चंद्रगुप्त मौर्य का जीवन परिचय व इतिहास

चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। वे भारत के सबसे महान सम्राटों में से एक थे जिन्होंने अखंड भारत का निर्माण किया। चंद्रगुप्त आचार्य चाणक्य के मुख्य शिष्य थे। वे अपने गुरुदेव चाणक्य की नीति की बातें से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए थे। और यहां तक कि, चंद्रगुप्त अपने राज्य में सबसे ज्यादा मान सम्मान गुरुदेव चाणक्य का करते थे। 

चंद्रगुप्त मौर्य का परिचय (Introduction to Chandragupta Maurya)

पूरा नामचंद्रगुप्त मौर्य 
जन्म दिनांक340 ईसा पूर्व
जन्मपाटलिपुत्र, भारत (वर्तमान समय बिहार, भारत)
मातामुरा मौर्य
पितासर्वार्थसिद्धि मौर्य
भाईअज्ञात (Unknown)
बहिनअज्ञात (Unknown)
पत्नियांदुर्धरा और हेलेना
पुत्रबिंदुसार
पौत्रअशोक, विताशोक, सुसिम और 98 अन्य
गुरुदेवआचार्य चाणक्य (कौटिल्य)
उपलब्धियांमौर्य साम्राज्य के संस्थापक, अखंड भारत के निर्माता
शासन321 ई. पू.-  297 ई. पू.
जातिमौर्य
मृत्यु दिनांक297 ईसा पूर्व
मृत्यु स्थल/समाधिश्रवणबेलगोला, चंद्रागिरी की पहाड़ियां, कर्नाटक (भारत)
चंद्रगुप्त मौर्य का जीवन परिचय | चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास
चंद्रगुप्त मौर्य का जीवन परिचय

चंद्रगुप्त मौर्य का शुरुआती जीवन कुछ अस्पष्ट रहा है। बहुत सारे स्रोतों ने अलग-अलग मत दिए हैं। बुद्ध परंपरा के अनुसार चंद्रगुप्त के पिता मौर्य वंश के प्रमुख थे जो एक युद्ध में मारे गए।

उस समय चंद्रगुप्त अपनी माता की पेट में था। उनकी माता अपने भाइयों की मदद से पाटलिपुत्र वर्तमान समय में बिहार में आ गई।

चंद्रगुप्त के मामाओं ने उसकी सुरक्षा की खातिर उसे एक गायों के ग्वाले को सौंप दिया। जब चंद्रगुप्त बड़ा हुआ तो ग्वाले ने उसे एक शिकारी को बेच दिया और शिकारी ने उसे रोजगार देकर काम पर रख लिया।

और एक दिन आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त को खेलते हुए देखा और वहां से उसे अपने साथ पढ़ाने के लिए ले आए। हेमचंद्र के दिगंबर के अनुसार आचार्य चाणक्य ने मयूर समुदाय के मुखिया की पुत्री के साथ एक पुत्र को जन्म दिया।

परंतु इसके बदले में, चाणक्य ने माता से कहा कि जब यह बच्चा जवान हो जाएगा तो इसे वे बाद में अपने साथ ले जाएंगे। इसके बाद चाणक्य जादू से पैसा कमाने के लिए चले गए और चंद्रगुप्त के जवान होने पर वापस लौट आये। उसको चाणक्य ने पढ़ाया लिखाया और उसे एक योद्धा बनाया।

 परंतु हेमचंद्र का यह तथ्य पूर्ण सत्यता की जानकारी नहीं देता है।

चंद्रगुप्त मौर्य की वास्तविक छवि (Chandragupta Maurya real image)
चंद्रगुप्त मौर्य

चंद्रगुप्त की गुरुदेव चाणक्य से भेंट

जब चंद्रगुप्त एक दिन अपने ग्वाले साथियों के साथ शाही कोर्ट का एक नकली खेल खेल रहा था, तब चाणक्य ने चंद्रगुप्त को दूसरे बच्चों को आदेश देते हुए देखा।

और उस समय चाणक्य ने चंद्रगुप्त को अपना शिष्य बना लिया और उसे तक्षशिला विश्वविद्यालय में प्रवेश दिलाया। उसे शास्त्र, धर्म, वेद, सैन्य कलाओं, अर्थ, कानून इत्यादि का ज्ञान दिया

