जमनालाल बजाज (अंग्रेजी: Jamnalal Bajaj, जन्म: 4 नवम्बर 1889, मृत्यु: 11 फरवरी 1942) एक भारतीय उद्योगपति, एक परोपकारी और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। वह महात्मा गांधी के अनुयायी थे और उनके बहुत नजदीकी व्यक्ति थे। गांधीजी उन्हें अपना 5 वाँ बेटा मानते थे। 1920 में बजाज कांग्रेस के कोषाध्यक्ष बने थे और जीवन पर्यंन्त वह इस पद पर बने रहे। वर्धा में उन्होंने ’सत्याग्रह’ की स्थापना की।
जमनालाल बजाज ने ’गो सेवा संघ’, ’सस्ता साहित्य मण्डल’ और ’गांधी सेवा संघ’ आदि संस्थाओं की स्थापना की। उन्होंने मारवाड़ी शिक्षा मंडल, गौ सेवा, ग्रामोद्योग, महिला एवं हरिजन सेवा, गाँधी सेवा संघ, देशी राज्य, राष्ट्रभाषा, सत्याग्रह आश्रम और ग्राम सेवा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किया। बजाज जातिगत भेदभाव के विरोधी थे तथा उन्होंने हरिजनों के उत्थान के लिए प्रयास किये थे।
उन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी को अपनाया तथा आजीवन खादी पहनने का प्राण लिया। देश के राष्ट्रीय आन्दोलन में भी उनका बहुमूल्य योगदान है। गांधीजी बजाज को प्यार से ’शादी काका’ के नाम से पुकारते थे। 1926 में उन्होंने ’बजाज उद्योग ग्रुप’ की स्थापना की।
जमनालाल बजाज का परिचय (Introduction to Jamnalal Bajaj)
नाम | जमनालाल बजाज (Jamnalal Bajaj) |
प्रसिद्ध नाम | महात्मा गांधी जी का पांचवा बेटा |
जन्म | 4 नवंबर 1889, काशी का वास, सीकर (राजस्थान) |
पिता | कनीराम |
माता | बिरधीबाई |
पत्नी | जानकी देवी बजाज |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि का कारण | स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उद्योगपति, दानवीर |
मृत्यु | 11 फरवरी 1942, वर्धा (महाराष्ट्र) |
उपाधि | रायबहादुर |
जमनालाल बजाज का जन्म 4 नवम्बर, 1889 को काशी का वास, जयपुर (राजस्थान) में हुआ। इनके पिता कनीराम तथा माता बिरदीबाई थे। इनके पिता गरीब किसान थे। जब ये 5 साल के थे, तभी इन्हें वर्धा के एक बड़े सेठ ’बच्छराज’ ने गोद ले लिया था। इनका परिवार वर्धा में जाकर बसा। उन्होंने चौथीं कक्षा तक ही विधिवत शिक्षा प्राप्त की थी।
जब जमनालाल बजाज दस साल के थे, तभी उनकी सगाई जावरा के एक अच्छे व्यापारी की बेटी ’जानकी’ देवी से हो गयी। फिर जब वे 13 वर्ष के हुए, तो उनका विवाह ’जानकी’ के साथ वर्धा में बड़े ही धूमधाम से हुआ। बजाज ने स्वदेशी एवं खादी को ही ग्रहण किया था तथा अपनी पसंदीदा विदेशी वस्तुओं को भी उन्होंने त्याग दिया था।
उन्होंने अपने बच्चों का दाखिला किसी फैशनेबल पब्लिक विद्यालय में ना कराकर विनोबा के सत्याग्रह आश्रम में उनको भेज दिया। क्योंकि वे चाहते थे कि उनके बच्चे को कोई भी सुख-सुविधा या सम्मान उनके स्वयं की योग्यता के आधार पर ही मिले, उनके पुत्र होने के आधार पर नहीं।
उन्होंने 17 साल की उम्र में वर्धा में अपने दत्तक माता-पिता के पारिवारिक व्यवसाय को संभाला और कई कारखानों और कंपनियों की स्थापना की, जो आगे चलकर ’बजाज समूह’ कहलाया।
जमनालाल बजाज का करियर (Career of Jamnalal Bajaj)
जमनालाल बजाज ने अपने लिए देश के पशुधन की सुरक्षा का कार्य चुना तथा उसका प्रतीक गाय को माना। उनका सबसे बड़ा काम तथा प्रथम उद्देश्य ’गौ-सेवा’ था, उन्होंने देश के पशुधन की रक्षा करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे अपने कार्यकर्ताओं की आर्थिक मदद करते थे।
साथ ही उनके बच्चों के लिए चिकित्सा एवं शिक्षा आदि की व्यवस्था भी करते थे। वे उन लोगों के बच्चों को प्रत्येक सुविधाएँ उपलब्ध करवाते थे और उनकी शादी का पूरा खर्च भी स्वयं देते थे। इसी वजह से गाँधी जी जमनालाल बजाज को प्यार से ’शादी काका’ बुलाते थे।
