रामानुजन (अंग्रेजी: Ramanujan; जन्म: 22 दिसम्बर 1887, मृत्यु: 20 अप्रैल 1920) एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। श्रीनिवास रामानुजन स्कूल से ही गणित विषय में अत्यधिक रुचि रखते थे। गणित में इसी रुचि के कारण उन्होंने बहुत सारी समस्याओं का हल निकाला और नये सिद्धांतो का प्रतिपादन किया।
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गणितज्ञ रामानुजन का परिचय (Introduction to Ramanujan)
नाम | श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan) |
जन्म | 22 दिसम्बर 1887, ईरोड, तमिलनाडु |
माता | कोमलताम्मल |
पिता | कप्पूस्वामी श्रीनिवास अयंगर |
पत्नी | जानकी (10 वर्ष की उम्र में विवाह) |
खोज-क्षेत्र | गणित |
प्रसिद्धि का कारण | महान गणितज्ञ |
मृत्यु | 20 अप्रैल, 1920, कुंभकोणम, तमिलनाडु |
जीवनकाल | 32 वर्ष |

श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के ईरोड में हुआ था। उनके पिता कप्पूस्वामी श्रीनिवास अयंगर थे जो साड़ी की दुकान में क्लर्क का काम किया करते थे। उनकी माता कोमलताम्मल थी जो एक ग्रहणी थी। उनका परिवार कुंभकोणम टाउन में रहा करता था।
दिसंबर 1889 में रामानुजन को स्मालपॉक्स (चेचक) हो गया था परंतु वे कुछ समय बाद स्वस्थ हो गये। इसके बाद वह अपनी माता के साथ ननिहाल कांचिपुरम (मद्रास/चेन्नई) चले गये।
जब रामानुजन डेढ़ साल के थे तब उनके एक छोटे भाई का जन्म हुआ। परंतु, तीन महिने बाद उनके भाई का देहांत हो गया।
1891 और 1894 में उनकी माता ने दो और बच्चों को जन्म दिया। मात्र एक-एक साल के जीवनकाल के बाद उन दोनों बच्चों की भी मृत्यु हो गई।
बाल्यकाल में रामानुजन ने अपना अधिकांश समय अपनी माता के साथ बिताया। उनके पिता काम पर जाते थे जिसकी वजह से उनके पास परिवार के लिए समय कम होता था। श्रीनिवास ने अपनी माता से रीति-रिवाजों, पुराणों, ग्रंथो, धार्मिक भजनों का गान, इत्यादि सीखा।
रामानुजन की शिक्षा (Ramanujan’s Education)
रामानुजन को सर्वप्रथम कांचिपुरम के एक स्थानीय विद्यालय में प्रवेश दिलवाया गया। परंतु, उन्होंने मद्रास के विद्यालयों को पसंद नहीं किया और वहाँ के स्कूल में ना जाने के प्रयास किये।
11 वर्ष की आयु में उन्होंने कॉलेज के 2 विद्यार्थियों को गणित में पछाड़ दिया। इसके बाद उन्हें लोनी नामक एक गणित के प्रोफेसर के द्वारा लिखित एडवांस्ड त्रिकोणमिति की पुस्तक दी गई।
13 साल की उम्र में श्रीनिवास ने गणित विषय पर अपनी गहरी पकड़ बना ली। 14 साल की उम्र में उन्हें अनेकों पुरस्कार व प्रमाण पत्र मिले।
रामानुजन अपनी गणित की परीक्षाओं को निर्धारित समय से आधे समय पहले ही पूरा कर देते थे। 1902 में उन्हें त्रिघातीय समीकरणों का हल निकालना सिखाया गया। आगामी वर्षों में उन्होंने चतुर्घातीय समीकरण का हल निकालने के लिए अपना अलग मेथड बना डाला।
1903 में उन्होंने एक पुस्तक पढ़ी जिसकी वजह से उन्हें गणित की आधारभूत चीजें समझ आई। इस पुस्तक का नाम था – “A Synopsis of Elementary Results in Pure and Applied Mathematics.”
