इंद्रियों को श्रेष्ठ कहा जाता है। मन इंद्रियों की अपेक्षा श्रेष्ठ हैं, किंतु बुद्धि मन से भी श्रेष्ठ हैं एवं जो बुद्धि से भी श्रेष्ठ है, वह आत्मा है।
हे अर्जुन! सृष्टि के आरंभ में समस्त जीव इच्छा और द्वेष से उत्पन्न सुख-दुःख आदि द्वंद्व विषयों से सम्यकरूपेण मोहित होते हैं।
जिन पुण्य कर्मकारी लोगों का पाप नष्ट हो गया है वे सुख-दुःख आदि मोह से मुक्त होकर अविचलित मन से मुझे भजते हैं।
जो अंतिम काल में भी मुझे ही समरण करते हुए अपने शरीर को त्यागकर प्रस्थान करते हैं, वे मेरे भाव को प्राप्त होते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है।
हे कोन्तेय! जो अंत काल में जिस जिस विषय की चिंता करते हुए शरीर त्याग करते हैं, सर्वदा उसी के चिंतन में तन्मय वे उसी भाव को प्राप्त होते हैं।