तक्षशिला के बाद दोनों गुरु और शिष्य पाटलिपुत्र की ओर बढ़ गए। जो उस समय में मगध की राजधानी हुआ करता था वहां वे राजा धनानंद से मिले। तो आचार्य चाणक्य ने धनानंद की बेइज्जती कर दी।

कुछ तथ्य यह कहते हैं कि चंद्रगुप्त ने धनानंद की सेना का कमांडर बनकर विद्रोह कर दिया था। इस घटना के बाद चंद्रगुप्त और चाणक्य दोनों वहां से भाग निकले क्योंकि नंद की सेना उनके पीछे लग चुकी थी।

चंद्रगुप्त मौर्य के गुरुजी - आचार्य चाणक्य (Chandragupta's Guru - Acharya Chanakya)
चंद्रगुप्त मौर्य के गुरुजी – आचार्य चाणक्य

आचार्य चाणक्य का अपमान और प्रतिशोध की ज्वाला

 जब चंद्रगुप्त चाणक्य से नहीं मिले थे उससे पहले चाणक्य मगध के राजा धनानंद के यहां गए हुए थे। वहां पर बहुत सारे लोग और अन्य पंडित आए हुए थे। तो धनानंद ने आचार्य चाणक्य को भरी सभा से बाहर निकाल दिया। 

 आचार्य चाणक्य के गिरते ही उनकी शिखा (चोटी) खुल गई थी। यह देखते ही आचार्य चाणक्य ने भरी सभा के अंदर शपथ ली और कहा कि धनानंद, मैं तुम्हारे इस राज्य को जड़ से उखाड़ फेंकूंगा। और जब तक यह नहीं हो जाता तब तक मैं अपनी शिखा नहीं बांधूगा।

 आचार्य चाणक्य के इस प्रचंड क्रोध और प्रतिशोध की ज्वाला ने उन्हें एहसास करवाया कि उन्हें एक अच्छे इंसान की जरूरत है जो धनानंद के मरने के बाद राजा बन सके। और अखंड भारत का निर्माण कर सकें जहां पर हर व्यक्ति का मान सम्मान किया जाएगा।

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चंद्रगुप्त मौर्य  के साम्राज्य का निर्माण की शुरूआत

धनानंद से बच निकलने के बाद चाणक्य ने एक सेना बनाने की सोची। क्योंकि उनके पास कोई सैनिक नहीं थे तो उन्होंने गांव-गांव जाकर हर व्यक्ति को चंद्रगुप्त की सेना से जुड़ने के लिए कहा।

आचार्य चाणक्य की बातों पर लगभग सभी लोग विश्वास कर रहे थे और बहुत सारे लोग चंद्रगुप्त की सेना में भर्ती हो गए। उनके सैनिकों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी।

 परंतु चंद्रगुप्त मौर्य की यह सेना धनानंद की सेना के सामने बहुत छोटी थी। आचार्य चाणक्य की कुशाग्र बुद्धि और चंद्रगुप्त का अदम्य साहस धनानंद के पतन के लिए काफी था।

धनानंद के साम्राज्य का पतन

322 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त की सेना ने आचार्य चाणक्य की सलाह से धनानंद पर आक्रमण कर दिया। पिछली बार के युद्ध में हारे हुए चाणक्य और चंद्रगुप्त को पता था कि उन्हें राज्य की सबसे पहले बाहरी क्षेत्रों पर आक्रमण करके अधिकार जमाना चाहिए, उसके बाद राज्य के मुख्य भागों पर। 

 तो उनकी सेना ने बाहरी क्षेत्रों को जीतते हुए, पाटलिपुत्र पर विजय प्राप्त कर ली जो कि धनानंद के राज्य  की राजधानी थी। वहां पर उन्होंने कुसुमपुर (वर्तमान पटना) को घेर लिया और गुरिल्ला युद्ध नीति से धनानंद को हरा दिया।

चंद्रगुप्त मौर्य का वैवाहिक जीवन

धनानंद से युद्ध जीतने के बाद चंद्रगुप्त भारत के राजा बने गए थे और उन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।

चंद्रगुप्त मौर्य की दो पत्नियां थी दुर्धरा और हेलेना। इन दोनों की अलग-अलग कहानियां है। 

पहली पत्नी – दुर्धरा

 धनानंद से युद्ध करने से पहले धनानंद की पुत्री दुर्धरा ने चंद्रगुप्त को देखा। और पहली नजर में ही दुर्धरा को चंद्रगुप्त से मोहब्बत हो गई। चंद्रगुप्त ने धनानंद से युद्ध जीतने के बाद, दुर्धरा को अपनी धर्मपत्नी बना लिया।