कॉलेज (College)
1904 में रामानुजन टाउन हायर सेकेंडरी स्कूल से ग्रेजुएट हो गए। उनकी उत्कृष्टता को देखकर विद्यालय के हेडमास्टर ने उन्हें पुरस्कृत भी किया। हेड मास्टर के अनुसार वे इतने बुद्धिमान थे कि अधिकतम अंको से भी अधिक अंक दिए जाने के वे योग्य थे।
आगे की पढ़ाई करने के लिए श्रीनिवास ने कुंभकोणम के गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज में प्रवेश लिया। वे गणित में बहुत बुद्धिमान बन चुके थे और अधिकांश समय में सिर्फ गणित ही पढ़ते रहते थे जिसकी वजह से अन्य विषय में फेल हो गए।
अगस्त 1950 में वह घर से दूर चले गए और महीने भर के लिए राजामुंदरी में रहे। वह मद्रास के पचैयप्पा कॉलेज में दाखिल हुए। वहां पर भी वह गणित में हमेशा अव्वल रहे, परंतु अन्य विषयों जैसे – अंग्रेजी, संस्कृत आदि में कठिनाईपूर्वक उत्तीर्ण कर पाये।
बिना डिग्री के ही उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया और गणित में अपनी व्यक्तिगत रिसर्च शुरू कर दी। उस समय में उनके पास कोई आय का साधन नहीं था जिसकी वजह से वह भयंकर गरीबी में भी अपने रिसर्च पर काम कर रहे थे।
व्यक्तिगत जीवन (Personal Life)
श्रीनिवास शर्मीले व शांत स्वभाव के व्यक्ति थे।
14 जुलाई 1909 को रामानुजन का विवाह जानकी नामक लड़की से हुआ था। विवाह के समय रामानुजन की उम्र लगभग 21 वर्ष थी जबकी जानकी की उम्र 10 वर्ष थी। यह शादी श्रीनिवास की माता ने तय की थी। विवाह के तीन वर्ष तक जानकी अपने मायके ही रही। 1912 में जानकी, उसकी सास व श्रीनिवास तीनों मद्रास में रहने लगे।
शादी के बाद रामानुजन को हाइड्रोसेल टटेस्टिस हो गया था। इसका इलाज कराने के लिए उनका परिवार खर्चा नहीं उठा सकता था। जनवरी 1910 में एक डॉक्टर ने बिना किसी पैसे के अपनी इच्छा से उनकी सर्जरी की।
ठीक होने के बाद रामानुजन जॉब ढूंढने के लिए गए। पैसे कमाने के लिए उन्होंने मद्रास में घर-घर जाकर क्लर्क की नौकरी ढूंढी। उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज में बच्चों को भी पढ़ाया।
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रामानुजन को सहायता (Help to Ramanujan)
1910 में रामानुजन भारतीय गणित सोसाइटी के संस्थापक रामास्वामी अय्यर से मिले। उन्होंने अय्यर को अपना गणित का कार्य दिखाया जिससे अय्यर बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने बहुत प्रशंसा भी की। अय्यर ने रामानुजन को अपने गणित के मित्रों के पास भेज दिया। उन लोगों ने श्रीनिवास के कार्य को देखकर प्रशंसा की।
जिन्होंने नेल्लोर के जिला कलेक्टर तथा भारतीय गणितज्ञ सोसायटी के सेक्रेटरी रामचंद्र राव के पास भेजा। राव भी रामानुजन के कार्य से प्रभावित हुए। परंतु, उन्होंने उनकी योग्यताओं पर संदेह किया। कुछ परीक्षणों के बाद उनका यह संदेह मिट गया।
राव ने श्रीनिवास को नौकरी तथा वित्तीय सहायता प्रदान की। श्रीनिवास वापस मद्रास आ गए और वहीं से ही राव के खर्चे पर अपनी रिसर्च को फिर से चालू किया।
ब्रिटिश गणितज्ञों से सम्बंध (Contact with British Mathematicians)
1913 में नारायण अय्यर रामचंद्र राव आदि लोगों ने रामानुजन के कार्य को ब्रिटिश के ब्रिटिश गणितज्ञ तक पहुंचाने का प्रयास किया। उन्होंने एमजेएम हिल, एचएफ बेकर, ईब्ल्यू होबसन को पत्र भेजा परंतु उन तीनों ने ही रामानुजन के कार्य को अस्वीकार कर दिया।
इसके बाद उन्होंने जी.एच. हार्डी नामक एक अन्य ब्रिटिश गणितज्ञ को पत्र लिखा और अपने पेपर्स भेजे। हार्डी ने रामानुजन के कार्य को देखा और बहुत ज्यादा प्रभावित हुए। उस तरह के सिद्धांतों का प्रतिपादन पहले कभी नहीं हुआ था। हार्डी ने रामानुजन के पेपर्स को अन्य साथी गणितज्ञ को भी दिखाया।
हार्डी ने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए एक पत्र लिखा. परंतु रामानुजन ने विदेशी भूमि पर जाने के लिए मना कर दिया।
यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास ने रामानुजन को 2 साल के लिए ₹75 प्रति महीने की छात्रवृत्ति प्रदान की। वहीं से ही, वह अपने गणित के कार्य व खोज पत्रों का प्रकाशन करने लगे।
हार्डी ने नेविले नामक एक प्रोफेसर के साथ तालमेल बनाया व रामानुजन को इंग्लैंड लाने के लिए कहा। अबकी बार कहने पर रामानुजन ने स्वीकृति दे दी और इंग्लैंड जाने के लिए तैयार हो गए। 17 मार्च 1914 को रामानुजन पानी की जहाज से इंग्लैंड पहुंचे।
ब्रिटेन में रामानुजन का जीवन (Life of Ramanujan in Britain)
रामानुजन 14 अप्रैल 1914 को लंदन पहुंचे। वहां पर नेविले उनका कार के साथ इंतजार कर रहा था। जहां से वह रामानुजन को अपने घर ले गया। 6 सप्ताह तक ठहरने के बाद, श्रीनिवास नेविले का घर छोड़ कर के अपना आवास ले लिया।
हार्डी और लिटिलवुड नामक रामानुजन के साथी गणितज्ञ ने उसके नोट्स व पेपर चेक किए। दोनों इस परिणाम पर पहुंचे कि वास्तव में श्रीनिवास रामानुजन एक बहुत बुद्धिमान गणितज्ञ हैं।श्रीनिवास ने कैंब्रिज में लगभग 5 वर्ष बिताए। उन्हें मार्च 1916 में बैचलर ऑफ आर्ट्स बाय रिसर्च डिग्री दी गई। 6 दिसंबर 1917 को उन्हें लंदन मैथमेटिकल सोसायटी में चुना गया था। 2 मई 1918 को उन्हें रॉयल सोसाइटी के एक सदस्य के रूप में चुना गया। वह पहले भारतीय व्यक्ति थे जिन्हें त्रिनिटी कॉलेज के सदस्य के रूप में चुना गया था।
रामानुजन की मृत्यु (Death of Ramanujan)
रामानुजन के जीवन में स्वास्थ्य की समस्याएं बहुत रही। जब वह इंग्लैंड में रह रहे थे तब उनका स्वास्थ्य और खराब हो गया था। हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों से जुड़े होने के कारण वे शाकाहारी भोजन ही ग्रहण करते थे। इंग्लैंड में इस तरह का भोजन मिल पाना बहुत कठिन था। 1914 से 1918 के समय में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान शुद्ध शाकाहारी भोजन में कमी के कारण उनका स्वास्थ्य खराब हो गया था।
1919 में रामानुजन इंग्लैंड से कुंभकोणम वापस लौट आए। 1920 में मात्र 32 साल की उम्र में कमजोर स्वास्थ्य के कारण कुंभकोणम, मद्रास में उनकी मृत्यु हो गई।
श्रीनिवास की मृत्यु के बाद उनकी विधवा पत्नी जानकी देवी को मद्रास यूनिवर्सिटी ने पेंशन प्रदान की। उन्होंने एक पुत्र भी गोद लिया जिसका नाम डब्लू. नारायण था।
FAQs
रामानुजन (अंग्रेजी: Ramanujan; जन्म: 22 दिसम्बर 1887, मृत्यु: 20 अप्रैल 1920) एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। वह स्कूल से ही गणित विषय में अत्यधिक रुचि रखते थे।
श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को वर्तमान तमिलनाडु के ईरोड में हुआ था। उनके पिता कप्पूस्वामी श्रीनिवास अयंगर थे जो साड़ी की दुकान में क्लर्क का काम किया करते थे। उनकी माता कोमलताम्मल थी जो एक ग्रहणी थी। उनका परिवार कुंभकोणम टाउन में रहा करता थे।
दिसंबर 1889 में रामानुजन को स्मालपॉक्स (चेचक) हो गया था परंतु वे कुछ समय बाद इससे ठीक हो गये। इसके बाद वह अपनी माता के साथ ननिहाल कांचिपुरम (मद्रास/चेन्नई) चले गये।
रामानुजन अपनी गणित की परीक्षाओं को निर्धारित समय से आधे समय पहले ही पूरा कर देते थे। 1902 में उन्हें त्रिघातीय समीकरणों का हल निकालना सिखाया गया। आगामी वर्षों में उन्होंने चतुर्घातीय समीकरण का हल निकालने के लिए अपना अलग मेथड बना डाला।
1919 में रामानुजन इंग्लैंड से कुंभकोणम वापस लौट आए। 1920 में मात्र 32 साल की उम्र में कमजोर स्वास्थ्य के कारण कुंभकोणम, मद्रास में उनकी मृत्यु हो गई।
श्रीनिवास की मृत्यु के बाद उनकी विधवा पत्नी जानकी देवी को मद्रास यूनिवर्सिटी ने पेंशन प्रदान की। उन्होंने एक पुत्र भी गोद लिया जिसका नाम डब्लू. नारायण था।
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