ब्रह्म में अवस्थित प्रसन्न चित्त व्यक्ति न तो शौक करते हैं और ना ही आकांक्षा करते हैं। वे सभी भूतों में समदर्शी होकर प्रेमलक्षण युक्त मेरी भक्ति प्राप्त करते हैं।
वर्ण, आश्रम आदि समस्त शारीरिक और मानसिक धर्मों का परित्याग कर एकमात्र मेरी शरण ग्रहण करो। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा, तुम शौक मत करो।
श्यामसुंदराकार मुझमें ही मन को स्थिर करो, मुझ में बुद्धि को अर्पित करो, इस प्रकार से देह के अंत होने पर मेरे समीप ही वास करोगे – इसमें कोई संदेह नहीं है।
यदि तुम मुझ में चित्त को स्थिर भाव से स्थापित नहीं कर सकते हो तो अभ्यास योग द्वारा मुझे पाने की इच्छा करो।
जिनसे कोई उद्वेग को प्राप्त नहीं होते हैं तथा जो किसी से उद्वेग प्राप्त नहीं करते हैं एवं जो प्राकृत हर्ष, असहिष्णुता, भय और उद्वेग से मुक्त हैं, वे मेरे प्रिय हैं।