 दुर्धरा को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम बिंदुसार था। कुछ इतिहासकार यह बताते हैं कि लगभग 2 साल पहले बिंदुसार के जन्म लेने से पहले दुर्धरा को एक और पुत्र की प्राप्ति हुई थी जिसका नाम केशनाक था। और इस बच्चे की मृत्यु, जन्म के कुछ ही घंटों के बाद हो गई थी।

 दुर्धरा से उत्पन्न बच्चा बिंदुसार मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना। परंतु विधाता की अनहोनी को कौन टाल सकता था? बिंदुसार को जन्म देने के बाद उसकी माता दुर्धरा का देहांत हो गया।

 चंद्रगुप्त ने दुर्धरा के चले जाने के बाद वर्षों तक शादी नहीं की। क्योंकि उन्हें दुर्धरा से बहुत ज्यादा मोहब्बत थी। 

दूसरी पत्नी – हेलेना

 जब सेल्यूकस निकेटर ने भारत पर आक्रमण किया था तब चंद्रगुप्त ने उसे हरा दिया और हराने के बाद आचार्य चाणक्य की शर्तों के मुताबिक सेल्यूकस को अपनी पुत्री हेलेना का विवाह चंद्रगुप्त से करना था।

 इस तरह से चंद्रगुप्त का दूसरा विवाह हुआ और उनकी दूसरी पत्नी का नाम हेलेना था जो कि एक ग्रीक थी।

 इतिहासकारों के मुताबिक हेलेना को कोई भी संतान की प्राप्ति नहीं हुई थी। चंद्रगुप्त ने जब राजकार्य बिंदुसार को सौंप दिया था तब हेलेना अपने मायके चली गई।

और चंद्रगुप्त सन्यासी का रूप धारण करके चंद्रावली की पहाड़ियों में चले गए। इस तथ्य की बात हमने आर्टिकल के अंत में गहराई से बात की है।

चंद्रगुप्त मौर्य का पुत्र - बिंदुसार मौर्य (Chandragupta's son  - Bindusar)
चंद्रगुप्त मौर्य का पुत्र – बिंदुसार मौर्य

उत्तर-पश्चिम भारत से सिकंदर और उसके वंशजों का आगमन

चंद्रगुप्त के राजा बनने से पहले ही सिकंदर ने भारत के अभियान को बंद कर दिया था। उसका यह अभियान  प्राचीन भारत को जीतने का था और उसने 325 ईशा पूर्व में भारत छोड़ दिया। सिकंदर ने प्राचीन भारत के उत्तर-पश्चिम संभागों को ग्रीक लोगों को सौंप दिया। 

 सिकंदर की मृत्यु के बाद चन्द्रगुप्त ने ग्रीक लोगों को प्राचीन भारत से निकाल दिया। और उन भागों पर अधिकार कर लिया।

सेल्यूकस निकेटर प्रथम ने 312 ईसा पूर्व में भारत को जीतने का प्रयास किया जो कि सिकंदर के वश में पैदा हुआ था। इस समय में भारत का राजा चंद्रगुप्त था ना कि धनानंद। तो उसने चंद्रगुप्त के साथ युद्ध किया और उस युद्ध में  सेल्यूकस की हार हो गई।

 आचार्य चाणक्य ने इस युद्ध के बाद सेल्यूकस के सामने 2 शर्तें रखी। इन दो शर्तों के आधार पर सेल्यूकस को जिंदा छोड़ा गया।

पहली शर्त 

 सेल्यूकस के राज्य को चंद्रगुप्त के राज्य में मिला दिया जाएगा। और सेल्यूकस को अपना देश छोड़ कर जाना होगा।

दूसरी शर्त

 सेल्यूकस की पुत्री ‘हेलिना’ का विवाह चंद्रगुप्त से किया जाएगा। परंतु, हेलेना से उत्पन्न संतान मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी नहीं बन पाएगी। 

आचार्य चाणक्य ने यह दो शर्तें बहुत ध्यान पूर्वक रखी। क्योंकि उन्हें पता था कि ये सिकंदर की संताने ही भारत पर आक्रमण करती है। और एक-दो दशक के बाद वापस आती रहती हैं। तो इसका समाधान निकालने के लिए चाणक्य ने उनका भारत के साथ रिश्ता बना दिया। ताकि आने वाले समय में ये लोग भारत पर आक्रमण न करें  क्योंकि वे अपनी बेटी के घर को खत्म नहीं करेंगे।