इन्होंने हरिजनों के उद्धार के लिए कार्य किया। बजाज देश के पहले नेता थे, जिन्होंने 1928 में वर्धा में स्थित अपने पूर्वजों के ’लक्ष्मीनारायण मंदिर’ के द्वार अछूतों एवं दलितों के लिए खोल दिये थे तथा उनके प्रवेश को मान्यता दे दी थी। सीकर में हरिजन विद्यालय खोला तथा हरिज सेवक रखकर एक आदर्श पेश किया।
जमनालाल बजाज का कार्य (Works of Jamnalal Bajaj)
बालगंगाधर तिलक का निधन होने के बाद 1921 में उनके नाम पर ’ऑल इंडिया तिलक मेमोरियल फंड’ बना था। इसमें उस समय जमनालाल बजाज ने 1 करोड़ रुपए की बड़ी पूंजी दान की। इनकी इस राशि का प्रयोग देश में खादी की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए किया गया। उन्होंने दाप में लभभग 25 लाख रुपये दान किए ।
उन्होने लगभग दो दशकों तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए एक नियमित ’फाइनेंसर’ और बैंकर के रूप में काम किया और व्यवसाय में मुनाफे की ट्रस्टीशिप की अवधारणा पेश की।
बजाज ने खादी के उत्पादन और उसकी बिक्री बढ़ाने के लिए देश के कई भागों में दौरा किया, ताकि बेरोजगारों को भी लाभ मिल सके। उन्होंने 1927 में बलवंत सांवलाराम देशपांडे के साथ मिलकर अमरसर (जयपुर) में ’चरखा संघ’ की स्थापना की।
अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ की स्थापना
1935 में बजाज ने ’अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ’ की स्थापना की तथा इसे संघ के लिए अपना प्रिय बड़ा बगीचा दे दिया था, जिसका नाम गांधी जी ने ’मगनवाड़ी’ रखा था। उन्होंने वर्धा में देश के पश्चिम और पूर्व के प्रांतों में हिंदी के प्रचार के लिए ’राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’ की स्थापना की तथा उसके लिए धन एकत्रित किया। जब इनको ’हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ मद्रास के अध्यक्ष भी चुना गया, तब इन्होंने इस पद पर रहते हुए राष्ट्रभाषा आंदोलन को व्यवस्थित किया।
1933 में उनको कांग्रेस कार्य समिति के लिए चुना गया और उसके बाद कांग्रेस के कोषाध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया गया।
सी राजगोपालचारी के साथ उन्होंने पूरे देश में हिंदी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा का गठन किया।
इन्होंने 1927 में जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली की प्रबंध समिति के पहले कोषाध्यक्ष थे। कोषाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए भी वे 1928 में विश्विद्यालय के आजीवन सदस्य बने।
1920 ई. में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में वे स्वागत समिति के अध्यक्ष बनाए गए और यहीं से वे गांधीजी के पाँचवें पुत्र के रूप में जाने गये।
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जयपुर प्रजामंडल की स्थापना (Establishment of Jaipur Praja Mandal)
असहयोग आंदोलन के दौरान जमनालाल बजाज ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ विरोधपूर्ण भाषण दिया एवं सत्याग्रहियों का नेतृत्व किया। इसी कारण 18 जून, 1921 को उन्हें तथा विनोबा भाव को गिरफ्तार कर लिया गया। विनोबा को तो महीने की ही सजा मिली थी, परंतु जमनालाल को डेढ़ साल का सश्रम कारावास बीताना पड़ा था तथा 3000 रु. का जुर्माना भी चुकाना पड़ा।
