श्रीमद भगवत गीता के अनमोल वचन (Bhagavad Gita quotes in Hindi)
मेरा ही विभिन्न अंश सनातन जीव, इस जगत में, प्रकृति में स्थित होकर मन और पांच इंद्रियों को आकर्षित करता है।
हे कुरु नंदन! विवेक का अभाव, प्रयत्न हीनता, अन्यमनस्कता, मिथ्या अभिनिवेश आदि – ये सब तमोगुण की वृद्धि होने पर उत्पन्न होते हैं।
श्री भगवान ने कहा – यह संसार ऊपर की ओर जड़ वाला तथा नीचे की ओर शाखाओं वाला अश्वत्थ वृक्ष विशेष है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। कर्म का प्रतिपादन करने वाले भी वाक्य समूह जिसके पत्ते हैं जो उसे जानते हैं, वे वैदज्ञ हैं।
इस जगत में संसार वृक्ष का स्वरूप पूर्वोक्त प्रकार से नहीं उपलब्ध होता है। इसका आदि और अंत नहीं देखा जा सकता है तथा इसकी स्थिति भी समझ में नहीं आती है। अत्यंत दृढ़ मूल वाले इस संसार वृक्ष को तीव्र वैराग्यरूप कुठार से छेदन करने के पश्चात संसार के मूल उस श्रीमदभगवत पादपद्म का अन्वेषण करना कर्तव्य है।
जिस वस्तु को प्राप्त कर शरणागत व्यक्तियों का पुनरागमन नहीं होता है वह मेरा सर्वप्रकाशक तेज है, उसे सूर्य, चंद्र, अग्नि इत्यादि कोई प्रकाशित नहीं कर सकता है।
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