चंद्रगुप्त मौर्य का शासन

चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य वर्तमान समय अफगानिस्तान, काबुल, कंधार, तक्षशिला और गांधार इत्यादि जगहों तक फैला हुआ था। परंतु धीरे-धीरे चाणक्य की कूट नीतियों के कारण चंद्रगुप्त का साम्राज्य वर्तमान बिहार से लेकर अफगानिस्तान तक और संपूर्ण भारत से लेकर कर्नाटक तक फैला हुआ था। बचे हुए क्षेत्रों में तमिलनाडु, केरल और उड़ीसा इत्यादि ही रहे थे।

  चंद्रगुप्त ने लगभग पूरे भारत पर अधिकार कर लिया और देश को एक इकाई बनाने की सोची। और यह बात उन्होंने अपने गुरु चाणक्य से सीखी कि उन्हें अपने देश को मजबूत बनाना है।

चंद्रगुप्त ने अपने राज्य में गुरुदेव चाणक्य की कही हुई बातों को और लिखी हुई अर्थशास्त्र की नीतियों को पूरी तरीके से अपनाया और प्राचीन भारत को एक मजबूत देश और सशक्त आर्थिक संपन्न भी बनाया।

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चंद्रगुप्त ने अपनाई अर्थशास्त्र में लिखी बातें 

आचार्य चाणक्य ने शासन को कैसे चलाया जाए, इस पर एक किताब लिखी जिसका नाम अर्थशास्त्र था।

यह किताब निम्नलिखित विषयों पर बातें करती है –

  • राज्य में संपन्न लोगों से ही कर लेना और गरीबों को फ्री में खाना देना।
  • हर गांव, घर, शहर को किस तरह से बनाया जाए कि शत्रु से बचा जा सके।
  • राजा के भवन को किस तरह से बनाया जाए।
  • हर एक व्यक्ति को खेती में सम्मिलित किया जाए।
  • किसी भी किए गए दुष्कर्म के लिए कठोर सजा सुनाई जाए।
  • राजा को किस तरह से अपना समय गुजारना चाहिए।
  • जनता के लिए त्योहारों और मेलों का आयोजन करवाया जाए।
  • राज्य की सेना व मंत्रियों के घरों में गुप्तचरों को रखा जाए।
  • कर एकत्र करने वाले लोगों व जनता के बीच में भी गुप्तचर रखे जाएं।
  • राजा के नियमों का अनुसरण न करने वाले व्यक्ति को सजा दी जाए।
  • दूसरे देश के राजा की मानसिकता को अपने गुप्त चरो के माध्यम से जाना जाए।
  • सरकारी कार्यों में ऑडिट लगाया जाए ताकि भ्रष्टाचारी कम हो।
  • राज्य की सीमा पर अपने जासूसों को रखा जाए।

 इस पुस्तक में बहुत सारी बातें बताई गई है एक देश को सफल बनाने के लिए। आचार्य चाणक्य ने अपनी कुशाग्र बुद्धि से प्राचीन भारत को एक अर्थ संपन्न देश बना दिया जहां पर हर व्यक्ति का जीवन स्तर अच्छा हो गया था। 

 आचार्य चाणक्य चंद्रगुप्त की सुरक्षा के लिए बहुत चिंतित रहते थे। तो उन्होंने चंद्रगुप्त के लिए कई महलों व उनमें कई तरह के कक्ष बनाए जहां से चंद्रगुप्त गुप्त तरीकों से आ जा सकते थे।

चंद्रगुप्त के भ्रमण करने के लिए विशेष तरह के बगीचे व वन तैयार किए गए जहां पर दांत टूटे हुए शेर व कुछ बिना हानिकारक जीवो को रखा जाता था। आम लोगों को इन जंगलों व बगीचों में जाने के लिए मनाही की गई थी।

उनके लिए अलग वन व बगीचों का प्रबंध किया गया था। वहां एक आम इंसान भी शिकार व भ्रमण कर सकता था।

आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त के महलों के चारों तरफ गहरी व चौड़ी खाई खुदाई। इन खाइयों के अंदर पानी भर के मगरमच्छों को छोड़ दिया जाता था ताकि शत्रु इनको पार करके अंदर रह ना सके।