जमनालाल बजाज के प्रयासों से ही 1931 में जयपुर में ’जयपुर प्रजा मंडल’ की स्थापना हुई। 1936 में यह मंडल संक्रिय रूप से कार्य करने लगा। 30 मार्च, 1938 को अकस्मात जयपुर राज्य ने आदेश निकाला कि सरकार की अनुमति के बगैर जयपुर राज्य में किसी भी सार्वजनिक संस्था की स्थापना नहीं की जायेगी। इस आदेश का मुख्य उद्देश्य प्रजामंडल के कार्यों तथा गतिविधियों का अंत करना था।
8 मई और 9 मई को जयपुर मंडल का वार्षिक अधिवेशन पहले ही जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में घोषित हो चुका था। बजाज की बढ़ती लोकप्रियता से जयपुर के एक अंग्रेज दिवान बीकैम्प सेंटजान को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। 4 जुलाई 1938 को यह मामला और भी तीव्र हो गया था।
30 दिसम्बर 1938 को जयपुर राज्य में फैले हुए अकाल का लेखा-जोखा करने और उन्हें राहत दिलवाने के लिए वह सवाई माधोपुर स्टेशन पर गाड़ी का इंतजार कर रहे थे। उसी समय पुलिस अधिकारी एफ एस यंग ने आदेश दिया कि, रियासत में बजाज के प्रवेश और गतिविधियों से शांति भंग होगी, इसलिए उन्हें प्रवेश न दिया जाये।
इससे प्रजामंडल भी जाग्रत हो गया और उनके नेतृत्व में ’सत्याग्रह’ किया गया। परन्तु अंत में जयपुर रियासत ने अपनी गलती स्वीकार कर ली और अपना आदेश वापस ले लिया। जमनालाल बजाज रियासत की प्रजा के संरक्षक थे तथा उन्होंने अपना यह फर्ज अपने जीवन के अंतिम समय तक निभाया।
सच्चे गुरु की खोज
जमनालाल बजाज का आध्यात्मिकता की ओर झुकाव हो गया था, तब उन्होंने किसी सच्चे कर्मयोगी गुरु की खोज शुरू की। कर्मयोगी गुरु खोज में उनकी सर्वप्रथम ’मदन मोहन मालवीय’ से मुलाकात हुई। रवींद्रनाथ टैगोर के साथ उन्होंने कुछ समय बिताया। वह कई गुरु एवं साधुओं से मिले थे परंतु उन्हें अपने सच्चे और मन को शांति प्रदान करने वाले गुरु नहीं मिले।
जब गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह किया, तब उनकी चर्चा सुनकर बजाज गांधीजी से प्रभावित हुए। 1915 में गांधीजी भारत वापस आये और उन्होंने साबरमती आश्रम की स्थापना कर वहां रहने लग गये। उस समय बजाज भी गांधी के साथ कुछ समय तक वहां रहे और गांधी के व्यक्तित्व तथा कार्यप्रणाली को समझते थे। जमनालाल ने गांधी जी को ही अपना गुरु बना लिया और उन्हें अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया।
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में योगदान (Contribution to the Indian National Movement)
ज्मनालाल बजाज महान स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया तथा अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। महात्मा गांधी जब दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आये, तब वे उनसे बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने गांधी जी को वर्धा में स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र बनाने की राय दी तथा इसके लिए उन्हें 20 एकड़ जमीन दान दी। महात्मा गांधी के प्रभावस्वरूप ही उन्होंने अपनी ’रायबहादुर’ की उपाधि त्याग दी और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए।
उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी लड़ाई में वर्धा में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की और उन्होंने असहयोग आन्दोलन (1920-22), नागपुर झंडा सत्याग्रह (1923), साइमन कमीशन का बहिष्कार (1928), दांडी यात्रा (1930) और अन्य कई आन्दोलनों में भाग लिया। दांडी मार्च में गांधीजी की गिरफ्तारी के बाद उनको भी दो वर्ष के लिए नासिक सेन्ट्रल जेल में रहना पड़ा।
समाज सुधारक – जमनालाल बजाज (Social Reformer of Jamnalal Bajaj)
