्कराचार्य की मृत्यु (Death of Bhaskaracharya)
भास्कराचार्य की मृत्यु 71 वर्ष की उम्र में 1185 को उज्जैन में हुई थी। वह उज्जैन की जंतर-मंतर के मुख्य अध्यक्ष थे जहां पर खगोल विज्ञान से जुड़ी हुई जानकारियां तथा सिद्धांतों का प्रतिपादन व मूल्यांकन किया जाता था।
उनके पोते ने एक विद्यालय की स्थापना की जिसमें उनकी पुस्तकों को पढ़ाना शुरू किया।
वर्तमान आधुनिक युग में भी भास्कराचार्य के नाम पर कई कॉलेज व शिक्षण संस्थाओं का नाम रखा गया है जैसे कि भास्कराचार्य कॉलेज आफ अप्लाइड साइंस (दिल्ली विश्वविद्यालय), भास्कराचार्य इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस एप्लीकेशन एंड जिओइंफॉर्मेशन (गांधीनगर), तथा भास्कराचार्य प्रतिष्ठान (पुणे)।
भारतीय स्पेस इंस्टीट्यूट इसरो ने 1981 को भास्कर द्वितीय के सम्मान व प्रतिष्ठा के लिए “भास्कर द्वितीय” नाम की एक सेटेलाइट लांच की।
FAQs
भास्कराचार्य एक महान भारतीय खगोल विज्ञानी तथा गणितज्ञ थे जिन्होंने गणित की कई सारी शाखाओं जैसे बीजगणित, अंकगणित, ज्यामिति, त्रिकोणमिति, ग्रहगणित, सांख्यिकी इत्यादि में अपना योगदान दिया। उनका जन्म 1114 ईस्वी को कर्नाटक के एक छोटे से गांव में हुआ था। बचपन से वह बहुत प्रतिभाशाली छात्र रहे थे तथा उन्होंने अपने पिता से गणित सीखी।
भास्कराचार्य का जन्म 1114 ईस्वी को कर्नाटक के बिज्जरगी में हुआ था।
भास्कराचार्य ने ही सिद्धांत शिरोमणि की रचना की थी जिसमें उन्होंने गणित की कई शाखाओं के आधारभूत ज्ञान व सूत्रों का वर्णन किया है।
भास्कराचार्य ने सिद्धांत शिरोमणि की रचना की थी जिसके मुख्यतः तीन भाग हैं – लीलावती (अंकगणित), बीजगणित, ग्रहगणित। इसके अलावा उन्होंने खगोल विज्ञान, ज्यामिति तथा त्रिकोणमिति में भी अपना बहुत योगदान दिया।
71 साल की उम्र में 1185 को उज्जैन में भास्कराचार्य की मृत्यु हुई थी। वे एक बहु प्रतिभाशाली वैज्ञानिक व गणितज्ञ थे जिन्होंने खगोल विज्ञान व गणित में बहुत सारे सिद्धांतों व सूत्रों का प्रतिपादन किया।
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