एक मजबूत प्राचीन भारत और अर्थव्यवस्था

चंद्रगुप्त ने आचार्य चाणक्य नीति के अनुसार राज्य में लोगों को अर्थ संपन्न बना दिया। अब आम व्यक्ति का जीवन स्तर ऊंचा हो चुका था क्योंकि हर एक इंसान कमाई कर रहा था और टैक्स भर रहा था।

राज्य में एकत्रित हुआ टैक्स का पैसा लोगों की आधारभूत सुविधाओं जैसे कि पानी, सिंचाई, व्यापार, कृषि, आवागमन  के साधनों, सड़कों  पर खर्च किया जाता। 

 देश में शिक्षा, शास्त्र इत्यादि पर भी बहुत ज्यादा जोर दिया गया और तक्षशिला विश्वविद्यालय को उभार गया। जिससे बाहरी देशों के विद्यार्थी भी यहां पढ़ने आते। क्योंकि अब देश में शांति और अच्छी तरह के नियम आ गए थे जिसकी वजह से दूसरे देश के विद्यार्थियों का विश्वास बढ़ा।

चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु

चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 297 ईसा पूर्व को श्रवणबेलगोला की चन्द्रागिरि की पहाड़ियां (वर्तमान कर्नाटक, भारत) में हुई थी। 

सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बारे में कई तथ्य हैं। चंद्रगुप्त मौर्य ने जब अपना राज्य पुत्र बिंदुसार को सौंप दिया तो वह कुछ जैन संतों के साथ दक्षिण भारत की ओर चले गए। वहां पर उन्होंने संन्यास धारण कर लिया।

चंद्रागिरी की पहाड़ियां जो कि वर्तमान समय में कर्नाटक में है वहां पर उन्होंने एक मंदिर का निर्माण करवाया जो अब चंद्रगुप्त बसरी के नाम से जाना जाता है। इनका देहांत श्रवणबेलगोला में चंद्रागिरि की पहाड़ियों पर हुआ था और वहीं पर उनकी समाधि है।

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FAQs

प्रश्न 1. चंद्रगुप्त मौर्य कौन थे?

उत्तर- चंद्रगुप्त मौर्य एक महान सम्राट थे जिन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरुदेव आचार्य चाणक्य की सलाह से अखंड भारत का निर्माण किया और पूरे प्राचीन भारत को एक शांति व अर्थ संपन्न देश बनाया।

प्रश्न 2.  चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म कब हुआ था? 

उत्तर- चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र (वर्तमान बिहार, भारत) में हुआ था।

प्रश्न 3. चंद्रगुप्त मौर्य की कितनी पत्नियां थी?

उत्तर- चंद्रगुप्त मौर्य की 2 पत्नियां थी – दुर्धरा और हेलेना।

प्रश्न 4. चंद्र मौर्य के कितने पुत्र थे?

उत्तर- चंद्रगुप्त मौर्य के 2 पुत्र थे – केशनाक और बिंदुसार। केशनाक के जन्म लेते ही उसकी मृत्यु हो गई और बिंदुसार मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना।

प्रश्न 5. मौर्य साम्राज्य के संस्थापक कौन था?

उत्तर- चंद्रगुप्त मौर्य ही मौर्य साम्राज्य के संस्थापक थे।

प्रश्न 6. बिंदुसार कौन था?

उत्तर- बिंदुसार चंद्रगुप्त मौर्य का पुत्र था जो चंद्रगुप्त के बाद मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना।

प्रश्न 7. क्या अशोक चंद्रगुप्त मौर्य का पुत्र था?

उत्तर- सम्राट अशोक चंद्रगुप्त मौर्य का पौत्र था ना कि पुत्र। चंद्रगुप्त मौर्य अशोक के दादा थे।

प्रश्न 8. चंद्रगुप्त मौर्य के पिता कौन थे?

उत्तर- चंद्रगुप्त मौर्य के पिता सर्वार्थसिद्धि मौर्य थे।

प्रश्न 9. चंद्रगुप्त मौर्य की माता कौन थी?

उत्तर- चंद्रगुप्त मौर्य की माता मुरा मौर्य थी।

प्रश्न 10. चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु कब हुई थी?

उत्तर- चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 297 ईसा पूर्व में हुई थी।

हमें उम्मीद है दोस्तों आपको यह सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन परिचय की पोस्ट पसंद आई होगी। अगर हाँ, तो  अपने दोस्तों के साथ शेयर करना मत भूलना। यहां तक पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

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