जमनालाल बजाज ने अपने परिवार से ही सामाजिक सुधारों की शुरुआत की थी। वे स्वदेशी के प्रबल समर्थक थे। असहयोग आन्दोलन दौरान जब विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार हुआ तो उन्होंने सबसे पहले अपने घर के कीमती और रेशमी वस़्त्रों की होली जला दी। उनकी पत्नी ने भी सोने और चांदी से जड़े हुए अपने वस्त्रों को त्याग दिया और उन दोनों ने ही आजीवन खादी पहनने का व्रत ले लिया।
उन्होंने अपने जीवन में कई सामाजिक सुधार किए, उनमे से जमनालाल फाउंडेशन ने जाति व्यवस्था, बाल शिक्षा के समर्थन और अंतर-जातीय विवाह आदि थे। गांधी द्वारा अस्पृश्यता को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने से पहले ही उन्होंने क्षेत्र में दलितों के लिए अपने परिवार के मंदिर के द्वार भी खोल दिए थे।
उन्होंने गांधी सेवा संघ के संस्थापक-अध्यक्ष के रूप में भारत भर में खादी उद्योगों की स्थापना का आग्रह करते हुए खादी यात्राएं की।
उपाधि
जमनालाल बजाज को 1918 में सरकार ने ’राय बहादुर’ की उपाधि से अलंकृत किया।
त्याग तथा दान
बजाज पर गांधी के कार्यों का गहरा प्रभाव पड़ा था। इसी कारण कांग्रेेस के कलकत्ता अधिवेशन (1920) में असहयोग प्रस्ताव के दौरान उन्होंने अपनी ’राय बहादुर’ की उपाधि वापस लौटा दी। बन्दूक और रिवॉल्वर जमा कराते हुए अपना लाइसेंस भी वापस कर दिया।
अपने सारे मुकदमे वापस ले लिए और अदालतों का बहिष्कार किया। देश की आजादी के संघर्ष में जिन वकीलों ने अपनी वकालत छोड़ दी थी उनके निर्वाह के लिए 100000 रु. का उन्होंने कांग्रेस को दान दिया।
जमनालाल बजाज की मृत्यु (Death of Jamnalal Bajaj)
1941 के व्यक्गित सत्याग्रह में जेल से छूटने के बाद जमनालाल बजाज महात्मा गाँधी के कहने पर ’आनंदमयी मां’ से मुलाकात करने तथा अपनी आध्यात्मिक महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट करने का उपाय जानने के लिए देहरादून गये। देहरादून से वर्धा लौटने के बाद 11 फरवरी, 1942 को मस्तिष्क की नस फट जाने के कारण अकस्मात ही जमनालाल बजाज का निधन हो गया।
आज भी जमनालाल बजाज द्वारा स्थापित ’बजाज ग्रुप’ भारत के सबसे बड़े समूहों में से एक के रूप में खड़ा है। सामाजिक कार्यों में अपना योगदान देने वाले लोगों को ’जमनालाल बजाज पुरस्कार’ से सम्मानित किया जाता है।
’जमनालाल बजाज पुरस्कार’ की स्थापना 1978 में की गयी थी तथा यह पुरस्कार प्रतिवर्ष चार श्रेणियों में प्रदान किया जाता है। यह एक भारतीय पुरस्कार है जो सामाजिक विकास, गांधीवादी विचारों के उन्नयन और सामुदायिक सेवा के लिए दिया जाता है।
FAQs
जमनालाल बजाज एक भारतीय उद्योगपति, एक परोपकारी और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे।
जमनालाल बजाज का जन्म 4 नवम्बर, 1889 को ’काशी का वास’, जयपुर (राजस्थान) में हुआ। इनके पिता कनीराम तथा माता बिरदीबाई थे। इनके पिता गरीब किसान थे। जब ये 5 साल के थे, तभी इन्हें वर्धा के एक बड़े सेठ ’बच्छराज’ ने गोद ले लिया था।
जमनालाल बजाज को 5 वर्ष की आयु में ही एक बड़े सेठ व्यापारी ’बच्छराज’ ने गोद लिया था।
जमनालाल बजाज पुरस्कार की स्थापना 1978 में की गयी थी तथा यह पुरस्कार प्रतिवर्ष चार श्रेणियों में प्रदान किया जाता है। यह एक भारतीय पुरस्कार है जो सामाजिक विकास, गांधीवादी विचारों के उन्नयन और सामुदायिक सेवा के लिए दिया जाता है।
जमनालाल बजाज को 1918 में सरकार ने ’राय बहादुर’ की उपाधि से सम्मानित किया।
जमनालाल बजाज ने 1927 में बलवंत सांवलाराम देशपांडे के साथ मिलकर अमरसर (जयपुर) में ’चरखा संघ’ की स्थापना की।
जयपुर प्रजामंडल की स्थापना जमनालाल बजाज ने की।
जमनालाल बजाज 1938 में जयपुर प्रजामंडल के अध्यक्ष बने।
महात्मा गांधी के पाँचवें पुत्र जमनालाल बजाज थे।